Dengue : A Dreaded Disease
डेंगू : एक डरावनी बीमारी
पिछले से पिछले शनिवार की बात है. मैं आफिस में काम कर रहा था अचानक मुझे शरीर में भारीपन और हरारत महसूस हुई , क्रोसिन की स्ट्रिप मंगवाई, एक गोली निकाल कर खाई मगर आराम नहीं मिला. जैसे तैसे ड्राइव करके घर पहुँच सका. घर में पहुँचते ही इच्छा हुई कि बिस्तर पर पड़ जाऊं , लेटा तो फिर ऐसा कि बस आठ दिन के बाद ही ठीक हो सका.
अगले दिन भी बुखार उसी सरगर्मी के साथ मौजूद था, इसलिए आफिस जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। सोचा खून की जांच करा लूँ. बुखार आने पर सी बी सी यानी कम्प्लीट ब्लड काउंट टेस्ट करा लेना बेहतर रहता है ,टेस्ट के लिए सैम्पल दिया, इन दिनों अपनी बिल्डिंग में डेंगू फैला हुआ था , पत्नी बोली रैपिड डेंगू टेस्ट भी करा लो । शाम को रिपोर्ट के लिए गोकुल धाम मेडिकल सेंटर पहुंचे तो पता चला कि शरीर पर डेंगू का हमला हो चुका है. डेंगू इन दिनों ऐसी बीमारी है जिसका नाम सुनते ही शरीर में सिरहन शुरू हो जाती है क्योंकि इसके कारण रक्त में प्लेटलेट का स्तर इतना गिर जाता है कि शरीर बिलकुल निढाल हो जाता है, कई मामलों में तो शरीर में प्लेटलेट चढाने पड़ते हैं. शरीर के आंतरिक भागों से खून रिसने लगता है , कई मामलों में तो मरीज का राम राम सत्य भी हो जाता है. गोरेगांव में हाल ही में शिफ्ट हुए हैं इसलिए अभी इधर के डाक्टर और अस्पतालों से अंतरंग सम्बन्ध नहीं बन पाये हैं, सो विचार बना कि कोकिलाबेन अम्बानी हॉस्पिटल की इमरजेंसी में चला जाय अगर वे हॉस्पिटलिजेशन के लिए कहें तो भर्ती हो जाओ.
शाम के कोई आठ बजे होंगे , जांच रिपोर्ट के साथ अम्बानी हॉस्पिटल की इमरजेंसी पहुँच गए , वहां डाक्टर ने रिपोर्ट देखीं और कहा कि अभी घर में रह कर पैरासीटामोल लेते रहो , जितना अधिक से अधिक संभव हो उतना जूस, सूप , नारियल पानी लेते रहो , रोज प्लेटलेट की जांच करते रहो अगर अचानक इनकी संख्या पचास हज़ार से कम हो जाए तो फिर बिना कोई देर किये हॉस्पिटल आ जाओ। यह गुरुमंत्र लेकर मैं घर वापस आ गया।
अब सवाल यह है कि डेंगू की बीमारी कहाँ से आती है ? दरअसल इसके लिए एक ख़ास किस्म का वायरस जिम्मेवार है जो एक ख़ास किस्म का मच्छर फैलाता है. यह आम मच्छर से इस मामले में भिन्न है कि इसकी ग्रोथ स्वच्छ पानी पर होती है, इस लिए डेंगू झोपड़पट्टियों में काम साफ़ सफाई वाली बिल्डिंगों में जयादा होता है. डेंगू मच्छर की पहचान आसानी से की जा सकती है, इस मच्छर के परों पर सफ़ेद चित्ति रहती हैं, यह रात को नहीं दिन में अपने शिकार तलाशता है, मजे की बात यह है कि केवल मादा मच्छर ही डेंगू वायरस फैलाती है ! बचाव का तरीका यह है कि जगह जगह पानी को एकत्रित होने से रोका जाय.
अम्बानी अस्पताल से घर वापस आ कर डाक्टर के सुझाव के अनुसार मेरी पत्नी ने हर आधे घंटे के बाद जूस, सूप देने का सिलसिला शुरू कर दिया . इसी बीच कई नीम हकीम भी अपने अपने अनुभव और अपने अपने फार्मूलों के साथ भौतिक रूप से अवतरित होना शुरू हो गए, जो भौतिक रूप से अवतरित नहीं हो सके वे फोन, व्हाट्स अप और मेल के जरिये अपने अपने सुझाव भेजने लगे , इनमें बकरी के दूध , हरी गिलोय का रस, पपीते के पत्ते का रस पीने के आइडिया शामिल थे.
बरहाल हम तो डेंगू पीड़ित थे जो भी सुझाव मिलते गए उन्हें फॉलो करना शुरू कर दिया. ताजी हरी गिलोय हमें सीधे हिमाचल से मिली जो हमारे पड़ोसी के माता पिता उनके लिए ले कर आये थे , पड़ोसी डेंगू के कारण हॉस्पिटल में भर्ती हो चुके थे वहां तो डाक्टरों ने उन्हें देने नहीं दिया, सो यह हमारे काम आ गयी. पपीते के पत्ते का रास भी पिया , जहर तो खा कर नहीं देखा है लेकिन पपीते के पत्ते के रस को चख कर अंदाजा लगा कि कड़वेपन की पराकाष्टा क्या हो सकती है. इस सबके बीच शरीर में द्रव का स्तर बढ़ाने के लिए महिला मंडल विशेषकर पत्नी की ओर से युद्ध स्तर पर कार्यवाही जारी थी हर आधे घंटे में आंवला , ऑरेन्ज, अनार, सेब-बीट -गाजर का जूस, टमाटर, मिक्स्ड वेज सूप, दूध, काफी और चाय की डोज भी दी जा रही थी, इसका परिणाम यह हुआ कि बुखार धीरे धीरे कम होना शुरु हो गया, इसी के साथ प्लेटलेट स्तर की लगातार जांच जारी थी दिन व दिन इसका स्तर गिरना जारी था, जब यह एक लाख से नीचे पहुँच गया तो वापस हम अम्बानी हॉस्पिटल पहुँच गये. वहां डेंगू विशेषज्ञ डा. शेट्टी ने हमारी हौसला अफजाई की और कहा बुखार ठीक होते ही प्लेटलेट वापस ऊपर उठना शुरू हो जाएंगे, कई दिनों तक थर्मामीटर हाथ में पकडे हुए इन्तजार करते रहे कि पारा नार्मल पर पहुँच जाय. दीवाली से एक दिन पहले तापमान सामान्य हुआ उसी के साथ रिकवरी ने गति पकड़ ली.
कुल मिला कर दस दिनों तक डेंगू से लड़ते लड़ते यह महसूस हुआ कि बीमारी पर नियंत्रण के लिए प्रबल इच्छा शक्ति और उचित देखभाल बहुत जरूरी है। वापस जिंदगी अपने ढर्रे पर चल पडी है लेकिन यह बारह दिन की शारीरिक और मानसिक यातना लम्बे समय तक याद रहेगी।
पिछले से पिछले शनिवार की बात है. मैं आफिस में काम कर रहा था अचानक मुझे शरीर में भारीपन और हरारत महसूस हुई , क्रोसिन की स्ट्रिप मंगवाई, एक गोली निकाल कर खाई मगर आराम नहीं मिला. जैसे तैसे ड्राइव करके घर पहुँच सका. घर में पहुँचते ही इच्छा हुई कि बिस्तर पर पड़ जाऊं , लेटा तो फिर ऐसा कि बस आठ दिन के बाद ही ठीक हो सका.
अगले दिन भी बुखार उसी सरगर्मी के साथ मौजूद था, इसलिए आफिस जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। सोचा खून की जांच करा लूँ. बुखार आने पर सी बी सी यानी कम्प्लीट ब्लड काउंट टेस्ट करा लेना बेहतर रहता है ,टेस्ट के लिए सैम्पल दिया, इन दिनों अपनी बिल्डिंग में डेंगू फैला हुआ था , पत्नी बोली रैपिड डेंगू टेस्ट भी करा लो । शाम को रिपोर्ट के लिए गोकुल धाम मेडिकल सेंटर पहुंचे तो पता चला कि शरीर पर डेंगू का हमला हो चुका है. डेंगू इन दिनों ऐसी बीमारी है जिसका नाम सुनते ही शरीर में सिरहन शुरू हो जाती है क्योंकि इसके कारण रक्त में प्लेटलेट का स्तर इतना गिर जाता है कि शरीर बिलकुल निढाल हो जाता है, कई मामलों में तो शरीर में प्लेटलेट चढाने पड़ते हैं. शरीर के आंतरिक भागों से खून रिसने लगता है , कई मामलों में तो मरीज का राम राम सत्य भी हो जाता है. गोरेगांव में हाल ही में शिफ्ट हुए हैं इसलिए अभी इधर के डाक्टर और अस्पतालों से अंतरंग सम्बन्ध नहीं बन पाये हैं, सो विचार बना कि कोकिलाबेन अम्बानी हॉस्पिटल की इमरजेंसी में चला जाय अगर वे हॉस्पिटलिजेशन के लिए कहें तो भर्ती हो जाओ.
शाम के कोई आठ बजे होंगे , जांच रिपोर्ट के साथ अम्बानी हॉस्पिटल की इमरजेंसी पहुँच गए , वहां डाक्टर ने रिपोर्ट देखीं और कहा कि अभी घर में रह कर पैरासीटामोल लेते रहो , जितना अधिक से अधिक संभव हो उतना जूस, सूप , नारियल पानी लेते रहो , रोज प्लेटलेट की जांच करते रहो अगर अचानक इनकी संख्या पचास हज़ार से कम हो जाए तो फिर बिना कोई देर किये हॉस्पिटल आ जाओ। यह गुरुमंत्र लेकर मैं घर वापस आ गया।
अब सवाल यह है कि डेंगू की बीमारी कहाँ से आती है ? दरअसल इसके लिए एक ख़ास किस्म का वायरस जिम्मेवार है जो एक ख़ास किस्म का मच्छर फैलाता है. यह आम मच्छर से इस मामले में भिन्न है कि इसकी ग्रोथ स्वच्छ पानी पर होती है, इस लिए डेंगू झोपड़पट्टियों में काम साफ़ सफाई वाली बिल्डिंगों में जयादा होता है. डेंगू मच्छर की पहचान आसानी से की जा सकती है, इस मच्छर के परों पर सफ़ेद चित्ति रहती हैं, यह रात को नहीं दिन में अपने शिकार तलाशता है, मजे की बात यह है कि केवल मादा मच्छर ही डेंगू वायरस फैलाती है ! बचाव का तरीका यह है कि जगह जगह पानी को एकत्रित होने से रोका जाय.
अम्बानी अस्पताल से घर वापस आ कर डाक्टर के सुझाव के अनुसार मेरी पत्नी ने हर आधे घंटे के बाद जूस, सूप देने का सिलसिला शुरू कर दिया . इसी बीच कई नीम हकीम भी अपने अपने अनुभव और अपने अपने फार्मूलों के साथ भौतिक रूप से अवतरित होना शुरू हो गए, जो भौतिक रूप से अवतरित नहीं हो सके वे फोन, व्हाट्स अप और मेल के जरिये अपने अपने सुझाव भेजने लगे , इनमें बकरी के दूध , हरी गिलोय का रस, पपीते के पत्ते का रस पीने के आइडिया शामिल थे.
बरहाल हम तो डेंगू पीड़ित थे जो भी सुझाव मिलते गए उन्हें फॉलो करना शुरू कर दिया. ताजी हरी गिलोय हमें सीधे हिमाचल से मिली जो हमारे पड़ोसी के माता पिता उनके लिए ले कर आये थे , पड़ोसी डेंगू के कारण हॉस्पिटल में भर्ती हो चुके थे वहां तो डाक्टरों ने उन्हें देने नहीं दिया, सो यह हमारे काम आ गयी. पपीते के पत्ते का रास भी पिया , जहर तो खा कर नहीं देखा है लेकिन पपीते के पत्ते के रस को चख कर अंदाजा लगा कि कड़वेपन की पराकाष्टा क्या हो सकती है. इस सबके बीच शरीर में द्रव का स्तर बढ़ाने के लिए महिला मंडल विशेषकर पत्नी की ओर से युद्ध स्तर पर कार्यवाही जारी थी हर आधे घंटे में आंवला , ऑरेन्ज, अनार, सेब-बीट -गाजर का जूस, टमाटर, मिक्स्ड वेज सूप, दूध, काफी और चाय की डोज भी दी जा रही थी, इसका परिणाम यह हुआ कि बुखार धीरे धीरे कम होना शुरु हो गया, इसी के साथ प्लेटलेट स्तर की लगातार जांच जारी थी दिन व दिन इसका स्तर गिरना जारी था, जब यह एक लाख से नीचे पहुँच गया तो वापस हम अम्बानी हॉस्पिटल पहुँच गये. वहां डेंगू विशेषज्ञ डा. शेट्टी ने हमारी हौसला अफजाई की और कहा बुखार ठीक होते ही प्लेटलेट वापस ऊपर उठना शुरू हो जाएंगे, कई दिनों तक थर्मामीटर हाथ में पकडे हुए इन्तजार करते रहे कि पारा नार्मल पर पहुँच जाय. दीवाली से एक दिन पहले तापमान सामान्य हुआ उसी के साथ रिकवरी ने गति पकड़ ली.
कुल मिला कर दस दिनों तक डेंगू से लड़ते लड़ते यह महसूस हुआ कि बीमारी पर नियंत्रण के लिए प्रबल इच्छा शक्ति और उचित देखभाल बहुत जरूरी है। वापस जिंदगी अपने ढर्रे पर चल पडी है लेकिन यह बारह दिन की शारीरिक और मानसिक यातना लम्बे समय तक याद रहेगी।
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