Ghazal 1. 24.08.17.

इस तरह हालात बिगड़ जायेंगे सोचा न था 
सच में लूट गए यारों आँख का धोखा न था 

तुमसे बिछड़े तो बहुत दूर तलक आ पहुंचे 
कसूर अपना था मगर तुमने भी तो रोका न था 

घर से निकले थे दुनिया को बढ़ाने के लिए 
इस तरह खुद ही बदल जायेंगे सोचा न था 

जीत ही जाते बाजी हम वक्त के खेल की 
तुम अगर साथ रहते  हार का मौका  न था  

संघर्ष नेता का रहा रोटी नहीं मलाई के वास्ते 
इस कहानी में गरीब कहीं मुद्दा होता  न था

कॉपीराइट प्रदीप गुप्ता 

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