भारत और पाकिस्तान India and Pakistan - Common Culture but Poles Apart

भारत और पाकिस्तान को अलग हुए ६८ वर्ष हो चुके हैं. सरहदें बीच में हैं, यही नहीं तीन बड़े युद्ध और इसके अलावा निरंतर चलता एक छद्म युद्ध भी है। राजनैतिक विभाजन, मीडिया में एक दुसरे के प्रति उगलता जहर और अविश्वास और इस सबके साथ दिनों दिन बढ़ता धार्मिक उन्माद , अब तो ऐसा लगता है कि कभी यह साथ में रहे ही नहीं और नफरत कभी भी दोनों देशों के विनाश का कारण बन जायेगी . और यदि इन दोनों देशों के बीच नफरत को आवाम के चेहरे पर पढ़ना हो तो भारत और पाकिस्तान का क्रिकेट मुकाबला देख लीजिये, दोनों तरफ के लहराते हुए झंडे, उन्मादी जुमले और विपक्षी खिलाडी के अच्छे खेल को निरुत्साहित करने के जतन पे एक निगाह डाल लीजिए. आखिर जब दो जर्मनी एक हो सकते हैं उनके बीच खड़ी दीवार गिर सकती है तो भारत पाकिस्तान एक क्यों नहीं हो सकते हैं ? आखिर इनके बीच की अदृश्य दीवार क्यों नहीं गिर सकती है ? जबाब पाने के लिए इतिहास के पन्ने पलटने होंगे . इतिहास का एक ऐसा भी दौर था जब देशों के बीच भौगोलिक नक़्शे की लकीरें नहीं होती थीं, नागरिक व्यवसाय के लिए, अध्येता अध्ययन के लिए और साधू संत आस्था और विश्वास के प्रसार और प्रचार के लिए दुनिया के एक सिरे से दुसरे के बीच निर्बाध आते जाते रहते थे, ऐसा भी नहीं कि राजाओं के बीच मेँ युद्ध न होते हों, लेकिन आम आदमी को इस सब से इतना सरोकार नहीं होता था. शायद इस्लाम के प्रादुर्भाव के बाद काफी कुछ बदल गया. भारत में इस्लाम आया तो तलवार के साथ पर यह ज़रा क्रांतिकारी किस्म का विचार था जिसमे सब एक ही जगह कर खाना खाते थे , उपासना करते थे। ऐसा नहीं कि यहां धर्म परिवर्तन बलात न हुआ हो लेकिन बहुत सारे लोग ऐसे भी थे जो हिन्दू धर्म की रूढ़िवादी वर्ण व्यवस्था और छुआछूत के कारण भी इस्लाम के झंडे तले  आ गये. लेकिन मुग़ल काल में धर्म परिवर्तन इतना नहीं हुआ, मुग़ल शासकों ने अपनी सेना के नायक राजपूत भी रखे, यही नहीं मुग़ल शासकों ने मंदिरों और हिन्दू विद्वानों को जागीर भी दीं। यह सिलसिला शायद ऐसे ही चलता रहता लेकिन व्यवसाय करते करते इस देश के भाग्य विधाता बन गए अंग्रेजों ने समझ लिया कि इस देश को लम्बे समय तक अपने आधीन रखना है और यहाँ की बौद्धिक सम्पदा और प्रकृतिक संसाधनों का दोहन करना है तो इन दोनों कौमों के बीच अविश्सास और नफरत की आग सुलगाये रखो , अंग्रेज इसी नीति आर चलते हुए दो सौ साल तक शासन कर गए. मंदिर पर गाय का मांस, मस्जिद में सूअर का गोश्त किसी भी शहर में दंगा कराने के लिए काफी होता था. आर्थिक परेशानियों के चलते अंग्रेजों ने धीरे धीरे सारे उपनिवेश छोड़ दिए , भारत भी उनमें से एक था लेकिन जाते जाते विभाजन कराते गए, १९४५ से लेकर ४७ तक के बीच हिन्दू और मुसलमान एक दुसरे के खून के प्यासे हो चुके थे सदियों से चला आ रहा भाई चारा चोटी और टोपी, गाय और सुवर के मांस के साथ ही मार काट, लूट पात और नारियों के शील हरण में बदल गया. दो अलग देश बने लेकिन नफ़रतें वैसी की वैसी ही रहीं, भारत में वोट की राजनीति और पाकिस्तान में अरबोन्मुख नीति के कारण यह सिलसिला और जटिल होता चला गया. जब भी भारतीय और पाकिस्तानी योरोप, अमरीका या फिर अन्य कहीं मिलते हैं तो उनकी सदियों पुरानी सांझी विरासत वो चाहे खाने पीने में हो, पहनने ओढ़ने में हो या फिर बॉलीवुड, संगीत और अदब में हो जल्द ही एक दुसरे के करीब ला देती है , लेकिन वही भारत और पाकिस्तान में वापस पहुँच कर फिर नफरत के लबादे ओढ़ लेते हैं।  क्या इसका कोई समाधान है ? जरा मुश्किल तो है लेकिन असंभव नहीं है. भारत और पाकिस्तान की युवा पीढ़ी जिसने विभाजन की विभीषिका को नहीं देखा है वो ज़रा अपनी सांझी विरासत को एक साथ आगे बढ़ाने की कोशिश करें तो धार्मिक उन्मादी बैकड्राप में चले जाएंगे . यदि भारत उपमहाद्वीप सच में राजनैतिक,आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से एक हो जाय तो शायद चीन भी इसका मुकाबला न कर पाये, बहुतों को यह सपना लगेगा लेकिन अच्छे सपने देखना शुरू करें ये सच भी हो सकते हैं.

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