Last Frontier : Alaska (in Hindi)


 यात्रा वृतांत : अलास्का - सभ्यता का आख़िरी पड़ाव 

काफी दिनों से यह जानने की जिज्ञासा थी कि आखिर अलास्का में ऐसा क्या है जो हर औसत अमरीकी नागरिक के  जीवन की साध होती है कि  अपने जीवन काल में एक बार अलास्का हो आये, यहाँ इसे  अंतिम पड़ाव ( Last Frontier) भी  कहा जाता है । हमारा  कार्यक्रम इस साल  जुलाई माह में  अचानक ही बना और हम  भी  अलास्का के लिए चल पड़े। 

अमरीका में अलास्का और हवाई  ऐसे दो राज्य हैं जो सीधे  मुख्य भूमि से जुड़े हुए नहीं हैं, इन  तक पहुँचने के लिए अमरीका की  मुख्य भूमि से समुद्र  मार्ग या फिर वायु मार्ग से यात्रा करनी पड़ती है।  देश  के धुर उत्तर पश्चिम भाग  में  वाशिंगटन स्टेट है जिसका  सिएटल शहर  एक जमाने में  अलास्का  जाने  के लिए आख़िरी  पड़ाव हुआ करता था. यहाँ से अलास्का के लिए काफी सुविधाजनक  फ्लाइट और शिप सेवा  हैं , सिएटल  से अलास्का सड़क मार्ग से भी जुड़ा हुआ  है लेकिन इसके लिए यहाँ से १०० मील सफर तय करके  पहले कनाडा की सीमा में प्रवेश करना होगा और आगे कनाडा के अंदर   २००० मील ड्राइव करना होगा तब कहीं जा कर अलास्का की सीमा में प्रवेश करेंगे  , यह मार्ग ब्रिटिश कोलंबिया और युकान  राज्यों में दुर्गम पहाड़ी रास्तों, ग्लेशियरों के बीच होकर गुजरता है इसलिये इसका इस्तेमाल ज्यादातर तो अमरीका की सेना ही करती है. 

अलास्का का  क्षेत्रफल ६ लाख वर्ग मील  से भी अधिक है इस हिसाब से यह मुख्य भूमि के सबसे बड़े स्टेट  टेक्सास से भी बड़ा है इतने बड़े इलाके में  आबादी केवल ७ लाख है , कई इलाके तो ऐसे भी हैं जहाँ मीलों तक कोई आबाादी नहीं है. लेकिन प्रकृति ने यहाँ अपना सौंदर्य जी भर के बिखेरा है, यहाँ ३० लाख से भी अधिक झीलें  हैं, ३४,००० वर्ग मील में ग्लेशियर फैले हए हैं,  मौसम  बेहद ठंडा रहता है , जाड़ों के दिनों में  अलास्का के ज्यादातर इलाकों में  बर्फ की कई फिट मोटी  तह चढ़ जाती है, कहीं  कहीं तो पारा शून्य से ५० डिग्री नीचे पहुँच जाता  है. यहाँ के ज्यादातर जानवरों ने इस विषम स्थिति का सामना  करना सीख लिया है पोलर बियर जैसे कई और नस्लों के जानवर तो जाड़े की शुरुआत होते ही दीर्घ निद्रा में सो  जाते हैं. जैसे ही जून का महीना आता है और  बर्फ की तह पिघलनी शुरू हो जाती है और उसी के साथ यहाँ का जीवन मानो जग जाता है.  जानवर  अपनी लम्बी नींद से उठ जाते हैं और अपने भोजन को तलाशने की कोशिश शुरू कर देते हैं।  जून से  अगस्त तीन ही महीने ऐसे हैं जब यहाँ आ कर सैर  की जा  सकती   है। इस मौसम में भी यहाँ आने के लिए सर्दी से बचाव वाले कपड़ों की जरुरत रहती है क्योंकि  कहाँ मौसम का मिजाज बदल जाय पता नहीं चलता है, अलास्का आने से पहले मौसम की हर चुनौती के लिए तैयार हो कर आना पड़ेगा. 

अलास्का की राजधानी जानू है जहाँ मात्र ३६,०००  लोग रहते हैं , लेकिन आबादी और व्यवसाय की दॄष्टि  से  पैसिफिक कोस्ट पर अवस्थित  शहर एंकरेज  ज्यादा महत्वपूर्ण है जहाँ ३ लाख लोग रहते हैं और यहीं राज्य का मुख्य अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, इसलिए वायु मार्ग से अलास्का  आने वाले पर्यटक पहले  एंकरेज  पहुँचते हैं. हम  २४ जुलाई को सिएटल से अलास्का  एयरलाइन्स  से  रवाना हुये , ३. ५० घंटे के अपने इस सफर में विमान  ने कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया  प्रान्त को पार करके पैसिफिक महासागर के ऊपर उड़ कर अलास्का में प्रवेश किया  । जब हम  एंकरेज के टेड स्टीवेंस हवाई अड्डे पर उतरे तो बादल थे , तापमान  ६० डिग्री  था,  अलास्का के हिसाब से यह काफी खुशनुमा मौसम था, फ्लाइट रात को ९.३०  पर उतरी थी,  लेकिन बादलों के बीच सूरज हल्का हल्का झाँक रहा था . गर्मियों के मौसम में विशेषकर जुलाई में सूरज रात के  ११  बजे छिपता  है  इन गर्मियों के  दिनों में  उसे ज़रा भी  चैन नहीं मिलता  सुबह ४.३० बजे फिर से  जनता जनार्दन की सेवा में प्रकट हो जाता है,  यही नहीं इन दिनों  उसकी  लालिमा और  हल्का सा  उजाला  पूरी रात  बना रहता है,हाँ , जाड़ों के मौसम में सूरज के  दर्शन  आसानी से  नहीं होते, आधिकारिक तौर पर उसे केवल ४ से ५ घंटे निकलना होता है. . 

टेड स्टीवेंस एयरपोर्ट पर हर्ट्ज़, एविस, बजट  और नेशनल  जैसी कार किराए पर देने वाली कंपनियां  हैं जो टंकी  पूरी  भर कर  कार आपके हवाले कर देती  हैं, जितने दिन आप का टूर  है इस कार को  इस्तेमाल कीजिये बाद में वापस फ्लाइट लेते समय  उन्हें वापस  कर दीजिए.एयरपोर्ट से होटल की ओर  ड्राइव करते समय हमने पाया कि  रात के ११.३०  बजे भी शहर की सड़कों पर  में दिन जैसा उजाला पसरा पड़ा था,  एक तो वहां के हिसाब से गर्मी का मौसम और   दूसरे  पर्यटकों  की  आम दरफ़्त,  इस लिए इस समय भी पूरा शहर  जाग रहा था.  हमें  अगली सुबह सुबह  देनाली नेशनल पार्क जाने के लिए ८.१५  की ट्रेन पकड़नी   थी इसलिए  घूमने की बजाय सीधे होटल  पहुंचे औरथोड़ी  नींद लेना बेहतर समझा. सुबह जब छै  बजे आँख खुली तब तक  सूरज आसमान में  चढ़ चुका था, लेकिन  बादल भी घिरे हुये थे इसलिए मौसम ठंडा लग रहा था। जल्दी जल्दी तैयार हो कर सात बजे रेलवे स्टेशन पहुंचे , पूरा सामान स्टाफ के हवाले किया  क्योंकि यहाँ की मेकिनले लग्जरी  ट्रेन में सीट के साथ सामान रखने की जगह ही नहीं होती है। यात्रियों का सामान ट्रेन में एक बैगेज कम्पार्टमेंट में रख दिया  जाता है और देनाली पहुँचने पर इसे आपके पूर्व निर्धारित होटल रूम में पहुंचा दिया जाता है. इस लग्जरी ट्रेन के दो मंजिला कम्पार्टमेंट कुछ इस तरह से बनाये गए हैं कि हर कम्पार्टमेंट के निचले तल में किचन और डायनिंग एरिया है  उपर वाले भाग में लग्जरी चेयर कार हैं. इन चेयर कारों की छत  और बाहरी दीवारें पूरी तरह से पारदर्शी हैं जिससे ट्रेन में वैठे हुये  आपके और प्रकृति के बीच कोई दूरी महसूस ही नहीं रह जाती  और ऐसा लगता है कि  आप भी उस खूबसूरत परिदृश्य का एक हिस्सा हों . कम्पार्टमेंट के निचले ताल में  डायनिंग हाल के पैसेज में  दोनों ओर  खुले रेलिंग भी हैं जहाँ खड़े हो कर बाहर की हवा का भी आनंद  लिया जा सकता है। फोटोग्राफी के शौक़ीन लोगों के लिए यह रेलिंग काफी उपयोगी रहता है.   

अलास्का में दक्षिणी भाग में अवस्थित सिवार्ड से लेकर धुर उत्तरी भाग  के फेयरबैंक्स  शहर  के बीच ४९० मील लम्बी रेल लाइन है, घने जंगलों, नदियों, झरनों और ग्लेशियरों से गुजरने वाला  इतना लंबा रेल मार्ग बनाना अपने आप में एक चुनौती रही होगी, इससे भी बड़ी चुनौती इस रेल मार्ग पर ट्रेन संचालन  है,  जाड़ों में तो ट्रैक  पर कई फिट बर्फ जमा हो जाता है.  इस लिए ट्रेन सेवा मध्य मई से मध्य सितम्बर तक ही संचालित की जाती हैं. नेशनल ज्योग्राफिक चैनल ने   'अलास्का रेल लाइंस' श्रंखला बनाई है जिसे देखने से अंदाजा लग जाएगा कि किन विषम परिस्थितियों से जूझते हुए  इस रेल यात्रा को संचालित किया जाता है . इस मार्ग में सिवार्ड से एंकरेज तक का  रास्ता ४ घंटे का है.एंकरेज से  आगे  देनाली तक  ७.३० घंटे और देनाली से फेयरबैंक्स  कोई चार घंटे लगते हैं. हमने  एंकरेज से देनाली का जो हिस्सा  चुना था वह इस पूरे रूट में  सबसे खूबसूरत  है.

ट्रेन के एंकरेज से रवाना होते ही कम्पार्टमेंट में गाइड अपना माइक संभाल  लेता है, हँसते  हँसाते और क्षेत्र के बारे में रोचक जानकारी देते लेते यह आठ घंटे कैसे गुजर जाते हैं पता ही नहीं चलता है. इस बीच बार-टेंडरर  कुछ अलास्कन तो कुछ अंतरराष्ट्रीय हाट और माक पेय  से यात्रा के ऊँचे नीचे खतरनाक रास्तों के बीच  आपका भय  काफूर करने की पूरी कोशिश करती है. उत्तर ध्रुव के पास के इस पूरे इलाके  के निवासी सालमन मछली, मूज  (Moose) और रेनिडियर का कच्चा मांस खा कर अपनी जिंदगी काट देते हैं, वहीँ हमारे जैसे शाकाहारी यात्रियों के लिए  अपने जैसा देसी खाना मिलना बहुत बड़ी चुनौती है, लेकिन हमारी ट्रेन की  डायनिंग कार में हमें  घास पात जैसे काफी सारे विकल्प मिल गए.ब्रेकफास्ट  करने के बाद  कम्पार्टमेंट के  सिरे  के  रेलिंग पर पहुँच गए इस के सहारे खड़े होकर बाहर के खुशनुमा मौसम का आनंद लेते रहे और साथ ही क्षण क्षण बदलते प्रकृतिक दृश्यों को कैमरे में कैद करने की कोशिश करते रहे. कम्पार्टमेंट की आधी से ज्यादा आबादी रेलिंग पर ही खड़ी मिली। 

एंकरेज से आगे निकल कर पचास मील तक के रास्ते में मातानुस्का नदी के कारण बनी विशाल घाटी है जहाँ  अमरीका की फेडरल सरकार ने १९३५ में मातानुस्का वैली कालोनी प्रोजेक्ट के तहत देश के  ठन्डे राज्यों मोंटाना , नार्थ डकोटा और मिनिसोटा के  किसानों को १५० एकड़ के हिसाब से मुफ्त जमीन आवंटित कर  दी  थी ताकि यहाँ  कृषि की कुछ गतिविधियाँ  भी प्रारम्भ हो सकें , यहाँ बसे   इन किसानों की मेहनत  रंग ले आयी है , एक तो यहाँ की   भूमि बहुत उपजाऊ है दूसरे  गर्मी के दिनों में यहाँ पौधों को  २० घंटे तक धूप मिलती है इस  कारण फसलें बहुत तेजी से बढ़ती हैं , ३० से ४० किलो की बंदगोभी, ४ से ५ किलो के शलगम सामान्य बात है. इसी लिए मातानुस्का घाटी  के वसीला और पामर कसबे बहुत संपन्न बन चुके हैं।ट्रेन से  दोनों कस्बों की संपन्नता  साफ़ साफ़ दिखाई देती है. अलास्का की गवर्नर और उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ चुकी सारा पालिन इसी क्षेत्र की हैं.

हमारी ट्रेन को एंकरेज से चले हुए तीन घंटे  हो चले थे और पहला स्टाप टलकीटना  आ रहा था, जब १९१० में अलास्का रेल रोड का निर्माण शुरू हुआ था तो इसकी अवस्थिति को देखते हुये इसे डिस्ट्रिक्ट हेडक्वार्टर बना दिया गया था. यहाँ  का नेग्लीना स्टोर, फेयरव्यू इन  , टलकीटना रोडहाउस उसी समय के हैं और अभी  तक चल रहे हैं।  टलकीटना, चुलकीटना और सुसीटना नदियों के संगम पर बने इस छोटे से कसबे से उत्तरी अमरीका के सबसे बड़े  पर्वत शिखर मेकिनले का सबसे सुन्दर नजारा  दिखाई देता है, यही नहीं   मेकिनले शिखर के पर्वतारोहियों के लिए यह शहर बेस कैम्प का भी काम करता है.  कुछ पर्यटक  यहाँ से फ्लाइट लेकर मेकिनले शिखर का नजारा देखने भी जाते  हैं, यहाँ का तीन नदियों के संगम  सालमन  मछली के शिकार  के लिए बहुत मशहूर है.  

देनाली मार्ग का विहंगम दृश्य 
 

टलकीटना से आगे देनाली का सफर ४. ३० घंटे का रह गया  था  , इसमें काफी दूर तक सुसीटना नदी हमारी ट्रेन के साथ साथ  चलती जा रही थी, कहीं  बादल तो कहीं खुला आकाश, नदी के किनारे  बिर्च वृक्षों के  घने जंगलों में  ट्रेन दौड़ रही थी और इन  के बीच में से  मेकिनले पर्वत लगातार आँख मिचोली खेल रहा था, इस पूरे इलाके में जनसँख्या विरल है. हमारे कम्पार्टमेंट गाइड ने चलती ट्रेन से एक ऐसा गांव  दिखाया जिसमें एक ही घर है ! गृहस्वामिनी उस गांव की शेरिफ है और उसका पति मेयर !  समीप की आबादी तक जाने का उनका  एक मात्र साधन हरिकेन गल्च  और टलकीटना के बीच चलने वाली एक विशेष ट्रेन है , इस रास्ते के किसी भी गांव वासी को शहर जाना होता है वे  एक झंडा लेकर ट्रेक के पास खड़े हो जाते हैं , झंडे को  देख कर ट्रेन रुक जाती है वापसी अगले दिन की ट्रेन से ही हो पाती है. इस किस्म के दृश्यों को हमारे कम्पार्टमेंट में लोग कैद करने में लगे हुये थे। नवजात शिशुओं को छोड़ कर सभी के  हाथ में कैमरे थे बस फर्क इतना था कि किसी के हाथ में मूवी तो किसी के हाथ में स्टिल कैमरा था . इस रास्ते में काफी दूरी तक इंडियन रिवर केन्यान पड़ता है, इस केन्यान पर रेल का रास्ता बनाना मुश्किल रहा होगा.    

इस रास्ते में सबसे रम्य और जोखिम भरी जगह हरिकेन गल्च पुल है, जिसके नीचे से हरिकेन नामक पहाड़ी झरना है जो ऊंचाई से गिरते हुये आगे जा कर चुलटीना नदी में मिल जाता है, इस पर बना पुल आर्च शैली में है.  गल्च से यह आर्च  कोई ३ ०० फिट की ऊंचाई पर है, और इसकी लम्बाई ९१४  फिट है , जब ट्रेन इसके ऊपर से गुजरती है तो उसे बेहद धीमा कर दिया जाता है ताकि यात्री प्रकृति के नज़ारे और इंजीनियरिंग के इस करिश्मे को देख और सराह सकें.हरिकेन गल्च से आगे देनाली  के लिए  पहाड़ की चढ़ाई है जिसे बोर्ड पास कहते हैं, यहाँ ट्रेन समुद्र तट  से २४०० फिट की ऊंचाई तक चढ़ कर आगे बढ़ती है अब यहाँ ट्रेक के  दोनों ओर  केवल वृक्ष ही वृक्ष  दिखाई देते हैं , देनाली से कोई. ३० मील पहले से ट्रेक के साथ साथ काफी तेज बहाव वाली नदी हमारे साथ चलने लगी। यह नदी मार्ग के लैंडस्केप का ग्लैमर और भी बढ़ा देती है , कम्पार्टमेंट गाइड ने बताया कि यह नेनाना है आगे जा कर तानना में मिल जाती है , तानना नदी कनाडा के धुर उत्तरी प्रान्त युकान  तक बहती हुई चली जाती  है.

देनाली के ट्रेन स्टेशन पर कोई बिल्डिंग या शेड  नहीं है, मात्र एक प्लेटफार्म है, ट्रेन से उत्तरने के बाद  यात्रियों का सामान उनकी  ट्रेवल एजेंसी द्वारा गंतव्य होटल या रेसॉर्ट में पहुंचा दिया जाता है. जब ट्रेन देनाली   रूकी  शाम के चार ही बजे थे और यहाँ सूरज रात के ११ .३० के करीब छिपता  है, उसके बाद भी सूरज उगने तक आसमान में पर्याप्त प्रकाश रहता है इसलिये  हमने सोचा पहले एक चक्कर नेशनल पार्क के अंदर लगा लें बाद में अपने रेसॉर्ट जाएंगे। देनाली  पार्क की कई विशेषतायें हैं यहाँ १०,०००  वर्ग मील में फैला हुआ संरक्षित ग्लेशियर  क्षेत्र  है, मुख्य शिखर जिसे देनाली या मेकिनले पीक का नाम दिया गया है २०,२३७ फिट ऊंचा है और यह दुनिया का सबसे रम्य पर्वत माना जाता है. किसी भी दिन साफ़ आसमान होने पर यह श्रृंखला एंकरेज  के अर्थक्वेक पार्क तक से साफ़ दिखाई देती है, इसका सबसे अच्छा दृश्य  टलकीटना से दिखाई देता है।  यहाँ के ग्लेशियरों  से निकलने वाली नदियों में पानी का तेज बहाव होने के कारण यहाँ राफ्टिंग का अलग ही रोमांच है, यहाँ के जंगलों में भूरे भालू, लाल लोमड़ी ,कैरीबू , मूज, भेड़िये मौजूद हैं।  देनाली की कुल जनसँख्या २५६ है, लेकिन शीत  ऋतू में यहाँ कोई भी नहीं रहता है. देनाली स्टेशन के पास ही पार्क का प्रवेश द्वार है पार्क  के अंदर  १५ मील तक तो सार्वजनिक वाहन ले जाने की अनुमति है बाकी ९२ मील की सड़क पर पार्क द्वारा संचालित ग्रीन और टैन रंगो की शटल/ बसों से  घूमने की अनुमति है.. इनमें वांडर लेक, टोलट , एल्सन, कंटिशना , टुंड्रा और नेचरल हिस्टरी टूर काफी लोकप्रिय हैं, फिर इनके अलावा पैदल चलने, हाइकिंग के लिए काफी सारी ट्रेल हैं. पार्क के रिसेप्शन केंद्र पर पता चला की उनके सारे वाहन पहले से ही सैलानियों को लेकर निकले हुये है इसलिए हम बस लेकर मेकिनले शेलेट रेसॉर्ट पहुँच गये. दरसअल यह रेसॉर्ट भी देनाली नेशनल  पार्क के परिदृश्य का एक हिस्सा है , शेलेट बनाते समय इस बात का विशेष ख्याल रखा गया है कि दूर से परिवेश बिलकुल ग्रामीण किस्म का नज़र आये, अंदर से इन सारे शेलेट में आधुनिक जीवन की  सारी सुख सुविधाएं हैं, रेसॉर्ट का क्षेत्र इतना बड़ा है कि  विभिन्न ब्लाक से  अतिथियों को रेसॉर्ट के मुख्य भवन जिसमें रिसेप्शन , रेस्ट्रोरेन्ट, बार और शॉपिंग एरिया है वहां तक लाने ले जाने के लिए बस सेवा है. रेसॉर्ट के ठीक नीचे नेनाना अपने प्रचंड वेग से बहती है, यहाँ उजाला इतना था कि रात के बारह बजे भी रेसॉर्ट के ज्यादातर अतिथि नदी के किनारे घूम रहे थे हम भी इस उम्मीद में वहां पहुँच गए कि  क्या पता कोई जंगली जानवर यहां सामने की पहाड़ी से उतर  कर यहाँ पानी पीने आ जाय, दो तीन घंटे तक घूमने के बावजूद कोई जानवर नहीं दिखा, सुबह सवेरे पार्क टूर पर जाना था इस लिए आ कर सो गये. मेकिनले रेसॉर्ट के आसपास का इलाका माइल २३८.५  पार्क हाइवे कहलाता है, यहाँ कुल मिला कर १५-१६ रेस्त्रां, फोटो शाप, सोविनियर स्टोर हैं, विशेषकर यहाँ  का प्रोस्पेकटर्स हिस्टोरिक पिज़ारिया & ऐल हाउस अपने वुड स्टोन ब्रिक ओवन में बने पिजा  के लिए मशहूर है, यही नहीं यह रेस्टोरेंट  शाकाहारी और वेगान अतिथियों  के लिए अलग से  मेनू रखता है. देनाली में हमने अपना प्रवास बहुत छोटा रखा था , इसलिए पार्क के  विस्तार को थोड़ा सा ही समेट पाये  .अगले दिन फिर मेकिनले लग्जरी ट्रेन से वापस एंकरेज के लिए वापस चल दिए. आते समय हमें सीट आते समय के  ठीक विपरीत साइड की  खिड़की में मिली थी इसलिये  इस बार हमने बिलकुल अलग किस्म के दृश्यों का आनंद लिया. पांच बजे तक हम लोग एंकरेज रेल स्टेशन पर उत्तर कर वहीँ पार्किंग लाट में रखी अपनी  कार से   होटल पहुँच गए ।  यहाँ पूरी तरह तो रात होती ही नहीं इसलिए हमारे पास यहाँ घूमने का काफी समय था. हमारे कुछ सहयोगी यहाँ के सी फ़ूड को चखना चाहते थे इस लिए येल्प रिव्यु  देख कर साइमन & सीफोर्ट सैलून एंड  ग्रिल का चुनाव किया, हमारे लायक वहां केवल सलाद  ही था, इस लिए चुपचाप उसी पर संतोष करना पड़ा, लेकिन  हमारे सहयोगियों को उसका खाना बहुत ही अच्छा लगा, हाँ खाने का बिल जरुरत से ज्यादा मंहगा निकला.इतना  ही संतोष रहा कि रेस्त्रां की खिड़कियों से दूर तक समुद्र  का सुन्दर नज़ारा है, रेस्त्रां और समुद्र  के बीच में कोई भवन या संरचना नहीं है इस लिये  धीरे धीरे सूर्य का समुद्र  में अस्त होते देखना अपने आप में एक अनुभव रहा . 

अगले दिन हमारा गंतव्य एनकरेज के दक्षिण में बसा एक छोटा सा लेकिन बहुत ही सुन्दर  शहर व्हिटियर  था।  इसके लिए हम सुबह सुबह जल्दी तैयार हुये अपने मेरियट होटल  में ही नाश्ता किया और  भाडे पर ली हुई कार से रवाना हुये।  हम लोग एंकरेज  - सेवार्ड हाइवे  पर ड्राइव कर रहे थे, हाइवे के बाएं ऒर चुगाच स्टेट पार्क के ऊँचे पहाड़ हैं और दायें ओर  चिकाळून खाड़ी, यह हाइवे  अमरीका के सबसे खूबसूरत मार्गों में से एक है, मील दर मील  बदलती मनमोहक दृश्यवालियां , जी करे कि  वहीं रुक जाओ, हाइवे के साथ ही साथ रेल ट्रेक भी समानांतर चलता है.  पोर्टेज क्रीक से हमने सेवार्ड हाइवे छोड़ दिया और पोर्टेज ग्लेशियर हाइवे पकड़ लिया जो पोर्टेज वैली से गुजरते हुए  व्हिटियर  ले जाता है. इस रास्ते में कई ग्लेशियर पड़ते हैं जिनमे प्रमुख पोर्टेज ग्लेशियर है, इस ग्लेशियर से आने वाले जल प्रवाह से पोर्टेज झील बन गयी है , पोर्टेज झील सुन्दर तो है साथ ही इतनी गहरी भी कि  उसमें ८० मंजिली बिल्डिंग  आराम से समा  जाये. पोर्टेज झील के किनारे किनारे ड्राइव करते हुए व्हिटियर  टनल आ जाती है, यहाँ  ट्रैफिक थोड़ी थोड़ी देर में छोड़ा  जाता है क्योंकि यह वन  वे (one way) है, तीन मील से भी लम्बी यह टनल इंजीनियरिंग का नमूना है इसमें रोड का  ट्रैफिक भी रेल ट्रेक से ही गुजरता है, इस व्यवस्था से रोड ट्रेफिक के लिए अलग से एक और टनल  बनाने का झंझट और खर्च  बच गया है. यात्री ट्रैफिक  खुलने के समय के अनुसार ही अपनी यात्रा प्लान करते हैं।  टनल पार करके हम व्हिटियर  टाउन में दाखिल हुए. व्हिटियर   पोर्ट टाउन है, यहाँ का प्राकृतिक पोर्ट इतना गहरा है कि  १२-१२ मंजिले क्रूज़ लाइनर आराम से खड़े हो जाते हैं।  पूरे व्हिटियर शहर की आबादी एक १४ मंजिला  भवन में रहती है, इसी भवन में पोस्टआफिस, शेरिफ़  आफिस सभी कुछ है.व्हिटियर  के पास प्रिंस विलियम साउंड समुद्री क्षेत्र है , इसका टूर हमने मेजर मेरीन के साथ किया, हमारा यह छोटा सा क्रूज शिप हमें विशाल नीले नीले ग्लेशियर्स के बेहद करीब तक लेकर गया, , इन ग्लेशियरों में हर समय हलचल रहती है उनके हिस्से टूट टूट कर समुद्र में बिखरते रहते हैं इस प्रक्रिया में इतनी तेज आवाज होती है जैसे दो सेनाओं के बीच तोपों से युद्ध चल रहा  हो. ग्लेशियरों का  यह इलाका अनेक किस्म के पक्षियों का बसेरा भी है. यहाँ के समुद्र में जरुरत से ज्यादा ठंडा मौसम था,क्रूज  शिप के हाल में  हीटिंग की वजह से इस ठण्ड का सही सही एहसास नहीं हो पा रहा था,क्रूज  शिप में अपना बार और किचिन तो था ही इस लिए इस निर्जन ठन्डे समुद्री इलाके में ऐसा लग रहा था जैसे ग्लेशियरों के बीच तैरते रेस्त्रां में बैठे हों , शिप के कैप्टेन ने मछली पकड़ने वाले जाल से ग्लेशियर के तैरते हुये एक टुकडे को  पानी में से निकाला,  बार टेंडरर ने इसे अच्छी तरह से धोकर बार टेबिल पर सजा दिया , यह देखने में हीरे  जैसा चमकदार लग रहा था।  उसके बाद तो सारी कॉकटेल और मॉकटेल बनाने में  इसी का इस्तेमाल किया गया .यह क्रूज़ ऐसा अलग सा मायावी अनुभव था कि  इच्छा कर रही थी कि  आज इस दिन की शाम न हो. 

ग्लेशियर के करीब 

 क्रूज़ की समाप्ति के बाद हम लोग ८५ मील की ड्राइव करके वापस एंकरेज आ गये. कई दिन से जीभ भारतीय खाने के लिए तरस रही थी, गूगल सर्च में भारतीय खाने की खोज की तो पता चला कि शहर में  छै भारतीय, नेपाली, तिब्बती भोजन परोसने वाले रेस्त्रां है, इनमें सबसे ज्यादा अच्छे रिव्यु बॉम्बे डीलक्स के थे , उन्हें फोन पर मलाई कोफ्ता, दाल मखनी , चावल और तवा रोटी का आर्डर दिया, ९ बजे रेस्त्रां का पार्टनर स्वयं ही  खाना लेकर हमारे होटल आ गया।  पता चला कि उसका नाम डि  सूज़ा है वह गोवानी है, उसकी पढाई डान बास्को बम्बई  में हुई है, अब बारी मेरे हैरान होने की थी कि  आखिर उत्तरी ध्रुव के इस छोर पर इस भारतीय रेस्त्रां  का खाना कौन खाता होगा।डि  सूज़ा ने बताया कि  वहां चालीस पचास  करीब भारतीय परिवार रहते हैं जिनमें ज्यादातर डाक्टर हैं.ये सब उसके नियमित ग्राहक हैं साथ ही वहां पहुँचने वाले भारतीय मूल के पर्यटक भी तलाशते हुए वहां तक पहुँच जाते हैं।  बरहाल खाना एक दम देसी स्वाद लिए था , खा कर एक दम मन तृप्त हो गया.

अगले दिन बारी एंकरेज  घूमने की थी, समय कम  होने के कारण एक गाइडेड टूर लिया, यह शटल स्थानीय पर्यटन केंद्र से रवाना होती है और नगर के अतीत, वर्तमान की पृष्टभूमि बताने के  साथ ही साथ सभी महत्वपूर्ण आकर्षणों को भी दिखा  देती है. हमारे इस टूर के गाइड स्थानीय स्कूल के पूर्व प्राध्यापक थे , उन्होंने बताया कि सबसे पहले  बाहर से  लोग यहाँ सोने की खोज में आये थे कई तो यहाँ की बेहद ठंडी  जलवायु के कारण अपनी जान गवां बैठे, कुछ के हाथ सफलता मिली। यहाँ की अर्थव्यवस्था की नींव सोने पर रखी गयी थी.. यहाँ पर प्रकृतिक सम्पदा का अथाह भण्डार है, जिसमें से अभी दोहन पेट्रोलियम का शुरू हुआ है, केवल इसी से राज्य को २ बिलियन डॉलर से अधिक की रायल्टी मिल रही है. एंकरेज  शिप क्रीक के मुहाने पर है, और यह प्रकृतिक बंदरगाह है इसलिये  जब अलास्का रेलरोड का निर्माण कार्य शुरू हुआ तो निर्माण  की सामग्री यहीं आनी शुरू हुए यहीं से निर्माण कार्य को नियंत्रित भी किया जाता था , धीरे धीरे यह इलाका टेंटों का शहर बन  गया, द्वितीय विश्व युद्ध में यह  सैनिक परिचालन की दृष्टि  से काफी महत्वपूर्ण बन गया इससे इसका तेजी से विकास हुआ. हमारे गाइड महोदय ने बताया कि इस शहर ने जीवन में कई  चढाव देखे है १९६४ के गुड फ्राइडे को इस शहर का एक बड़ा भाग भूकम्प की भेंट चढ़ गया , यह भूकम्प इतना भीषण था कि यह  पूरा का पूरा भाग जमींदोज हो गया, उन्होंने हमें वह जगह भी दिखाई आज यहाँ अर्थ क्वेक पार्क बना दिया गया है जो  उस भीषण तबाही की याद दिलाता है. लेकिन १९७१ में अलास्का में तेल की बड़ी खोज हुई , इसकी सम्पन्नता एंकरेज को ही मिली क्योंकि तेल कम्पनियों ने अपने कार्यालय यहीं स्थापित किये, अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा होने का भी अप्रत्यक्ष लाभ इसे मिला है, अलास्का आने सैलानी पहले एंकरेज  था उतरते हैं इस कारण यहाँ विश्व स्तरीय होटल भी बन गए हैं, आज यह शहर पूरी तरह से दुनिया के किसी भी आधुनिकतम नगर से टक्कर लेने को तैयार है , साथ ही अपनी भूगोलिक अवस्थिति और आस पास के रम्य  स्थलों के कारण सैलानियों के लिए बेहतरीन डेस्टिनेशन  बन चुका है. यहाँ आकर पता लगा की अलास्का में हवाई जहाज लोग ठीक इसी तरह से खरीदते हैं जैसे अन्य जगह बोट  या लग्जरी कारें क्योंकि विपरीत प्रकृतिक परिस्थिति में  एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए यह सबसे सुगम वाहन है, यह महज इत्तफाक नहीं है कि अलास्का में जनसँख्या के हिसाब से पायलटों की संख्या बहुत ज्यादा है ,  गाइड  ने  हमें यहाँ का प्राइवेट विमानों  का जो जखीरा दिखाया तो सच में हम सब हैरान रह गए, प्राइवेट प्लेन के लिए  पार्किंग एरिया अलग से है में जहाँ तक भी निगाह जाती वहां प्राइवेट  विमान ही विमान दिखयी दे रहे  थे।  

निजी विमानों का पार्किंग प्लाजा 

धरती के  इस स्वर्ग में रहने के कुछ अपने खतरे हैं, साल में  ९ महीने शून्य से ५० डिग्री तापमान , फाल्ट लाइन में होने के कारण भूकम्प आना रूटीन में शामिल है. तेल की खोज और दोहन ने पर्यावरणविदों की चिंता को बढ़ा दिया है क्योंकि इससे यहाँ का पर्यावरण संतुलन बिगड़ने का ख़तरा मंडराता रहता है. १९८९ में प्रिंस विलियम साउंड  क्षेत्र में एक्सॉन का आयल टेंकर दुर्घटनाग्रस्त होने से ३४ मिलियन गैलन क्रूड तेल समुद्र में फ़ैल गया था जिससे यहाँ के पर्यावरण को गंभीर नुक्सान हुआ था। जिस तेजी से यहाँ  समुद्र जल का स्तर बढ़ रहा है, ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जंगलों की आग से वन सम्पदा  को क्षति पहुँच रही है. अभी अमरीका के राष्ट्रपति भी अलास्का दौरे पर हो कर गए हैं और उन्होंने पर्यावरण विशेषज्ञों की चिंताओं से सहमति व्यक्त की है, देखना यह है कि  इन सरोकारों पर  सरकार कितनी गंभीरता से अमल करती है.   
 
शाम को हमने एंकरेज से अलास्का एयर के विमान में सिएटल के लिए भरे मन से  विदा ली, सच तो यह था इतना घूम कर भी  मन नहीं भरा था क्योंकि अभी यहाँ देखने और खोजने के लिए बहुत कुछ बाकी रह गया था…… 

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