Ghazal : Azab Basti

ग़ज़ल 



अज़ब वीरानी है बस्ती में सन्नाटा क्यों है 
 अँधेरा भी यहाँ  आ कर गहराता  क्यों है 

सबको मालूम है इक रोज यह तो आनी है 
 मौत का खौफ इस दरजा  सताता क्यों है  

मैं तो अब कुछ  भी नहीं हूँ उसका फिर भी 
नाम को  लिख लिख के मिटाता क्यों है 

इतने सहमे से  क्यों लोग लग रहे   अब तो 
आइना भी उन्हें देख के घबराता क्यों है 

मैंने तो प्यार उसे इस कदर है  किया 
दूर रहके फिर इस दरजा सताता क्यों है 

@प्रदीप गुप्ता 
20 . 03 . 2014 

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