नाम में बहुत कुछ है - Whether Change in Name of Gurugaon Will Bring Any Change In The Life Of Gurgaon Residents ?



लीजिए कल से दिल्ली से सटा नगर गुड़गांव गुरुगांव कहलाने लगा है ।  यह नाम परिवर्तन  हरयाणा के वर्तमान मुख़्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के दिमाग से उपजा है. उनका कहना है कि यह इलाका महाभारत काल में  महान गुरु द्रोणाचार्य की कर्मस्थली रहा है, इसलिए उनके सम्मान में यह परिवर्तन किया गया है.

यह नाम  परिवर्तन कई यक्ष प्रश्न खड़े करता है.  पहला तो यह कि क्या महान  धनुर्धर शिक्षक  गुरु द्रोणाचार्य  को याद करने का यह मात्र एक ही तरीका है, यदि उनकी याद में धनुर्विद्या की कोई अकादमी गुडगाँव में खोली जाती और उसमें  ओलम्पिक स्तर के धनुर्धारी तयार किये जाते तो क्या अच्छा नहीं होता। या फिर गुडगाँव में नगर का प्रस्तावित विस्तार उनके नाम पर किया जा सकता था.



अगर सड़कों का यह हाल है तो नाम बदल कर क्या होगा 


खट्टर जी नाम बदलने से ज्यादा जरूरी है शहर की यातायात  व्यवस्था में सुधार   


आज दुनिया भर के लोग गुड़गांव  का नाम भली प्रकार से  जानते हैं , पिछले कुछ वर्षों में यह शहर बीपीओ, केपीओ, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कार्यालय, स्मार्ट उत्पादन इकाई का तो हब बना ही है साथ ही दिल्ली की आवासीय समस्या  से जूझते मध्यम वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग के लिए वरदान बन गया है. दिल्ली से भी कहीं स्मार्ट आवासीय क्षेत्र यहाँ विकसित हो चुके हैं।  इस सभी के बीच यहाँ चमचमाते हुए विशालकाय माल भी उग आये हैं, इस काया कल्प से किसी  ज़माने का एक छोटा सा कसबा अब  मिलेनियम सिटी कहलाने लगा है। लेकिन इस सब के लिए अगर हरयाणा का कोई राजनीतिज्ञ  श्रेय लेना चाहे तो सरासर गलत होगा क्योंकि यह पूरा का पूरा विकास राजधानी दिल्ली का विस्तार मात्र है, जैसे कि दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के नोयडा  में हुआ है. अगर माननीय खट्टर जी और उनकी सरकार को गुडगाँव का ज़रा भी सरोकार होता तो वे वहां की खस्ता हाल सड़कों को दिल्ली जैसी सड़कों में बदलने का काम शुरू करते, इस शहर में स्थानीय बस सेवायें, ऑटो रिक्शा जैसे वैकल्पिक यातायात साधन लगभग गैरमौजूद हैं , यदि यहाँ के निवासियों का उन्हें जरा भी ख्याल होता तो इसके बारे में कुछ सिलसिला  करते। आज स्थिति यह है कि यदि आपके पास अपनी कार या अन्य कोई साधन नहीं है तो इस शहर में एक स्थान से दूसरे तक जाना बहुत बड़ी चुनौती है. लेकिन राजनीतिज्ञों के पास जनता को लुभाने के लिए नाम बदलने से बढ़िया और कोई हथियार नहीं है.

पूना, बनारस, कलकत्ता, बम्बई, बेंगलोर, मद्रास  जैसे शहरों  के  नाम बेशक बदल चुके हैं लेकिन सामान्य जन आज भी इन नगरों को पुराने नाम से ही बुलाते हैं. कमोवेश यही हाल इन नगरों की सड़कों, गलियों और चौक का है।  बम्बई में लगभग सारी सड़कों के नाम बदले जा चुके हैं लेकिन अगर टैक्सी वाले या फिर ऑटो वाले को यह नया नाम बताएँगे तो वह आपका मुंह देखने लगेगा.

कभी आपने यह सोचा है कि नाम बदलने का यह  खेल आम व्यवसाई के लिए कितना मंहगा है ? नाम बदलते ही लेटर हेड , विजिटिंग कार्ड से लेकर सारी स्टेशनरी, नाम पट्ट सब कुछ नए सिरे से मुद्रित करना पड़ता है, कई मामलों  में कानूनी कागजात भी बदलवाने पड़ते हैं. यही नहीं दुनिया भर में आपके इस नए नाम के पहचान का संकट तो है ही. मुझे याद है बम्बई का जब नाम बदलने का आंदोलन शुरू किया गया था तो स्थानीय लोग  महगाई  जैसे  महत्वपूर्ण  मुद्दों को भूल  कर इसी में लग गए थे क्योंकि नाम परिवर्तन उनकी अस्मिता से जोड़ दिया गया था. लेकिन स्थानीय लोगों की अस्मिता के नाम पर सत्ता में पहुँची पार्टियों ने स्थानीय लोगों के भले के लिए सच में क्या किया है यह तो शोध का विषय है !   

वापस लौट चलते हैं महान  धनुर्धर शिक्षक  गुरु द्रोणाचार्य के व्यक्तित्व  की तरफ, यह तो राजाओं के बच्चों के शिक्षक थे , एकलव्य जैसे आम बच्चे ने उन्हें अपने शिष्टव्य में लेने की प्रार्थना की थी तो उसे दुत्कार कर भगा दिया था , हठी  बालक एकलव्य ने मन ही मन उन्हें गुरु मान कर अभ्यास करना शुरू किया, वह जब उनकी शिष्यों से भी बेहतर धनुर्धर बन गया तो उससे गुरुदक्षिणा में उसका अंगूठा मांग लिया था। मुझे समझ नहीं आता कि ऐसे विवादित व्यक्तित्व के नाम पर राजधानी से जुड़े महत्वपूर्ण  शहर का नाम बदलने से माननीय खट्टर जी किसको और कौन सा सन्देश देना चाहते हैं.     

Comments

Popular posts from this blog

Is Kedli Mother of Idli : Tried To Find Out Answer In Indonesia

A Peep Into Life Of A Stand-up Comedian - Punit Pania

Searching Roots of Sir Elton John In Pinner ,London