Ghazal 25.12.2017.
यह देश अब तुम्हारे इशारे पे चलता है
क्या बिगाड़ लेगा कोई तुम्हारे पास सत्ता है
खेल तुमसे किस तरह कोई जीत पायेगा
तुम्हारे हाथ में तो छुपा तुरुप का इक्का है
कितनी किताबें लाद दी हैं नन्हे कंधे पे
यह कोई मजदूर नहीं स्कूल का बच्चा है
बेवजह गलियों में भटका दिया है देश को
क्यों नहीं आगे बढ़ते जिधर सीधा रास्ता है
मजा उपज का बिचौलिये उठा रहे यारों
किसान तो बस साल भर खेत में तपता है
Comments
Post a Comment