आदमी
आदमी
जिस तरफ देखता हूँ भीड़ ही भीड़ है
नहीं दिख रहा फिर भी आजकल आदमी
कुछ ने कलमा पढ़ा बन गए मुसलमान
कुछ ने डाले जनेऊ बन गए सनातनी
कुछ का बापितस्मा हुआ बन गए क्रिश्चियन
कुछ का नवजोत हुआ वो बन गए पारसी
पर नहीं कुछ किया जो बनें आदमी
धर्म के नाम पर बंट गया आदमी
भाषाओँ में बंट गए प्रान्त में बंट गए
हम हैं तमिल तो कहीं तेलगु बन गए
महाराष्ट्र के मराठी तो बंगाल के बंगाली ,
उड़िया, असमिया , मलयाली और बिहारी
अलग भाषा है और अलग इनके झंडे
सरहदें खींच कर आदमी बंट गए
जो इनसे बचे जात पांत पर डंट गए
कोई क्षत्रिय पुत्र तो कोई ब्राह्मण कहलाएं
कोई वैश्य कहता कोई राजभर है
चलो कहीं एक ऐसा जहां हम बनाएं
जहाँ धर्म ,भाषा से मुक्त बस आदमी हों
- प्रदीप गुप्ता
जिस तरफ देखता हूँ भीड़ ही भीड़ है
नहीं दिख रहा फिर भी आजकल आदमी
कुछ ने कलमा पढ़ा बन गए मुसलमान
कुछ ने डाले जनेऊ बन गए सनातनी
कुछ का बापितस्मा हुआ बन गए क्रिश्चियन
कुछ का नवजोत हुआ वो बन गए पारसी
पर नहीं कुछ किया जो बनें आदमी
धर्म के नाम पर बंट गया आदमी
भाषाओँ में बंट गए प्रान्त में बंट गए
हम हैं तमिल तो कहीं तेलगु बन गए
महाराष्ट्र के मराठी तो बंगाल के बंगाली ,
उड़िया, असमिया , मलयाली और बिहारी
अलग भाषा है और अलग इनके झंडे
सरहदें खींच कर आदमी बंट गए
जो इनसे बचे जात पांत पर डंट गए
कोई क्षत्रिय पुत्र तो कोई ब्राह्मण कहलाएं
कोई वैश्य कहता कोई राजभर है
चलो कहीं एक ऐसा जहां हम बनाएं
जहाँ धर्म ,भाषा से मुक्त बस आदमी हों
- प्रदीप गुप्ता
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