Hindi Ghazal on Family Relations

Hindi Ghazal


शेर 
माँ  बारे में शायरों ने बहुत कुछ लिखा और गाया  है 
पिता वो दरख़्त है जिसके साये में हमने सुकून पाया है 

ग़ज़ल 

घनी धूप  थी सफर में मगर मैं चलता गया 
बाप का साया मेरे बदन को ढंकता गया 

घर जो छूटा मेरा बहुत कुछ छूट गया 
माँ के कढ़ी चावल को मैं तरस सा  गया

जमीने  बंटीं घर बंटें  तो एक बार में  
दिल कई बार  टुकड़ों में बंटता रहा  

बहन मेरी बहुत मुद्दतों के बाद मिली 
आँख का पानी बहुत कुछ कहता रहा 

वो जो इस बार मिला शर्मिंदा सा दिखा 
इतने सालों तक दिल में क्या चलता रहा 

वो तो छुपा हुआ था मन के आँगन में 
उसे तलाशने यहाँ से वहां भटकता रहा 

वो कब का यहाँ से जा चुका  फिर भी 
उसका एहसास मेरे वजूद में महकता रहा 




                                                                                 @ प्रदीप गुप्ता



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