A poem for daughters

एक कविता बेटियों के नाम ........
बेटियाँ महज़ बेटी नहीं होती हैं
कितने सहजता से कई रोल ओढ़ लेती हैं
वो माँ हैं
पत्नी हैं
बुआ हैं मामी हैं
चाची हैं
दादी और नानी हैं
शेफ़ हैं
ड्राईक्लीनर हैं
मसाज भी करती हैं
अपने बच्चे के लिए एक टीचर भी है
एक थके हुए पिता के लिए छांव भी हैं
माँ के लिए वक़्त के दर्पण में अपना ही प्रतिबिम्ब हैं.
कई बार मुझे लगता है सर्कस के ट्रेपीज कलाकार भी
इनके सामने बौने हैं
क्योंकि पति आफिस से आ कर
टीवी का बटन उमेठ कर देखता है
अपनी पसंद का शो
और वो चाय , खाना और होमवर्क
कई बार तो आफिस का बचा वर्क भी
ऐसी फुरती से करती हैं
जैसे अभी दिन की शुरुआत हुई हो.
कई बार तो लगता है
देवता बेटी के रूप में जन्म लेते हैं .


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