गिला नहीं जो ज़माने ने सितम ढाए हैं
मलाल ये की अपनों से जखम खाए हैं
बुरा जो वक्त हो साया भी छोड़ जाता है
जे हे नसीब यहाँ तक तो साथ आये हैं
आँख मिलती है पलकों को झुका देते हैं
कोई तो राज़ है दिल मैं छुपा के लाये हैं
हम तो निकले थे ज़माने में तलाशने को वफ़ा
ये क्या कम है की बापस लौट आये ही लौट आये हैं
उठाये फिरता था कंधे पे गम ज़माने के
उसी को वे कंधे पे रख के पे रख के लाये हैं..
--------------कॉपीराईट प्रदीप गुप्ता
मलाल ये की अपनों से जखम खाए हैं
बुरा जो वक्त हो साया भी छोड़ जाता है
जे हे नसीब यहाँ तक तो साथ आये हैं
आँख मिलती है पलकों को झुका देते हैं
कोई तो राज़ है दिल मैं छुपा के लाये हैं
हम तो निकले थे ज़माने में तलाशने को वफ़ा
ये क्या कम है की बापस लौट आये ही लौट आये हैं
उठाये फिरता था कंधे पे गम ज़माने के
उसी को वे कंधे पे रख के पे रख के लाये हैं..
--------------कॉपीराईट प्रदीप गुप्ता
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