Sambhal : A sad tale of a historic town

                        संभल : व्यथा - कथा 
मेरा जन्म इसी  हरिहर मंदिर के ठीक सामने ही हुआ था, कहते हैं कि इसी मंदिर के ऊपर बाबर ने मस्जिद बनाई थी
(पेंसिल ड्राइंग थामस २४ मार्च १७ ८ ९ ) 


मैं  बहुत ही भाग्यशाली हूँ कि मेरा जन्म इस पौराणिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक नगरी में हुआ था लेकिन मैं  इसकी तरक्की के लिए कुछ भी नहीं कर पाया इसका अफ़सोस जरुर है. और मैं ही क्या यहाँ जन्मे हर व्यक्ति ने इसे भारत के टूरिस्ट मैप में लाने  या फिर इसके जीर्णोद्धार के लिए अभी तक कुछ भी  नहीं किया है। दुर्भाग्य यह है कि  देश भर में लोग इसे साम्प्रदायिक दंगों के लिए जानते हैं.  

 कहते हैं कि सतयुग में इसका नाम सत्यव्रत था, त्रेता में महेंद्रगिरी , द्वापर में पिंगल और अब कलियुग में संभल कहलाता है. पृथ्वी राज चौहान के जमाने में यह नगर पहले उनकी राजधानी था बाद में उनके  राजधानी दिल्ली ले जाने के  बाद यह उनके राज्य का आउट- पोस्ट बन गया . उस ज़माने में  आल्हा उदल यहाँ के प्रमुख रक्षक थे, कहते हैं कि उदल ने एक ही छलांग  में एक दीवार पर चक्की का एक पाट  टांग दिया  था. कभी मेरे पुरखों की एक दूकान इसी पाट  के सामने  हुआ करती थी . आल्हा और उदल के बारे में आज की पीढ़ी भले ही परिचित न हो लेकिन इनके शौर्य की गाथा आज भी हिंदी भाषी इलाकों के ग्रामीण क्षेत्रों में गाई जाती हैं। 

बाबर के बेटे  हुमायूँ ने  यहाँ से अपनी शासन चलाया था  और उसकी मृत्यु यहीं हुई  थी, उसका मकबरा किस हाल में है यह शोध का विषय है. 




आदि काल में यहाँ एक विशाल हरिहर मंदिर का निर्माण हुआ था कालांतर में जिसे जामा  मस्जिद में बदल दिया गया .लेकिन इस घटना  को कई सौ वर्ष बीत जाने के वावजूद इसे स्थानीय लोग हरिहर मंदिर ही कहते हैं .मेरा जन्म इसी हरिहर मंदिर के ठीक सामने मेरे पुरखों के बनाये मकान में हुआ था . 

हमारे पुरखों की खंडसालें हुआ करती थी जिनमें राब से खांड बनती थी, आजकल की पीढी शायद खांड का मतलब भी न जानती हो, आज की भाषा में यह आर्गेनिक केस्टर शुगर है.  आधुनिक शुगर मिलों में बनी दानेदार सफ़ेद शुगर अपनी  इस आर्गेनिक केस्टर शुगर को लील चुकी हैं . 

हमारा यह इलाका ऊपर कोट कहलाता है जो  पुराने ज़माने की खासी ऊँची टेकरी है और जिसकी परत दर परत में वेशकीमती इतिहास छिपा हुआ है. मेरा मकान  तीन मंजिला हुआ करता था था और आसपास का सबसे ऊँचा मकान था, पूरा शहर हमारी छत से दिखता था. इस इलाके ने कितने ही युद्ध देखे हैं, मेरी दादी को ईश्वर ने ऐसी दृष्टि  दी थी कि वह ऐसी चीजें भी देख लेती थीं जो सामान्य जन देख और अनुभव ही न कर सकें . हम गर्मी की रातों को तीसरी मंजिल पर सोते थे, हर  वृहस्पतिवार की रात को वो  लगभग एक बजे के करीब जाग जातीं और सामने हरिहर मंदिर के सामने वाली सड़क की तरफ इशारा करके मुझे बतातीं कि  राजा की फ़ौज की सवारी निकल रही है एक एक करके मुझे घोड़ों, हाथियों, ऊंट पर वैठे हुए बांके सवारों का चित्रण करती, युद्ध के विभिन्न वाद्य यंत्रों के बारे में बताती थीं , मुझे कुछ दिखाई नहीं देता था पर एक अलोकिक सा संगीत जरूर सुनाई  देता था , जब भी मैं  यह याद करता हूँ रोंगटे से खड़े हो जाते हैं . ऊपरकोट के नीचे की परतों में क्या क्या खजाने छिपे हैं यह तो पुरातत्व विभाग की वैज्ञानिक खुदाई ही बता सकती है, लेकिन  हमारे घर में हैण्ड पाइप की बोरिंग हुई  थी सील की हुई कई हांडियां  मिलीं थीं जिसके चारों ओर काले सांप कुंडली मार कर बैठे थे हमारी दादी ने उन्हें वैसे के वैसे ही वापस गढ़वा दिया था , क्योंकि उन्हें रात को सपना आया था कि  ये हांडियां किसी और की अमानत हैं उन्हें खोल कर देखना भी नहीं . उन दिनों हमारे मोहल्ले में कई पुराने मकानों को ढा कर नए मकान भी बने थे और उनके स्वामी रातों रात अमीर बन गए  थे .       

इस हरिहर मंदिर के  अतिरिक्त इस नगर में  तीन और शिवलिंग हैं - पूर्व में चंद्रेश्वर, उत्तर में भुबनेश्वर और दक्षिण में  संभलेश्वर . कहते हैं विष्णु की आज्ञा  से विश्वकर्मा ने यहाँ पर 64 तीर्थ और 108 कूप का निर्माण कराया था.पुराणों  में यह भी उल्लेख है कि कलयुग में भगवान् विष्णु यहाँ कल्की अवतार लेंगे .  सो भाई लोगों ने एक कल्कि विष्णु मंदिर बना लिया है. 

कुछ तो यहाँ के निवासियों की अपनी ही धरोहर को सहजने के प्रति उदासीनता और प्रशासन की ऐसे पौराणिक और ऐतिहासिक स्थल को महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल  के रूप में न बदलने की अपराधिक लापरवाही ने इन कूप और तीर्थ स्थलों को जानवरों की चारागाह में बदल दिया है. इन तीर्थों  की परिक्रमा को स्थानीय लोग फेरी कहते हैं, कार्तिक की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी और पंचमी को इस फेरी की औपचारिकता पूरी कर दी जाती है. यदि कोई समझदार प्रशासक यहाँ आया होता या फिर प्रदेश के पर्यटन विभाग ने सुध ली होती तो यह नगर अपनी प्राचीन विरासत के बलबूते पर एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल बन चुका होता . नगर का हाल बेहाल है वही जर्जर सड़कें वही गंदगी का आलम है. इसे प्रशासन ने जिला मुख्यालय बना जरूर दिया है पर कुछ भी नहीं बदला  है , शहर में जो भी लोग  पढ़े लिख  जाते हैं  वे यहाँ बसना  ही नहीं चाहते हैं क्योंकि कोई बड़ा उद्योग या फिर अन्य व्यवसाय अवसर यहाँ नहीं हैं.

यहाँ के उद्यमी लोग मेंथा के व्यवसाय को जरूर उस ऊंचाई तक ले कर गए हैं कि देश भर का मेंथा रेट यहीं से निकलता है पर इस के लिए न तो प्रशासन ने कुछ सहयोग दिया है न ही कोई इसे आगे बढ़ने  की कोई योजना उसके दिमाग में है , नहीं तो अब तक एक केमिकल टेक्नोलॉजी का एक बड़ा संस्थान यहाँ अब तक खुल चूका होता ताकि नगर के उद्द्मियों के प्रयासों में कुछ और प्रोफेशनल टच आ जाता साथ ही बाहर की उन्नत तकनीक का लाभ भी इस उद्द्योग को मिलता .  


संभल को अंग्रेजों ने अबसे १५०  वर्ष पहले ट्रेन से मुरादाबाद से जोड़ा था , इस में कोई बदलाव नहीं आया है, यदि इसे गजरौला से जोड़ा जाय  तो दिल्ली तक की दूरी महज सिमट कर  १२० किमी  हो सकती है और विकास की गति तेज हो सकती है.  सड़क से चंदौसी की दूरी केवल २२   किमी  है , यदि उसे भी ट्रेन के जरिय  जोड़ा जाय तो आगरा और बरेली तक पहुंचना सुगम हो सकता है पर राजनीतिज्ञों के  व्यक्तिगत संपदा दोहन के दौर में  इस उपेक्षित क्षेत्र की किसे पडी है.     
  
    

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