Hindi Poetry : तुम्हारा जादुई स्पर्श



आधी रात का सन्नाटा
मैं अकेला बैठा हूँ
कानों में संगीत गूँज रहा है
अकेलेपन के विस्तार में
अपने आप को तलाशने की
कोशिश कर रहा हूँ 
पता नहीं क्यों
मेरी ठंडी पड़  गयीं उँगलियाँ
संगीत के दर्द को टटोलने लगती हैं
कहीं दूर एक तारा सा टूटता लगता है
 उसकी आवाज़ प्रकाश की
 मद्यम किरणों के साथ   गुँथ जाती है
और फिर मेरे मनोगत के साथ  मिल जाती है
इसी बीच पसरे हुए एकांत के बीच
प्रकाश का एक पुल
अंधियारे को धकिया देता है
और फिर अँधेरे को चीरता हुआ
आगे बढ़ जाता है
अवसाद ख़ुशी में बदल जाता है
ऐसा लग रहा है कि मेरे सुर में
कोई एक और सुर आके मिल गया हो
धीरे धीरे प्रभात का तार भी
इन सुरों के साथ गुनगुनाने लगा है
अंधियारा छट रहा है
रात गुजर गयी है बस अब तुम्हारे प्यार के साथ
मेरे जीवन में सतरंगी किरणे प्रकाशित होने लगी है

@प्रदीप गुप्ता   

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