Mom & Pop Club - मॉम पॉप क्लब इशाकुआ हाईलैंड
मेरा यह अमरीका का छठा और उसमें भी सिएटल का तीसरा ट्रिप है। पहला ट्रिप २००८ में अमरीका की राजधानी वाशिंगटन डीसी का था और हम वहां के उपनगर नार्थ वर्जीनिया में यही कोई एक माह के लिए रुके थे.नार्थ वर्जीनिया पूर्वी अमरीका की सिलिकॉन वैली है, दुनिया भर के इंटरनेट ट्रैफिक का यही मुख्य हब है. इसलिए इस इलाके में देसी टेकीज की भरमार है. हर कम्युनिटी में आपको शाम के समय सलवार कुर्ते या चमकीले बार्डर वाली साड़ियों में अधेड़ महिलायें और शर्ट, स्वेटर और चौड़े पायंचे की पैन्ट में बजुर्ग अपने बच्चों के साथ टहलते मिल जाएंगे उनके घूमने का अंदाज कुछ कुछ ऐसा होता है जैसे वे किसी अदृश्य चेन में बंधे चल रहे हों . जहाँ एक ओर अमरीकी नागरिक किसी भी व्यक्ति को देख कर मुस्कराते हैं और हेलो हाय जरूर बोलते हैं इन भारतीयों के चेहरे पर किसी भारतीय को देख कर भी कोई भाव आता हुआ नहीं दिखेगा। मुझे यह देख कर थोड़ी कोफ़्त तो होती थी पर प्रवास का समय कम होने के कारण अपने आप में कसमसा कर रह जाता था कुछ कर नहीं पता था . अपरिचित देश, अपरिचित लोग और अपरिचित परिवेश में अपने बच्चों से मिल कर बहुत अच्छा लगा लेकिन जब वे काम पर चले जाते थे यह अपरिचित माहौल बोरियत में बदल जाता था, आखिर इस दूर देश में आपकी भाषा कौन सुनेगा कौन समझेगा।
भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक जिनमें आप बँगला देश और पाकिस्तानियों को भी जोड़ कर देसी कम्युनिटी का नाम दे सकते हैं भावनात्मक रूप से बिलकुल एक जैसे हैं. जब उनके घर में बच्चे के जन्म की आहट होती है तो फ़ौरन अपने माता पिता को बुला लेते हैं , इससे नवजात शिशु की मां को ममता और पितृत्व सुख तो मिलता ही है साथ ही मंहगी डॉमेस्टिक हेल्प का बेहतर विकल्प भी मिल जाता है। जब देसी अपने माता पिता को अपने पास बुलाते हैं उनके स्वास्थ, खाने पीने का बेहद ख्याल रखते हैं. उसके वावजूद वे अपने आप को इस अमेरिकी जीवन शैली और नए परिवेश में मिसफिट पाते हैं। कई की तो भाषा को लेकर भी गंभीर चुनौती रहती रहती है इस लिए अपनी छोटी से छोटी बाज़ार की जरुरत के लिए अपने बच्चों पर निर्भर करते हैं. इन दिनों बहुत सारे देसी हर साल समर में अपने माता पिता को बुलाने लगे हैं , इससे एक तो कुछ महीने के लिए पूरा परिवार भावनात्मक रूप से एक जुट हो जाता है , दूसरे स्कूल जाने वाले शिशुओं की छुट्टियां रहती हैं वे अपने दादा दादी, नाना नानी के साथ रह कर भारतीय संस्कार और इस से भी बढ़ कर अपनी भाषा भी सीख लेते हैं।
इस बार जब हम सिएटल के उपनगर इशाकुआ हाईलैंड में अपने बच्चों के पास पहुंचे तो यह अनुभव अपने पहले ट्रिपों से काफी फर्क रहा . शनिवार और रविवार को तो पिछले हर ट्रिप की ही तरह से घर में उत्सव जैसा माहौल रहता है, सुबह देर से उठना, हैवी नाश्ता आराम से लंच खरीदारी और ड्राइव - ऐसी इच्छा रहती है कि हर दिन शनिवार और रविवार की तरह गुजरे। लेकिन कामकाजी बच्चों के लिए सोमवार से लेकर शुक्रवार जबरदस्त व्यस्तता रहती है, सुबह सात बजे उठ कर फटाफट तैयार होकर आधा अधूरा नाश्ता करके ठीक आठ बजे तक आफिस के लिए दौड़ पड़ना, शाम को सात से साढे सात बजे तक वापस आना, खाना खा कर वापस आफिस के मेल या फिर कॉल में व्यस्त हो जाना, ऐसे में सप्ताह के पांच दिन आपस में बस सामान्य अभिवादन और संछिप्त शिष्टाचार भरे मशीनी शब्द का आदान प्रदान हो पाता है। असली संवाद तो सप्ताहांत में ही हो पाता है. मैं कई ऐसे लोगों को जानता हूँ जो बड़ी हौंस से अपने बच्चों के पास पहली बार छै महीने रहने के लिए गए थे लेकिन सप्ताह के पांच कार्य दिवस के शून्य ओर अपरिचय माहौल से बोर हो कर दो ही महीनों में वापस लौट आये.
लेकिन इस ट्रिप की बड़ी उपलब्धि मॉम पॉप क्लब की स्थापना रही , जिसने न सिर्फ हमारे वरन हम जैसी कितने ही और मामी पापा के जीवन में सतरंगी रंग घोल दिए और यहाँ के प्रवास को वेहद आरामदेह बना दिया. यह क्लब कैसे बना इसकी भी काफी रोचक पृष्टभूमि है. यहाँ घर के पास हाईलैंड में ही एक छोटी सी झील है, मेरी सुबह शाम घूमने की आदत है , सो रोज इस झील तक जाता होन. जब तक चार पांच चक्कर नहीं लगाता , अपना हाजमा दुरुस्त नहीं होता है. मैंने देखा है कि स्थानीय लोग भी अपनी फिटनेस और स्वास्थ को लेकर काफी जागरूक रहते हैं सो झील पर काफी नौजवान युवक युवतियां, दौड़ते, साईकिल चलाते नज़र आते हैं, शिष्टाचारवश वे हर परिचित हो या अजनबी उसे देख कर हेलो हाय जरूर करते है . हमने भी पहले दिन से ही इस शिष्टाचार को अपना लिया. और इस तरह से एक एक करके कम्युनिटी में बसे देसी परिवारों के भारत से आये हुए मम्मी पापा एक दूसरे से परिचित होते चले गये. अब तो हालत यह है कि झील पर ये सारे लोग लगभग एक ही समय इक्कठे होते हैं साथ टहलते हैं, यदि किसी को अनुपस्थित पाया जाता है तो उसके घर पर बाकायदा बाकी जन मिल कर धावा बोल देते हैं। हमउम्र लोगों के बीच भाषा प्रान्त का अंतर नहीं रहता, सबके सुख दुःख एक जैसे होते हैं, ज्यादातर अपने लम्बे कैरियर के बाद रिटायर जीवन बिता रहे हैं, उन सभी के पास साझा करने के लिए लंबा अनुभव है अब बच्चों के लिए इस अनुभव पर आधारित वार्तालाप प्रलाप जैसा लगता है लेकिन इन्हे आपस में साझा करके मम्मी पापा के दिन किस तरह दौड़ने लगे इसका अंदाजा इस किस्म के क्लब में शामिल हो कर ही लग सकता है. क्लब की गतिविधियाँ केवल झील पर सैर करने तक ही सीमित रह गयी हैं. इनका विस्तार ट्रेल या हाइकिंग पर जाने , डाउन टाउन के सैर सपाटे , सोमवार और मंगलवार को मल्टीप्लेक्स में वन डॉलर मूवी देखने , फोटोग्राफी ग्रुप की वैठकों और लाइब्रेरी जाने तक हो चुका है , क्लब के एक सक्रिय सदस्य त्यागी जी फरबरी में आ गए थे उन दिनों कड़कड़ाती ठंड के कारण घर से कोई निकलता ही नहीं था इसलिय उन्हें यह अंदाजा भी नहीं हुआ कि आस पास में कितने भारतीय मूल के परिवार यहां रहते हैं. वे पहले दिन में तीन बार अकेले घूमने जाते थे. समर की शुरूआत और इस लचीले क्लब की स्थापना के बाद से उन्हें हर बार कम्पनी मिल जाती है ।अभी पिछले दिनों क्लब सदस्यों को आणंद गुजरात से आये अतुल पटेल जी ने लंच पर आमंत्रित किया, श्रीमती पटेल पर खाना बनाने का पूरा भार न पड़े इसके लिए क्लब की मॉम सदस्यों ने एक एक डिश बनाने के लिए वालंटियर कर दिया, रेस्त्रां में तो यहाँ सब हर शनिवार और रविवार को सभी खाने का आनंद लेते हैं लेकिन मॉम पॉप क्लब का भारत के कई प्रांतों के चुनिंदा व्यंजनों से युक्त यह लंच यादगार घटना बन गया.
हमारे इस क्लब की गतिविधियों का विस्तार जारी है ,नयी नयी प्रतिभाओं का पता चल रहा है तभीे तो शाम को सैर के बाद यह समूह संगीत और व्यंग की महफ़िल में बदल जाता है. क्लब की सदस्य्ता काफी लचीली है क्योंकि कम्युनिटी में पापा मामा लोगों का आवागमन जारी है, जो लोग वापस भारत लौटते हैं उनके सम्मान में एक भाव भीनी विदाई भी रखी जाती है कल तक के अपरिचित लोग गले मिल कर अश्रुपूरित विदा लेते हैं. तकनीक ने इस क्लब को स्थाई रूप प्रदान कर दिया है अब यह व्हाटसप का ग्रुप भी बन चुका है , जो मॉम पॉप क्लब सदस्य भारत वापस चले गए हैं वे भी इससे जुड़े रहेंगे !
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| Some Active Moms of the Club |
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| Some Active Pops of the club |


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