Ghazal : Hawa Men Nafraten

हवा में नफ़रतें ज्यादा हैं प्यार कम है
न जाने क्यों आदमियत की रफ़्तार काम है
सफर पर चल दिए बिना सोचे बिना जाने
अजब मंजर है हर इक आँख पुर नम है
चलो चल के ज़रा लोगों को हंसाया जाय
कितनी मायूसी है जिंदगी में कितना गम है
पिला दे आँख से साकी जरा इस दीवाने को
जेब खाली है इसकी घर में ठर्रा है न रम है
नज़र के तीर से ही वो गिरा देते हैं लोगों को
गज़ब यह है पास उनके न छर्रा है न बम है
--------------प्रदीप गुप्ता
@pradeep gupta 07.05.2014.
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