Poetry Dedicated to Isha - 2016
ईशा रानी
ईशा रानी ईशा रानीधीरे से हो रही सयानी
क्षण क्षण मूड बदलती रहती
विस्मित से हैं नाना नानी.
खुद ही अपना खाना खाती
शावर तक खुद ही ले लेती
होम वर्क में नहीं मदद ले
चुटकी में खुद हल कर लेती.
सूची मित्रों की है लंबी
खेले हरदम उनके संग
नहीं जरुरत अब नानी की
चढ़ जाता मित्रों का रंग.
कल तक उंगली पकडे चलती
आज बाइक पर सरपट दौड़े
निक्की आरुष सांची तेजस
सब बच्चों को पीछे छोड़े.
गेम्स किसी के नहीं हैं भाते
उसका अपना निजी कलेक्शन
ड्रेस सेंस उसका अब विकसित
खुद ही करती वस्त्र सलेक्शन.
बचपन पीछे छूट रहा है
कैशौर्य दे रहा है दस्तक
प्रतिस्पर्धा के इस युग में
ऊंचा रहे सदा ये मस्तक.
-प्रदीप गुप्ता
27.07.2016
This is dedicated to my grand daughter Isha, who is completing her 7th Birthday shortly
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