Ghazal : Berukhi
उनकी इस बेरुखी का भी क्या कहिये
निगाहें इस कदर खामोश हैं क्या कहिये
जिंदगी इस तरह कहाँ चल पाएगी
या तो हाँ कहिये या फिर ना कहिये
इतना मशगूल रहता है वो अपने में
किसी की क्या सुनेगा भला क्या कहिये
इस जहाँ में अपनी ठिकाना कब तलक
जल में पत्ते की तरह बन कर रहिये
जिंदगी और भी खुशनुमा बन जाएगी
जब भी कहिये कुछ तो मीठा कहिये
निगाहें इस कदर खामोश हैं क्या कहिये
जिंदगी इस तरह कहाँ चल पाएगी
या तो हाँ कहिये या फिर ना कहिये
इतना मशगूल रहता है वो अपने में
किसी की क्या सुनेगा भला क्या कहिये
इस जहाँ में अपनी ठिकाना कब तलक
जल में पत्ते की तरह बन कर रहिये
जिंदगी और भी खुशनुमा बन जाएगी
जब भी कहिये कुछ तो मीठा कहिये
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