Happy Deepavali 2014
पटाखों के शोर में
विद्युत की चकाचौंध में
पर्यावरण की बात करना
ज़रा अप्रासंगिक सा लगता है
पर मामला गंभीर है
अब वर्षा ऋतु में वारिश
जाड़ों में जाड़े नहीं आते
गर्मी के मौसम में गर्मी का एहसास नहीं होता
अचानक ही कोई कैटरीना
या फिर कोई हुदहुद
हमारे विकास के सारे दावों को
एक ही क्षण में तोड़ देता है
तो फिर क्या करें,
त्याग दें विकास के सारे सुख
अंधेरी कंदराओं में जा कर रहें
वही कंद मूल फल खाएं
सभ्यता को जो क्रमिक विकास हुआ है
उसे नकार कर आदिम युग में पहुँच जाएँ
या फिर कोई बीच का रास्ता निकाल लें
विकास हो, विकास के फल सभी खाएं
लेकिन पर्यावरण पर नहीं
प्रकृति और विकास का संतुलन रहे
ज़रा मुश्किल लगता है असंभव नहीं
ऊर्जा और प्रकाश की जरूरतें
सूरज की तपिश, हवा की रफ़्तार से
पूरा करने की जुगत विठायें
नदियां, सरोवर और सागर का दोहन करें पर प्रदूषित न करें
विमान उड़ें , कारें दौड़ें , कल कारखाने चलें
पर कार्बन मोनो आक्साइड न वधाएं
अपना ध्यान, धन, संसाधन
प्रदुषण रहित ऊर्जा स्रोतों के दोहन पर लगे
यही दीपावली का संकल्प और प्रार्थना हो !
- प्रदीप गुप्ता

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