Hindi Poem गिरगिट
गिरगिट अब मैं तुम्हारी पूजा करना चाहता हूँ, अनीश्वरवादी से मूर्तिपूजक बनने को तैयार हूँ. गिरगिट, पूछो जरा यह भी पूछो आखिर यह ह्रदय परिवर्तन क्यों हो रहा है ? गिरगिट , तुम अपना रंग इसलिए बदलते हो ताकि अपने आप को आस पास के वातावरण में छिपा सको जिससे तुम को सताने वाला तुम्हे पहचान न सके और तुम अपने आप को बचा सको. गिरगिट , ज़रा इन नेताओं को देखो जो अपनी निष्ठा के रंग रातों रात बदल लेते हैं बरसों तक एक विशेष राजनैतिक विचार धारा का दम्भ भरते हुए उसके झंडे के नीचे पलते हुए उसके रंग के चोले में चलते हुए अचानक उसे टाटा , बाय बाय कर लेते हैं। गिरगिट , मुझे घिन आती है जब मैं उन्हें टी वी बहसों में बैठे देखता हूँ वे उन मुद्दों पर अपने सामने वाले की मां बहन करते हैं चिल्लाते हैं दहाड़ते हैं जिन पर अपने पुराने दल का बचाव किया करते थे. गिरगिट , तुम महान हो केवल अपने अस्तित्व के लिए ही रंग बदलते हो इसी...