Ghazal तू अगर मेघ है मुझे रूह तक गीला कर दे
After a long time a Ghazal composed by me today
तू अगर मेघ है मुझे रूह तक गीला कर दे
और अगर शम्स है मन में उजाला कर दे
मुझको मालूम है तू समंदर की तरह गहरा है
ले मेरी प्यास को छू कर के दोबाला कर दे
एक अम्बर मेरे अंदर भी छुपा वैठा है
बन के पंछी अपनी उड़ानों से खंगाला कर दे
मैं तो जमीं हूँ पदचाप से हिल जाता हूँ
ले के आगोश में जरा मुझ को संभाला कर दे
तू तो जंगल की हवाओं सा सरसराता है
मेरे वजूद को समेट ले पत्तों के हवाले कर दे
-प्रदीप गुप्ता
copy right 23.12.2016.
तू अगर मेघ है मुझे रूह तक गीला कर दे
और अगर शम्स है मन में उजाला कर दे
मुझको मालूम है तू समंदर की तरह गहरा है
ले मेरी प्यास को छू कर के दोबाला कर दे
एक अम्बर मेरे अंदर भी छुपा वैठा है
बन के पंछी अपनी उड़ानों से खंगाला कर दे
मैं तो जमीं हूँ पदचाप से हिल जाता हूँ
ले के आगोश में जरा मुझ को संभाला कर दे
तू तो जंगल की हवाओं सा सरसराता है
मेरे वजूद को समेट ले पत्तों के हवाले कर दे
-प्रदीप गुप्ता
copy right 23.12.2016.

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