Read Interesting Facts About Coffee in Hindi : काफी का अनूठा सफ़र
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अरब जगत ने दुनिया को कई विचारकों और नई खोज़ से नवाज़ा है. शराब और कॉफी की खोज भी अरब में ही हुई है. दुनिया की सबसे बेहतरीन कॉफी बीज भी अरेबिका के नाम से मशहूर है.
आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि कॉफी का सफ़र इस्लामी अध्यात्मिकता और रहस्यवाद से शुरू होता है जिसकी वजह से इसे सदियों तक संजोया गया और अब यह बड़े कॉफी हाउसों की शान बढ़ा रही है.
आप जैसे ही कॉफी के बारे में सोचते हैं आपके ख़्यालों में इटैलियन एस्प्रेसो, फ्रेंच कैफे और लाते या अमरीकी डबल ग्राइंड लाते आता है जिसमें दालचीनी की ख़ुशबू होती है.
आपने स्कूल में यह ज़रूर पढ़ा होगा कि कॉफी पीने वालों का पहला राष्ट्र अमरीका ही था क्योंकि किंग जॉर्ज ने चाय पर उत्पाद कर लगा दिया था.
आज आप हर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर कई शानदार कॉफी चेन मसलन स्टारबक्स, कैफे नीरो और कॉस्टा ग्रेस के आउटलेट देख सकते हैं और अब नैस्कैफे जैसा ब्रांड तो वैश्वीकरण का प्रतीक बन गया है.
आज आप हर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर कई शानदार कॉफी चेन मसलन स्टारबक्स, कैफे नीरो और कॉस्टा ग्रेस के आउटलेट देख सकते हैं और अब नैस्कैफे जैसा ब्रांड तो वैश्वीकरण का प्रतीक बन गया है.
कहां मिलती है कॉफी
कॉफी का उत्पादन गर्म इला़क़ों जैसे लैटिन अमरीका, सब सहारा अफ्रीका, वियतनाम और इंडोनेशिया में होता है. यूरोप में कॉफी, तंबाकू और चॉकलेट 16वीं और 17वीं सदी में मशहूर हो गया.
कॉफी का जन्मस्थान लाल सागर के दक्षिणी छोर पर स्थित यमन और इथियोपिया की पहाड़ियां हैं. ऐसा माना जाता है कि इथियोपिया के पठार में एक गडे़रिए ने जंगली कॉफी के पौधे से बने एक पेय पदार्थ की सबसे पहले चुस्की ली थी.
शुरुआत में इसकी खेती यमन में होती थी और यमन के लोगों ने ही अरबी में इसका नाम कहवा रख दिया जिससे कॉफी और कैफे जैसे शब्द बने हैं.
मूलतः कहवा शब्द का अर्थ शराब है और यमन के सूफी संत भगवान को याद करते वक्त ध्यान लगाने के लिए इसका इस्तेमाल करते थे.
कॉफी का इतिहास
लाल सागर के दक्षिणी छोर पर स्थित यमन और इथियोपिया की पहाड़ियों को कॉफी का जन्मस्थान माना जाता है
साल 1414 तक मक्का भी कॉफी से परिचित हो चुका था और 15वीं शताब्दी की शुरुआत में ये यमन के बंदरगाह मोचा से मिस्र भी पहुंच गई.
लेकिन अब भी इसका सेवन केवल सूफी संतों तक सीमित था. काहिरा में एक धार्मिक विश्वविद्यालय के पास के कुछ घरों में इसकी खेती होती थी.
इसके बाद 1554 तक इसका प्रसार सीरियाईशहर अलेप्पो और ऑटोमन साम्राज्य की तत्कालीन राजधानी इस्तांबुल तक हो गया था.
लोग कॉफी हाउस में बैठकर कई मसलों पर चर्चा करते थे, मुशायरे सुनते थे और शतरंज खेलते थे. ये कॉफी हाउस बौद्धिक जीवन का प्रतीक बन गए थे और लोग मस्जिदों के बजाए कॉफी हाउसों का रुख करने लगे थे.
मक्का, काहिरा और इस्तांबुल में धार्मिक संगठनों ने इस पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास किए गए. कुछ विद्वानों का मानना था कि कॉफी हाउस मयखानों से भी बदतर होते हैं और वे षड़यंत्र के अड्डे बन सकते हैं.
मुराद चतुर्थ (1623-40) के राज में तो कॉफी हाउस जाने वालों के लिए मौत की सज़ा का भी ऐलान किया गया. लेकिन सारे प्रयास विफल रहे और अंतत मुस्लिम विद्वानों को कॉफी के सेवन की अनुमति देनी पड़ी.
यूरोप
यूरोप में पहले काफी का भारत से आयात किया जाता था
कॉफी दो रास्तों से यूरोप पहुंची. एक तो ऑटोमन साम्राज्य के माध्यम से और दूसरे समुद्र के रास्ते मोचा बंदरगाह से.
17वी शताब्दी की शुरुआत में ईस्ट इंडिया कंपनी और डच ईस्ट इंडिया कंपनी मोचा बंदरगाह से कॉफी की सबसे बड़ी खरीदार थीं.
कॉफी से लदे उनके जहाज केप ऑफ गुड होप होते हुए स्वदेश पहुंचते थे या फिर इसे भारत को निर्यात किया जाता था. यमन की कॉफी की बाकी खपत मध्यपूर्व में होती थी.
मध्य पूर्व की तरह यूरोप में भी कॉफी हाउस लोगों के मिलने जुलने, चर्चा करने और खेल खेलने के अड्डे बनने लगे थे. चार्ल्स द्वितीय ने साल 1675 में कहा था कि कॉफी हाउस में असंतुष्ट लोग मिलते हैं और सत्ता के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार करते हैं.
शुरुआत में यूरोप में कॉफी को मुस्लिम पेय मानकर इसे शक की निगाह से देखा जाता था.
लेकिन16वीं शताब्दी के आसपास पोप क्लीमेंट आठवें इसकी एक प्याली पीकर इतने अभिभूतहो गए कि उन्होंने कहा कि इस पर मुसलमानों का एकाधिकार नहीं होना चाहिए.
ऑस्ट्रिया में कॉफी के सेवन में तब तेजी आई जब 1683 में विएना को तुर्कों के कब्जे से आज़ाद कराया गया.
वहां तुर्कों के ठिकानों से बड़ी मात्रा में कॉफी जब्त की गई. विएना में आज़ भी इस्तांबुल, दमिश्क और काहिरा की तरह कॉफी की प्याली के साथ एक गिलास पानी दिया भी दिया जाता है.
मिथक
शुरू में काफी केवल सूफी संतों में ही लोकप्रिय थी
वास्तव में जिसे हम ‘टर्किश कॉफी’ कहते हैं वो एक मिथक है क्योंकि तुर्की केवल कॉफी का सेवन करने वाले देशों में शामिल है. ग्रीस में इसे ‘ग्रीक कॉफी’ कहा जाता है. लेकिन मिस्र, लेबनॉन, सीरिया, फलस्तीनी क्षेत्र, जॉर्डन के लोग नाम से ज़्यादा इत्तेफाक नहीं रखते हैं.
अरब जगत में कॉफी पीने की कई परंपराएं हैं. खाड़ी में होने वाली कॉफी ज्यादा कड़वी होती है और इसमें इलायची या अन्य मसालों का इस्तेमाल होता है. इसे मेहमान के आने के थोड़ी देर बाद दिया जाता है क्योंकि जल्दी देने का मतलब है कि आप उससे पिंड छुड़ाना चाहते हैं.
आज़ कॉफी वैश्विक हो चुकी है लेकिन यमन में इसका उत्पादन घटता जा रहा है. सस्ते आयात और अन्य फसलों पर जोर इसका मुख्य कारण है.
कॉफी के मूल स्थान यमन से 2011 में महज 2500 टन कॉफी का निर्यात किया गया. आज कोई भी अरब देश दुनिया के अहम उत्पादकों में शामिल नहीं है.
भारत में आज यदि कहा जाय कि काफी कहीं विदेश से आया हुआ पौधा है तो पहले तो कोई यकीन ही नहीं करेगा . एक ज़माने से तमिलनाडु , कर्नाटक और केरल में जो काफी उगाई जाती है उसे न केवल भारतीय पीते हैं वरन अन्य देशों को भी भेजी जाती है. यही नहीं अब तो इसे आन्ध्र प्रदेश, आसाम और अन्य उत्तर पूर्व के राज्यों में भी इसे खूब उगाया जा रहा है.
काफी के लिए इस अनूठे योगदान और बाबा बुढान की स्मृति को चिर स्थायी करने के लिए चन्दन को बुढान गिरि के नाम से जाना जाता है .
भारत में आज यदि कहा जाय कि काफी कहीं विदेश से आया हुआ पौधा है तो पहले तो कोई यकीन ही नहीं करेगा . एक ज़माने से तमिलनाडु , कर्नाटक और केरल में जो काफी उगाई जाती है उसे न केवल भारतीय पीते हैं वरन अन्य देशों को भी भेजी जाती है. यही नहीं अब तो इसे आन्ध्र प्रदेश, आसाम और अन्य उत्तर पूर्व के राज्यों में भी इसे खूब उगाया जा रहा है.
सच तो यह है कि जिस हिसाब से काफी का दक्षिण की संस्कृति में रच बस गयी है उसे देख कर यह मानना और भी मुश्क़िल है. दक्षिण भारत के ज्यादातर घरों में सुबह की शुरुआत काफी के कप से होती है.
सचाई यह है कि लगभग पंद्रहवी शताब्दी में मुस्लिम संत बाबा बुढान हज करने गए थे वे यमन से काफी की सात फलियाँ अपनी अंटी में उड़स कर चोरी छिपे ले आये और उन्होंने मैसूर के चंदन गिरि इलाके में उगाया, बाकी तो इतिहास है.
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