Hindi is Official Language in India for Namesake But It is Much More Powerful as Language of Entertainment
हज़ारों निष्ठावान हिंदी प्रेमी आज़ादी के बाद से इस प्रयास में लगे हुए हैं कि देश में इस भाषा को सच्चे अर्थों में राष्ट्रभाषा का दरजा मिले , अखिल भारतीय सरकारी सेवाओं, शीर्ष प्रबंधन , मेडिकल और इंजीनियरिंग संस्थानों में यह अध्ययन और परीक्षा का माध्यम बने। खेद की बात है कि आज़ादी के ६६ वर्ष के बाद भी हिंदी भाषा को यह दरजा सही मायनों में नहीं मिल पाया है. यही नहीं हिंदी भाषी क्षेत्रों में अभिभावक बच्चों के भविष्य को मद्देनज़र रखते हुए केवल महानगरों में ही नहीं वरन छोटे छोटे कस्बों में भी अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दिलाते हैं। जमीनी सचाई यह है कि हिंदी सबसे ज्यादा हिंदी भाषियों के कारण ही उपेक्षित है.
साथ ही आज हम एक और सचाई बताना चाहते हैं कि अंग्रेजी के प्रति जबर्दस्त लगाव के वावजूद मनोरंजन में अंग्रेजी हावी नहीं हो पायी है, जबर्दस्त प्रमोशन करने पर भी अंग्रेजी की फ़िल्में मनोरंजन की मुख्य धारा का हिस्सा नहीं बन पा रही हैं। हिंदी फ़िल्में जिन्हे अब देश में ही नहीं विदेशों में लोग बॉलीवुड के नाम से जानते हैं निर्विवाद मनोरंजन के सिंहासन पर आरूढ़ बैठी हैं. पिछले कई सालों से हर साल कई हिंदी फ़िल्में १०० करोड़ रूपये से भी जायदा का व्यवसाय कर लेती हैं.
यह भी सच है कि हिंदी फिल्मों से जुड़े ज्यादातर लोगों जिसमें निर्माता से लेकर सितारे तक शामिल हैं उनका दूर दूर तलाक हिंदी से कोई लेना देना नहीं है न ही वे हिंदी प्रेम की वजह से इस उद्द्योग का हिस्सा हैं. हिमांशु राय , देविका रानी, सोहराब मोदी, वैजयन्ती माला, रागनी, पद्मनी, हेमा मालिनी, जयप्रदा, रेखा, राखी, श्रीदेवी से लेकर दीपिका पादुकोण, जान अब्राहम सूची बहुत लम्बी है ये वो लोग हैं न तो इनके घरों में हिंदी बोली जाती थी न ही उनकी शिक्षा दीक्षा हिंदी में हुई थी. हिंदी फिल्मों में काम करना उनके लिए विशुद्ध व्यवसाय है. हिंदी फिल्मों का बजट इस लिए बड़ा होता है क्योंकि उनको देखने वालों का क्षेत्र और संख्या बाकी सभी भाषों पर बहुत भारी है , जहाँ गैर हिंदी फिल्मों को सरकारी अनुकम्पा, सब्सीडी, अनुदान , थियेटर प्रायोरिटी और पुरूस्कार सभी कुछ दिए जाते हैं वहाँ हिंदी फ़िल्में बगैर किसी बैसाखी के फल फूल रही हैं, इनकी इसी ताकत को समझ कर हॉलीवुड के स्टूडियो भी या तो कूद पड़े हैं या फिर कूदने की तैयारी में हैं. कमोबेश यही हाल हिंदी के मनोरंजन चैनलों का भी है , इन पर जितने भी रियल्टी शो आते हैं उन पर ज्यादातर सहभागी अहिन्दी भाषी क्षेत्रों से आते हैं. इन चेनलों पर आने वाले प्रोग्रामों को लिखने, बनाने वालों में भी अहिन्दी भाषी लोगों की तादाद कहीं ज्यादा है.
इस लिए यह बात साफ़ साफ़ समझनी होगी कि भाषा वही फल फूल सकती है जो कि व्यवसाय से जुडी हो यानी जिसके इस्तेमाल से माल मिल सकता हो. आपको भले ही आश्चर्य हो लेकिन मुझे नहीं हुआ जब दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति की मोहतरमा मिशेल ओबामा ने हाल ही में बालीवुड डांस सीखने की इच्छा व्यक्त की.
जितनी भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में अपना माल या सेवायें बेच रही हैं उनमें काम करने वाले लोग केवल अंगरेजी में शिक्षित दीक्षित हैं अंगरेजी में ही सोचते हैं पर बड़ी मजबूरी है माल बेचने के लिए विज्ञापन में 'ठंडा मतलब कोका कोला', 'कुछ मीठा हो जाए' , 'पप्पू पास हो गया', दाग अच्छे हैं' जैसे खांटी जुमले गढ़ते हैं, और जो अंगरेजी में ही विज्ञापन करते हैं उन्हें इतनी सफलता नहीं मिलती है. अंगरेजी को जबर्दस्त पुश मिलने के वावजूद अंगरेजी का समाचारपत्र टाइम्स आफ इंडिया भारत का सबसे ज्यादा बिकने वाला नहीं है, वस्तुतः यह हिंदी के दैनिक जागरण से कई पायदान नीचे है.
इसलिए मेरा मानना है कि हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने के पाखण्ड को छोड़ कर बेहतर यही होगा कि इसे स्वाभाविक रूप से व्यावसायिक भाषा के रूप में पनपने दिया जाय, फिर तो जिसकी गरज होगी वो इसे सीखेगा ! अगर आप मुलायम सिंह यादव को जानते हैं तो उन्हें कहें कि लोकसभा में केवल राष्ट्र भाषा में भाषण देने की मांग करने के नाटक की जगह अपने गृह प्रदेश में इस भाषा को व्यवसाय से जोड़ने का काम कर के दिखाएँ तो शायद इसका कहीं भला हो सकता है.

Comments
Post a Comment