ghazal : Band kamre
बंद कमरे से निकल के देखो
अपनी नज़रों से जिंदगी देखो
एक दुनिया छुपी हुई तुममें
अपने अंदर भी उतर के देखो
कतरा क़तरा पिघल जाएगा वजूद
एक दिन भीड़ में ठहर के देखो
सिमट के वैठ गए तनहा तनहा
मेरी सांसों में बिखर के देखो
गुम क्यों हो गए किताबों में
चांदनी में ज़रा नहा के देखो
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