Poetry and Poet : Hindi Poem

अगर कविता सच में कविता है 
तो उसे नीम सा कड़वा लगना चाहिए 
उसे सही जगह जाकर चुभना भी चाहिए 
इसमें दर्द भी छलकना चाहिए 
एहसास भी झलकना चाहिए
इन दिनों कविता में कुछ अजीब  सा घटित हो रहा है 
ज़्यादातर में रूप है रंग है 
प्रतीकों की जंग है 
शब्दों की ज़बरदस्त बनावट है 
चाटुकारिता है सजावट हैं 
काफ़ी कुछ ठकुरसुहाती सी होती जा रही है 
इसीलिए पुरस्कार तो पाती है 
लेकिन अपने धर्म से विमुख हो जाती है 
इन दिनों मैंने भिन्न भिन्न देशों की भाषाओं की 
प्रतिनिधि कविता संकलन खंगाल डाले हैं 
ये समय समय पर लिखी गई हैं 
इनमें टॉर्च जला कर भी ऐसी रचनायें नहीं मिलीं 
जिन्हें पढ़कर लगे कि वे 
किसी को ख़ुश करने के लिए रची गयी हों 
लोग उन्हीं रचनाओं को याद रखते  हैं 
जिनमें उनके सरोकार झलकतेहैं.
              शब्द और छाया प्रदीप गुप्ता




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