This is Not A Poetry
यह कोई कविता नहीं है ..........
जिन्हें गुमान था दुनिया को अपने सर पे उठाने का
वो भी दफ़्न हैं समय के ऐसे ही किसी क़ब्रगाह में
हर शख़्स को पता होता है
अगर वह दुनिया में आया है
तो एक दिन इस दुनिया में नहीं रहेगा
वो लोग जो उसके कोर्निश के लिए पंक्तिबद्ध रहते हैं
उसका पानदान , पीकदान , ब्रीफ़केस , ग़रूर
सब कुछ अपने कंधे पर ढोते रहते हैं
आख़िरी समय में शायद
उसकी क़ब्र पर एक अँजुरी मिट्टी भी न डाल पाएँगे.
यह बात अगर इंसान रोज सुबह सोच ले
तो हो सकता है दुनिया में चल रहे ख़ून ख़राबे कम हो जाएँ
लेकिन मुझे यह भी पता है ये मेरे शब्द
लोग पढ़ कर इतना ग़ुस्सा हो जाएँगे
इन्हें सीधे डस्टबिन में डाल देंगे
मुझे इसकी परवाह नहीं है
मैं तो रोज क़ब्रगाह की तरफ़ से निकलता हूँ .
शब्द और छाया प्रदीप गुप्ता

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