Heroine : Movie Review Confused Tale
हीरोइन : एक दिग्भ्रमित सी फ़िल्मी दास्ताँ
-प्रदीप गुप्ता
मधुर भंडारकर लीक से हटे हुए विषयों पर फिल्म बनाते हैं, जो भी विषय चुनते हैं उसकी तह तक पहुँच जाते हैं. उनकी इसी खूबी की वजह से कई अवार्ड से नवाजा गया है वो चाहे डांस बारों के जीवन पर आधारित 'चांदनी बार' हो या फिर सेलिब्रिटी क्लास के बारे में 'पेज थ्री' समीक्षकों और दर्शंकों दोनों ने उनकी फिल्मों को हाथों हाथ लिया था . पर इस बार अपने ही उद्द्योग के बारे में अपनी, अनुराधा तिवारी और मनोज त्यागी की कहानी पर फिल्म बनाते हुए वे कुछ तो दिग्भ्रमित से दिखे और कुछ विषय का विस्तार इतना कर लिया कि कहानी भूल भुलय्या सी लगने लगी.
अभिनेत्रिओं की एक दूसरे से प्रोफेशनल ईर्ष्या, एक दूसरे के रोल हथियाने के तौर तरीके, उनकी अपनी असुरक्षा, शादी शुदा मर्दों से विवाहेत्तर सम्बन्ध, सफलता के शिखर पर नितान्त अकेलापन, उनका बाई पोलर व्यक्तित्व, मुझे लगता है कि यदि कहानी को इन्ही मुद्दों पर केन्द्रित किया जाता तो एक अच्छी फिल्म बन सकती थी लेकिन मधुर भाई ने इसे बालीवुड का मुक्कमिल दस्तावेज बनाने के चक्कर में विलक्षण से सामान्य फिल्म बना कर रख दिया. ख़ास तौर पर बंगाली आर्ट फिल्म के निदेशक बाबू मोशाय का फिल्म बनाने, फिल्म में एक वेश्या के किरदार में सेलिब्रिटी स्टार माही अरोरा को लेने उस से काम लेने के तरीकों, कला निदेशक होने की जबरदस्त इगो के प्रसंग लंबा खींच कर उबाऊ बना दिया.
माही अरोरा के ज़टिल किरदार को डेवलप करने के लिए यह जरुरी नहीं था कि उसे क्षण प्रति क्षण सिगरेट फूंकते और शराब पीते दिखाया जाय, यह काम अभिनय और प्रतीकात्मक ढंग से भी किया जा सकता था. फिर भी करीना कपूर की तारीफ़ करनी होगी कि उसने इस चत्रित्र को जिया है जिसमे मधुबाला, स्मिता पाटिल, रेखा से लेकर जाया प्रदा जैसी कितनी ही अभिनेत्रियों की जिन्दगी की झलक दिखती है. निदेश के रूप में मधुर ने करीना के जिस्म के हर अंग को उत्तेजक रूप से दिखाया है. करीना अर्जुन प्रणय प्रसंग तो कहीं कहीं ब्लू फिल्म के टुकड़े लगते हैं. अभिनय के नाम पर क्रिकेट खिलाड़ी अंगद के रूप में रणवीर हुडा और शादीशुदा सेलिब्रिटी स्टार आर्यन खन्ना के पात्र में अर्जुन रामपाल ठीक ठाक हैं. पी आर प्रबंधक के रूप में दिव्या दत्ता जम गयी हैं. लेस्बियन बंगाली अभिनेत्री के रूप में शाहाना गोस्वामी और शाहीन खान के रूप में पूजा चोपरा के लिए विशेष करने जैसा कुछ नहीं था.
यू टी वी और मधुर दोनों ने मिल कर लक्मे से लेकर मेट्रो जैसे ब्रांडों का जबदस्त धन-दोहन किया है, इन-फिल्म ब्रांडिंग से लेकर को-ब्रांडिंग में इतनी उदारता से फूटेज इस्तेमाल की है कि लगता है कि फिल्म महज ब्रांड प्रोमोट करने का मंच है.
अगर गानों की बात की जाये तो इस फिल्म में गानों की कोई खास गुंजाईश नहीं थी, जो भी गाने हैं हाल से निकलने के बाद याद नहीं रहेंगे। आइटम सांग हलकट जवानी में सेक्स का तडका है पर फिर भी प्रभावित नहीं करता है .
अगर गानों की बात की जाये तो इस फिल्म में गानों की कोई खास गुंजाईश नहीं थी, जो भी गाने हैं हाल से निकलने के बाद याद नहीं रहेंगे। आइटम सांग हलकट जवानी में सेक्स का तडका है पर फिर भी प्रभावित नहीं करता है .

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