Ghazal : Safar

ग़ज़ल 

मैं चल तो  रहा हूँ  फिर भी   वहीं  हूँ 
ये कैसा सफ़र है जिसमें रहता यहीं हूँ 

मुलाकात    तुम से कर भी   रहा हूँ 
मगर फिर भी    तनहा बैठा यहीं हूँ 

उड़ने को मैं इक खुला आसमान  हूँ 
पीने   को बस   एक प्यासी नदी हूँ 

पढ़ने को    सारी  उमर  मैं   पढ़ा हूँ 
मगर  सीखने   को कोरी जमीं  हूँ 

कहने को सब कुछ यहाँ घट रहा है 
मगर इसमें मैं तो कहीं भी नहीं हूँ 

जो काल की भी समझ  से परे है 
उसे सोच कर उसके पहलू नशीं हूँ  

                                                  - प्रदीप गुप्ता

@pradeep gupta


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