ghazal : मैं रहा उसके लिए आशियाँ बनाने में पल गुज़र गया वो सो गया तब तक
यह जो दौलत है चलेगी कब तक,
साथ अखलाक रहेगा मरते दम तक .
छू गई जिन्हें तेरे आंचल की महक
उन दरख्तों के बदन महक रहे अब तक
वो जो आते हैं बात हो नहीं पाती
यह सिलसिला चलेगा न जाने कब तक
फिर ना आऊंगा कहता रहा वो शख्स
तोड़ता रह जो कसमें खायीं अब तक
मैं रहा उसके लिए आशियाँ बनाने में
पल गुज़र गया वो सो गया तब तक
जो चला गया कभी लौटता नहीं
देर हो गई पता लगा जब तक
एक दिल था और गम ज़माने के
वो बिखर गया मैं जोड़ता जब तक
वो जो रूठे हैं मानते ही नहीं
हम न छोड़ेगें वो न मने जब तक
copyright pradeep gupta
साथ अखलाक रहेगा मरते दम तक .
छू गई जिन्हें तेरे आंचल की महक
उन दरख्तों के बदन महक रहे अब तक
वो जो आते हैं बात हो नहीं पाती
यह सिलसिला चलेगा न जाने कब तक
फिर ना आऊंगा कहता रहा वो शख्स
तोड़ता रह जो कसमें खायीं अब तक
मैं रहा उसके लिए आशियाँ बनाने में
पल गुज़र गया वो सो गया तब तक
जो चला गया कभी लौटता नहीं
देर हो गई पता लगा जब तक
एक दिल था और गम ज़माने के
वो बिखर गया मैं जोड़ता जब तक
वो जो रूठे हैं मानते ही नहीं
हम न छोड़ेगें वो न मने जब तक
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