Eyes : Poem
तेरी आँखों में उतर जाता हूँ
इक समंदर से गुज़र जाता हूँ
जब भी वो साथ मेरे होता है
रास्ता अपना बहक जाता हूँ
वो एक झोंके की तरह आता है
मैं कतरा कतरा महक जाता हूँ
अपने काबू में कहाँ रह पाता हूँ
तुझको छूते ही पिघल जाता हूँ
साकी जब हाल पूछ लेती है
सीधा प्याले में उतर जाता हूँ
-प्रदीप गुप्ता
Copyright protected
27.01.2014

Comments
Post a Comment