Ghazal : दौर गर्दिश का यह कैसा आया
दौर गर्दिश का यह कैसा आया
मुझसे बचता है अब मेरा साया
बीच में है दीवार शीशे की
फासला आज यह कैसा आया
अब कोई शै कहीं नहीं भाती
एक अंदाज क्या तेरा भाया
फूल ही फूल खिल उठे हर सू
एक पैगाम क्या तेरा आया
खोजते फिरते थे दुनिया में जिसे
अक्स अपन ही कुछ उसमे पाया
जिन्दगी का भी कोई मकसद है
जान पाये साथ जब तेरा पाया
@ प्रदीप गुप्ता
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