पृथ्वी को रहने योग्य बनाने के लिए कचरा कम करो


  हाल ही की भारी बरसात में मुंबई महानगर एक बार फिर से जलमग्न हो गया , इससे नागरिकों को तो जबरदस्त असुविधा का सामना करना पड़ा, दो दिन उत्पादकता ठप्प होने के कारण देश को राजकोषीय चपत लगी वह अलग रही। कभी हम मुंबई के तटों पर नहाने से आनंदित होते थे अब तो गंदगी का यह हाल है की समुद्र में घुसते ही एक तैलीय परत चिपक जाती है और इर्द गिर्द प्लास्टिक का कचरा तैरने लगता है।  इसी तरफ से बेंगलुरु की वर्थुर झील मानसून से पहले जहरीले सफ़ेद फोम से लबालब भर गयी हाल यह की यह फोम शहर के अभिजात्य इलाके व्हाइट फील्ड्स  की सड़कों पर भी आ कर पसर गया। इस सब के पीछे एक बड़ा कारण महानगर में रोजाना जुड़ने वाला कचरा भी है।  कमोवेश यह भयावक स्थिति सभी बड़े छोटे शहरों में  बनती जा रही है ।  लेकिन इसका निदान सरकार और प्रशासन तभी कर सकते हैं जब  हर नागरिक भी इसमें सक्रियता के साथ सहयोग करे।

यदि हर घर से  कम से कम कचरा निकले तो समस्या का समाधान काफी आसान होगा। शॉपिंग बनिए की होलसेल दुकान, बड़े स्टोर , सब्जी मंडी से करें।  जब शॉपिंग के लिए बाहर निकलें  घर से पुरानी कमीज,  जींस और  पेंट के बने छोटे बड़े काफी सारे थैले और कांच की बॉटल/जार लेकर चलें, कांच के जार बेंत की कंडी में रखें ताकि वे सीधे रहें और परस्पर टकरा कर टूटें नहीं । पैक किये सामान की जगह दुकान में  बोरे या फिर बड़े टिन में से तुलवा कर सामान लें, काफी सारी दुकानें तेल और घी आदि बड़े पैकिंग से खोल कर बेचते हैं , इस तरह  खरीदा सामान छोटी पैकिंग में आने वाले की तुलना में  सस्ता  भी पड़ता  हैं। यही नहीं इस तरह आप घर में इक्क्ठ्ठा होने वाले पैकिंग वाले कचरे को काम कर सकते हैं।

 घर में कचरा कम करने के लिए बहुत सारी चीजें घर पर तैयार की जा सकती हैं।  किचन से शुरू कीजिये , टेट्रा पैक या प्लास्टिक की थैली में बंद दूध की जगह डेरी का  ताजा दूध ख़रीदिये। दूध को रोजाना उबाल कर ठण्डा  करें और फ्रिज में रख दें , अगले दिन इसे बाहर निकालें , ऊपर से गाढ़ी  मलाई की परत उतर कर  कांच के बड़े जार  में जमा करके फ्रिज में रखें । मोटी  मलाई निकालने के बाद  बचा दूध बाजार में मिलने वाले  फैट फ्री जैसा ही है जिसे कंपनियां  फैंसी नामों से ऊंची कीमत पर बेचती हैं अपने पति और बच्चों की सेहत अच्छी रखिये यही मलाई निकला  दूध पीने को दें।  पांच छै  दिन की मलाई से मक्खन या फिर घी बना लीजिये , इस से आप को विशुद्ध मक्खन और घी मिलेगा और बाज़ार से लाये मक्खन, घी की पैकिंग से भी छुटकारा मिलेगा। बच्चों के लिए तरह तरह के चिप्प्स , ग्रेनोला, टारटिला आदि भी थोड़े प्रयास से घर में बन सकते हैं , इस तरह से बच्चों को  स्वास्थकर स्नैक मिलेंगे और हर बार इक्क्ठा होने वाले  पैकिंग कचरे से भी वचाव हो सकेगा।

इसी तरह से  घर में साबुन ,आल पर्पज क्लीनर , ग्लास क्लीनर , वाशबेसिन अवरोध दूर करने की गोली  बनाना शुरू करें , इसके लिए सारी सामग्री किराना स्टोर्स पर मिल जाती है, ये सब कैसे बनाना है यह जानकारी ऑनलाइन मुफ्त में उपलब्ध है ।  इससे दो फायदे होंगे हर माह घर में  तरह -तरह की प्लास्टिक बोतलें जमा नहीं होंगी , महंगे लेकिन  हानिकारक केमिकल वाले क्लीनरों की जगह  घर में बने सरल  क्लीनर आपके गैजेट्स, फर्श, फर्नीचर और कांच के सामान का जीवन लंबा बनाएंगे। मेरे अपने कई परिचित परिवार यह काम कई वर्षों से कर रहे हैं।

कोशिश करें कि घटिया किस्म  प्लास्टिक का सामान किसी भी हालत में न लाएं , घरों, रेस्त्रां, होटल, सार्वजनिक स्थानों पर इस्तेमाल किये  जाने वाला  प्लास्टिक प्राकृतिक रूप से गल नहीं पाता और पर्यावरण के लिए बड़ी चुनौती बना रहता है।  हाल ही में कई नगरों में घटिया किस्म की प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लगाया गया है लेकिन वो तभी कारगर होगा जब आम आदमी विषय की गंभीरता को समझे।  बाज़ार में  मिलने वाले मिनरल वाटर की बोतल का प्लास्टिक अच्छा नहीं होता है , इस लिए इसे खरीदने की जगह अपने घर से स्वच्छ और छना  पानी कांच या फिर कॉपर की बॉटल में लेकर चलें। मेरी एक मित्र घर से घर से  सिरेमिक का कप भी लेकर चलती हैं लोकल स्टेशन या फिर रोड साइड बंडी  वाले से चाय या काफी  उसी में ले कर पीती हैं।  इन दिनों स्टारबक्स में  काफी के बार-बार  इस्तेमाल किये जाने वाले कप बिकने लगे हैं  , सही तो यह है कि  उन्होंने अपने स्टोर्स पर इसका प्रचार भी करना शुरू कर दिया  है।

आंकड़ों के हिसाब से तो कचरा निस्तारण की स्थिति बहुत ही  भयावह है।  अंतर-राष्ट्रीय   पर्यावरण बचाव एजेंसी  के हाल ही के एक अनुमान के अनुसार प्रति वर्ष विश्व  भर में 780 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा जमा हो रहा है और इसमें से तिहाई महासागरों  में पहुँच रहा  है , अकेले अमरीका  में ही 258  लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा जमा होता है. अगर यही हाल रहा तो विश्व आर्थिक फोरम के अनुसार 2050 आते आते महासागरों में प्लास्टिक कचरा समुद्री जीव जंतुओं के वजन को पार कर जाएगा। इसी लिए विश्व स्तर  पर जीरो कचरा अभियान जोर पकड़ रहा  है , इसकी की शुरुआत अमरीका के  उत्तरी केलिफोर्निया  क्षेत्र की निवासी बी जानसन के प्रयास से 2008 में हुई थी , इस महिला का  कहना है कि  अगर हम अपने जीवन को सरल तरीके से जियें और अनावश्यक कचरे को जमा करने से बचें तो काम आसान हो सकता है , जानसन  का मन्त्र  पांच 'आर' यानी रिफ्यूज , रिड्यूस  , रियूज  ,रिसाइकिल , राट  है। अर्थात , जिस चीज की जरुरत न हो वह न लें. जो चीजेँ आपके पास हैं उन्हें कम करते जाएँ, चीजों को बार बार इस्तेमाल करें ,जिस चीज का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है उसे परावर्तित करें और आख़िरी बात , जो शेष बचे उसे कम्पोस्ट कर दें।  जानसन परिवार ने इस मन्त्र को अपना कर  चार साल का कचरा केवल एक जार में इकठ्ठा करके दिखाया है ! यह महिला अपने घर में  मेकअप का  सामान जैसे लिप बाम, ब्लश, मस्कारा और शैम्पू तैयार कर लेती है।  भारत में अभी टॉयलेट पेपर का रिवाज न के बराबर है लेकिन विकसित  देशों में हर साल करोड़ों पेड़ टायलेट और किचन पेपर के लिए काट दिए जाते हैं , पाश्चात्य देशों की देखा देखी  हमारे महानगरों में भी इसका चलन बढ़ रहा है लेकिन पानी का जेट अधिक हाइजनिक विकल्प है.

जीरो कचरा अभियान की सफलता तभी संभव है जब जब बच्चे भी इस दिशा में जागरूक हों।  अपने  बच्चों के साथ ही उनके सहपाठियों को भी इस अभियान से जोड़ने के लिए हमें कोशिश करनी पड़ेगी।  अपने बच्चे के स्कूल में जा कर उसके टीचर और प्रिंसिपल से मिलें और स्कूल में बच्चों को कम्पोस्ट और रिसाइकिल आइटम का अंतर समझा दें तो काम आसान हो सकता है।

जीरो कचरा से अगर अपने भोजन को जोड़ लें तो इसके बेहतर परिणाम आएंगे। जीरो कचरा डाइट का अर्थ है ऐसी डाइट जिसके कारण कचरा कम से कम हो, जाहिर है इसके लिए फास्ट फ़ूड का निषेध करना होगा, एक बार अगर फ़ास्ट फ़ूड की जगह घर में बना खाना खाएंगे तो खाना पैक करने वाली सामग्री से बच सकेंगे और फिर स्वस्थ सामग्री खाने में इस्तेमाल होगी। किचिन में दाल, मसाले और अन्य खाने पीने की चीजों को प्लास्टिक के डिब्बों की जगह कांच के जार इस्तेमाल करें , इसमें सामग्री की गुणवत्ता बनी रहती है और दूर से ही पहचान में भी आ जाती हैं।  .

कम्पोस्ट, रिसाइकिल और कचरा अलग अलग रखें 

                           



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