Hindi Nazm बम्बई सब देखती है मगर अब मुंबई बन के मौन रहती है !
एक लंबे अन्तराल के बाद
इसी लिए सब कुछ छोड़ के फिर से वापस लौट आया हूँ .
मैं वापस लौट आया हूँ
और आप लोगों की मुंबई में अपनी बम्बई तलाश करता हूँ.
मुझे याद है कसबे के तालाब में तैरते हुए
एक दिन मुझे जब एहसास हुआ
कि इसकी हदें मेरी महत्वाकान्शाओं के लिए तंग हो चुकी हैं
मैं अपने सारे सपनों को
माँ की दी हुए पोटली में बाँध कर बम्बई आ गया था.
तब इसी ने मुझे अपना दामन फैला कर दोनों हाथों से सहारा दिया था
दिन को मेहनत कर के रात को फुटपाथ पर सोता था
यह मेरी सगी माँ की तरह अपने आँचल से हवा करती थी.
इसने मेरी क़ाबलियत से कहीं जियादा काम दिया
एक रात भी भूखा सोने न दिया.
फुटपाथ से फ़्लैट तक का सफ़र इतना आसान नहीं था
वडा पाव बेचने से लेकर फिल्मों की कहानी तक बेच डालीं
अगर नहीं बेचा तो बस अपना जमीर
इस लिए फ़्लैट मिला मगर अपना नहीं किराए का.
कुछ तो हालात , कुछ मजबूरियां तो कुछ दोस्तों के सितम
बम्बई छोड़ के कभी दिल्ली, कभी लखनऊ, कभी कलकत्ता तो कभी दखन
पैर के चक्कर न्यूयार्क से वाशिंगटन भी लेके गए
पैसे मिले शोहरत मिली पर नहीं मिला कहीं भी बम्बई जैसा एहसास
दरअसल इस शहर की मिटटी में भी एक नशा है
यहाँ समंदर भी नशीला है नशा घुला रहता है हवाओं में .
यहाँ तक कि दोस्तों ने जख्म दिए थे उनमें भी नशा लगता था.
इसी लिए सब कुछ छोड़ के फिर से वापस लौट आया हूँ .
मेरी जान मेरी इमां बम्बई तुम अब कैसी हो ?
आज भी रोज ख्वाबों में लोग जीते हैं
आज भी ट्रेन और बसों में भर के ख्वाब आते हैं
यही ख्वाब ही तो मायूसियों और मुफलिसी से लड़ते हैं
एक ख्वाब टूट भी जाय तो कई और ख्वाब बुनते हैं
ये ख्वाब ही तो बम्बई में मेरे दोस्त
हर शै को जीने के लिए जिन्दा रखते हैं.
पर मेरी बम्बई बदल सी गयी है इन गुदिश्ता सालों में.
पहले जो होती थी सहजी और सिमटी सी बम्बई
साल दर साल बिल्डर बाबू और राजनेताओं की साजिश से
बेतरतीब जंगली बेल की तरह फैलती गयी
साल दर साल बिल्डर बाबू और राजनेताओं की साजिश से
बेतरतीब जंगली बेल की तरह फैलती गयी
और जंगलों, ताल तल्लियों को निगलती गयी
नतीजा यह कि हरी भरी पहाड़ियां भी चौरस हो गयी हैं,
हरियाली कम बची इमारतें बहुत ज्यादा हैं
हवा में खुशबुएँ कम बची आहें ज्यादा हैं.
बम्बई मैं शुक्रगुजार हूँ तेरे समन्दर का
जो शिव की तरह जहरीली हवाओं का आचमन करता है
और बदले में शीतल बयार दे देता है.
सड़क के हाल भी बेहाल है
पैदल चलने के फुटपाथ हाकरों के हवाले हैं
पैदल चलने के फुटपाथ हाकरों के हवाले हैं
बम्पर के पीछे बम्पर कहीं सड़क दिखती ही नहीं
फिएट और एम्बेसडर की जगह ले चुकी हैं चमचमाती खूबसूरत कारें
मगर तमीज कम ही बची है कार वालों में.
रफ़्तार ने छीन लिया है अख़लाक़ को
आगे दौड़ने की जिद ने छोड़ दिया दोस्ती के एहसास को.
मैं तो अब भी भीड़ के साथ लोकल में सफ़र करता हूँ
सामने से गुजरती फास्ट लोकल के फुटबोर्ड पे टंगे चेहरे
देखता हूँ तो जीने का हौसला बढ़ता है.
तेज दौडती लोकल के दो डिब्बे होते हैं हुस्न वालों के,
सरसराती साड़ियाँ, टॉप और कुरते हवाओं के हवाले से
मुझे और भी जीने के लिए कहते हैं
कभी आँखें भी मिल जाती हैं और जुदा हो जाती हैं
मैं चाहता हूँ कि या तो मेरी स्लो लोकल फास्ट चले
या फिर सामने की फास्ट लोकल जरा स्लो हो जाये
इसी बीच कोई और फास्ट लोकल धडधढ़ा के गुजर जाती है
मेरी सांस थम के परीशां चेहरों पे अटक जाती है.
यह सच है अब बम्बई में पैसा बेशुमार आ गया है.
पर यह भी सच है अख़लाक़ गिर गिर के और गिर गया है
सोना और डालर बहत ऊपर चढ़ गया है
इस सब के बीच अब आदमी आदमी नहीं रहा है
वो कांग्रेस, एन सी पी, शिव सेना, एम् एन एस, हिन्दू या मुस्लमान में बंट गया है.
बम्बई तुझे पता है तेरे यहाँ हजारों लाखों लोग अपनी ग़ुरबत ढोते ढोते
तेरा दर्द और बोझा भी ढोते हैं
अपना पेट आधा ही भरा हो पर दूध सब्जियां समय पर दे देते हैं
फिर भी कभी परदेशी तो कभी पर प्रांतीय होने का दंश सहते है
बम्बई तू यह सब देखती है
मगर अब मुंबई बन के मौन रहती है.


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