मुझे समझ लो
मैं गगन हूँ मैं धरा हूँ
सृष्टि का विस्तार हूँ
काल की सीमा से परे
मैं अलग संसार हूँ.
चेतना के बीज में हूँ
सूक्ष्म से भी सूक्ष्म हूँ
स्थूल हर कण कण में हूँ
शून्य में भी पूर्ण हूँ .
एक युग से दूसरे तक
मैं निरंतर चल रहा हूँ
जीव के स्पंदनों में
चेतना बन जग रहा हूँ।
लोग मुझ को खोजते हैं
मंदिरों में मस्जिदों में
और ज्ञानी दूढ़ते हैं
वेद की रिचाओं में
मैं तो बसा करता हूँ
दिल के किसी भी कोने में
ढूढना है ढूढ़ लेना
बस अपने सीने में।
और मेरा नाम लेकर
बाँट रखा है युगों से
आदमी को जातियों में
धर्म और कबीलों में.
रक्त रंजित कर चुके हैं
इस धरा को बार बार
नाम से मेरे किया है
मानवता को तार तार
मैं नहीं सीमित किताबों
मूर्ति और शिवालों में
गर नहीं समझे इसे तो
मिट जाओगे इशारों में ....
सृष्टि का विस्तार हूँ
काल की सीमा से परे
मैं अलग संसार हूँ.
चेतना के बीज में हूँ
सूक्ष्म से भी सूक्ष्म हूँ
स्थूल हर कण कण में हूँ
शून्य में भी पूर्ण हूँ .
एक युग से दूसरे तक
मैं निरंतर चल रहा हूँ
जीव के स्पंदनों में
चेतना बन जग रहा हूँ।
लोग मुझ को खोजते हैं
मंदिरों में मस्जिदों में
और ज्ञानी दूढ़ते हैं
वेद की रिचाओं में
मैं तो बसा करता हूँ
दिल के किसी भी कोने में
ढूढना है ढूढ़ लेना
बस अपने सीने में।
और मेरा नाम लेकर
बाँट रखा है युगों से
आदमी को जातियों में
धर्म और कबीलों में.
रक्त रंजित कर चुके हैं
इस धरा को बार बार
नाम से मेरे किया है
मानवता को तार तार
मैं नहीं सीमित किताबों
मूर्ति और शिवालों में
गर नहीं समझे इसे तो
मिट जाओगे इशारों में ....

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