Hindi Satire Hum To Pelenge हिंदी व्यंग : हम तो पेलेंगे

हिंदी व्यंग : हम तो पेलेंगे

शीर्षक से यह ग़लतफ़हमी मत पाल लीजियेगा कि आगे आप कोई  X - Rated  रचना पढ़ने जा रहे हैं. वैसे अगर ऐसा  भी हो तो भी डरने की बात नहीं , इन दिनों तो  X - Rated फिल्मो के कलाकारों  (जी हाँ इशारा सही समझ रहे हैं )  को भी महिमामंडित किया जाने लगा है , सन्नी लियोन को बालीबुड के पत्रकार अब एडल्ट फिल्म एक्टर  कह कर सम्मानित करने लगे हैं.  

पर हमारा मंतव्य तो  बिलकुल नई  विधा को लेकर है। यह विधा है  सोशल मीडिया  की,  जिस ने बिलकुल अपने छोटे कस्बों के पुराने दिनों की याद दिला दी है. उन दिनों  हमारे मोहल्ले में शर्मा चाचाजी के साले साहब की बला की खूबसूरत  बेटी किट्टी के आगमन से  मोहल्ले वालों का ईमान डिग गया  था।  हमारे पूरे फत्तू गैंग के मेम्बरान रोजाना उन पोशाकों में नज़र आने लगे थे जिसे पहन कर शादी व्याह या फिर कालेज की पिकनिक पर  जाया करते थे. हमारा दोस्त कल्लू जो महीने में कभी कभार नहाता था  रोजाना ख़ास फ़िल्मी सुंदरियों के पसंदीदा साबुन लक्स से नहा कर शर्माजी के  घर के सामने ही बैठा नज़र आता था।  हमारे एक और  दोस्त  रमणीक जिन्होने पैसे बचाने के लिए  सालों साल  तक  बाल न कटाने का संकल्प लिया था और जिनके  इस ऊलजलूल संकल्प के साये में जुओं ने उनके बालों को अभयारण्य बना लिया था, अचानक वे रातों रात ठीक जितेंदर शैली के हेयर स्टाइल में नज़र आने लगे थे। लौंडो की बात  छोड़ो , पके बालों वाले भी टिप टाप नज़र आने लगे थे. बस कुछ ही दिनों के बाद किट्टी की वर्चुअल मोहब्बत में दोस्तों के बीच चक्कू छुरियां चलने की नौबत आ निकली।  चढ्ढी बढ्ढी दोस्त अचानक एक दूसरे के खूंखार दुश्मन बन गए।

तो भाई लोगों, जैसे ही फेस बुक और व्हाट्सप  ऐप शुरू हुए  हमने इन  पर अपना खाता बना लिया।  अतीत  में तो हमारे  छोटे से  मोहल्ले में  शर्मा  चाचाजी के साले साहब की बेटी किट्टी ने ही हलचल मचा दी थी , यहाँ वर्चुअल स्पेस  में  तो हलचल ही हलचल थी रोज नये  से नये  खूबसूरत परी चेहरों  से फ्रेंडशिप के  अनुरोध हमारे खाते में आने शुरू हो गए  , इन्हे देख कर सबसे पहले तो हमने शहर के बेहतरीन फोटोग्राफर कक्क्ड़ से अपनी तस्वीर खिंचवा ली। कक्क्ड़  खाली पीली फोटोग्राफर ही नहीं था फोटोशॉप विशेषज्ञ भी था. उसने हमें तस्वीर में फोटोशॉप  करके रणवीर कपूर से भी बेहतर बना  दिया था ।  धीरे धीरे हमारी  मित्र संख्या का ग्राफ तेजी से  ऊपर उठने लगा।  पहले सेंचुरी पूरी हुई, फिर डबल सेंचुरी , भाई लोग आठ महीने में यह आंकड़ा चार डिजिट को पार कर गया जब की  हकीकत की दुनिया में फत्तू गैंग , कलीग, बीबी की सहेलियों  और रिश्तेदारों को भी जोड़कर जान पहचान के लोगों की तादाद  बमुश्किल तमाम पैंतालीस से अधिक नहीं थी।  हमारा समय अब समाचार पत्र, मैगजीन पढ़ने  , टहलने , खेलने, दोस्तों से गप बाज़ी करने से भी ज्यादा डेस्क टाप, लैपटॉप, स्मर्टफ़ोन के फेसबुक आइकॉन को दबाने में लगने लगा। अपने नए वर्चुअल दोस्तों को प्रभावित करने के लिए  महापुरुषों, खिलाडियों, बिज़नेस टायकून, के हाई  फंडू किस्म के कोटेशन खोजता  , यही  नहीं फोटोशॉप विशेषज्ञ  कक्कड़  नियमित रूप से  मुझे अनेकों जानी अनजानी लोकेशन में चिपकाए मेरे चेहरे वाले फोटो बनाता, इन फोटो में  कभी मैं गोवा के बीच पे दिखाई देता तो कभी केरल के रेन फारेस्ट में दीखता।  और मैं इन सब को दनादन पेल रहा था।  उसके बाद मैं सांस रोक कर इंतजार करता गिनता कि मेरे वर्चुअल दोस्तों खास तौर पर परीशां चेहरों  में से कितनों  ने इन्हे लाइक किया , अगर मेरे पोस्ट को उनमें से कोई फॉरवर्ड करता तो मेरा दिन बन जाता। यह सिलसिला एक  खूबसूरत ख्वाब  की तरह से चलता ही रहता, लेकिन इसमें अचानक जबरदस्त ब्रेक लग गया।  हुआ कुछ यूँ कि हमारे सबसे बड़े सालारजंग साहब अपने टूर के सिलसिले में हमारे शहर में आये हुए थे जाहिर सी बात है हमारे घर ही रुके हुए थे , कसम से वे  बड़े संजीदा किस्म के इंसान थे घंटे भर बैठते तो मुश्किल से कोई बोल फूटता था. उसदिन मेरे कमरे में ही बैठे हुए थे , उन्हें जरा दो नम्बर की काल आयी हुई थी तो मेरे कमरे के वाश रूम में चले गए , इससे पहले उनकी उँगलियाँ ठक ठक उनके स्मार्टफोन पर चल रही थीं , ऐसे ही उत्सुकतावश मैंने उनका मोबाइल उठाया , देखा फेसबुक ऐप खुला हुआ था।  भाई लोग बारी मेरे गश खा कर गिरने की थी , जिस फेसबुक महिला मित्र से दिन में कम से कम चार पांच बार शब्द सन्देश, फोटो आदान प्रदान करता था, जिनकी तस्वीरों में मुझे परी   नज़र आती थीं  , वो आई डी हमारे इन्ही सालारजंग ने क्रिएट की थी ! जब उनकी फ्रेंडलिस्ट देखी  तो पाया 4950 मित्र थे जो ज्यादातर पुरुष थे।  अब तो अपना फेसबुक के महिला मित्रों की जात  से भरोसा ही उठ गया है , क्या पता मेरे कितने ही  बॉस लोग और अधीनस्थ भी ऐसी ही  फेक महिला आई डी के जरिए  मुझको उल्लू बना रहे होंगे !

यही नहीं इन दिनों सोशल मिडिया पर रातों रात अनगिनित डाक्टर, वैद्य , हकीम , नैचुरोपैथ , योगगुरु उग आये हैं,  इनके पास कैंसर से ले के बबासीर और डायबिटीज की बीमारियों को  रातों रात ठीक करने का नुस्खा  मौजूद है।  जैसे ही ऐसा कोई नुस्खा अपने पेज पर दिखाई दिया , यार लोग दनादन पेलना शुरू कर देते हैं , इससे भी खतरनाक यह कि कई बार डाक्टर द्वारा दी गयी दवाई छोड़ कर इन नुस्खों पर अमल करना शुरू कर  देते हैं , बाद में बीमारी और घातक बन जाती है।  कल तो गज़ब हो गया घर के पास वाले बाजार में पाइनएप्पल बेचने वाला   भय्या  अपने  ठेले पर पाइनएप्पल छील छील कर बेचने की लिए रख रहा था , छिलके  एक बोरे में भर रहा था. मेरे पडोसी रंगनाथन वहीँ खड़े थे और बोरे में  से  थोड़े से छिलके निकाल कर अपने थैले में डाल रहे थे।  मेरी  प्रश्नवाचक मुद्रा को देख कर कहने लगे  मैंने  कल ही व्हाट्सप पर पढ़ा है कि अगर पाइनएप्पल के  छिलकों को रात भर पानी में भिगो कर गुदा पर रगड़ा जाय तो बबासीर ठीक हो जाती है अब आपसे क्या छिपाना मुझे बबासीर है।  आज सुबह सबेरे मेरे घर की घंटी बजी , देखा रंगनाथन खड़े हैं चेहरा ऐसा  जैसे किसी भूत ने निचोड़  लिया हो , कहने लगे ,' गुप्ताजी गाड़ी निकालो कोकिलाबेन हॉस्पिटल चलना है.' मैंने पूछा क्या हुआ ?  कहने लगे क्या  बताऊं अभी पाइनएप्पल के छिलके रगड़े थे बहुत गड़बड़  हो गया, रगड़ने से खून निकलने लगा बंद ही नहीं हो रहा है।

इन दिनों सोशल मीडिया पर इस पेलम पेल वाले खेल का सबसे ज्यादा फायदा राजनैतिक दल उठा रहे हैं  , हर दाल के अपने आईटी सेल हैं , जहाँ वैठे हुए लोगों का काम इतिहास के गडे  मुर्दे उखाड कर  छीछालेदर करना या फिर अपने तरीके से राजनैतिक नैरेटिव गढ़ना होता है , हमारे सालारजंग साहब की तरह से  इन लोगों ने हज़ारों आईडी बना ली हैं उनसे लाखों लोगों को फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट भेजते रहते हैं , सोसाइटी में एक दो नहीं लाखों लोग ठलुआगिरी  करने वाले वैठे हुए हैं, जैसे ही कोई नया अधसच्चा  अधपक्का शिगूफा छोड़ा जाता है ये ठलुए लपक कर दनादन अपनी फ्रेंड लिस्ट में पेलना शुरू कर देते हैं। मजे की बात यह कि इससे अच्छे अच्छे दोस्तों की दोस्तियां खटाई में पड़  गयी हैं, उसकी वजह यह कि अगर कोई वास्तविक जगत का मित्र उन्हें उनके द्वारा पेली गयी पोस्ट की हकीकत के बारे में बताता है तो वे इसे सीधे सीधे दुश्मनी में बदल लेते हैं  राजनैतिक प्रचार या दुष्प्रचार का इतना सस्ता और कोई तरीका नहीं है। मजे की बात यह है कि इन्ही अधकचरे सच को कई बार समाचारपत्रों के आलसी रिपोर्टर भी उठा लेते हैं फिर जरा हमारे आपके जैसे अलर्ट पाठक के ध्यान दिलाये जाने पर समाचारपत्र  के किसी अंदर के पेज पर  मुश्किल से ढूंढी जाने वाली जगह में क्षमा याचना कर लेते हैं।

यह पेलम पेल का जो खेल सोशल मीडिया पर चालू है, अच्छे भले लोगों को बॉट में बदल रहा है और हकीकी जिंदगी के दोस्तों को दुश्मनों में बदल रहा  है , हम तो यही कहेंगे कि  यह बीमार होते समाज का लक्षण है।   

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