डांस इंडिया डांस Season III







हर आदमी (इस में महिला भी शामिल कर लें) अपने बाथ रूम में सिंगर होता है, कई बार तो वो मजबूरी में   भी गाता है क्योंकि बाथ रूम की चिटखनी टूटी हुई होती है. गंभीरता के साथ बात करें तो हर इक बन्दे में एक गायक या डांसर छुपा होता है पर वो महज बाथरूम तक ही सिमट कर रह जाता है, हाँ कभी कभी दोस्तों की महफ़िल में या फिर शादी व्याह के अवसर पर यह हुनर  जरा सा जाग कर सो जाता है. लेकिन मानना पडेगा की मनोरंजन चैनलों  पर जब से डांस के रियल्टी शो शुरू  किये हैं तब से नयी प्रतिभाओं को एक संजीदा प्लेटफार्म मिला है. डांस इंडिया डांस को अब जी टीवी पर तीसरा साल  होने जा  रहा है. इसकी शुरुआत  २००९ की जनवरी में हुई थी . मकसद था कि बालीवुड, समकालीन, हिप हॉप, जाज, कलारिपट्टू, टेक्नो, साम्बा, सालसा, बेले   जैसी डांस शैलियों से देश की युवा पीढी का साक्षत्कार कराया जायऔर उनके बीच उभरती  प्रतिभाएं हैं उन्हें आगे बढाया जाय .  अन्य चैनल पर भी कई डांस शो चल रहे हैं लेकिन जितनी हाइप   डांस इंडिया डांस  ने  पैदा  की है उतनी दूसरे प्रतियोगी कार्यक्रम नहीं कर पाए हैं. 

आज डांस इंडिया डांस के   तीसरे  सीजन का अंतिम चरण  आज बम्बई के अंधेरी  स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स में संपन्न हुआ.  इसमें राउरकेला उड़ीसा से आयी राजस्मिता को भारत के बेहतरीन डांसर के ख़िताब से नवाजा गया. फिनाले देख कर लगा कि  आज कल रियल्टी शो के आयोजन का स्तर खासा बड़ा हुआ है, भव्यता बढ़ी है, मंच अब ४०-५० मीटर का नहीं रह गया है इवेंट मेनेजर अब पूरे आयोजन स्थल को ही स्टेज  में बदल देते हैं. बारह डांसर को डांस करते हुए १०० मीटर की ऊंचाई से स्टेडियम  में उतार देना टेक्नालाजी और डांस कौशल का मेल मिलाप ही कहा जाएगा. डांसर से भी कहीं अधिक कौशल रेमो डी'सूजा, गीता कपूर, टेरेंस लेविस जैसे डांस मास्टर का है जो उड़ीसा और आसाम के खाँटी गांवों या पिछड़े इलाके से आये हुए अधपके कलाकारों को पेशेवर स्तर तक पहुंचा  देते हैं. बड़ी कम्पनियों को और बड़ा बनना होता है इसलिए उन्हें नए बाजारों की तलाश रहती है , रियल्टी शो में देश के कोने कोने से सहभागी आते हैं उन्ही के साथ आयोजनकर्ता क्षेत्रीय भावनाओं को जोड़ देते हैं, जिस इलाके के फाइनलिस्ट रहते हैं वहां के लोग ,  भावनात्मक रूप से शो से जुड़ जाते हैं , इस भावनात्मक ज्वार पर सवार होने के लिए जो  स्पांसर  जुड़ते हैं  उनके लिए पैसा कोई समस्या नहीं होता है. आयोजक भले ही कितना ही निष्पक्ष होने का दावा करें लेकिन अंतिम विजेता उसी इलाके के होते हैं जहाँ स्पांसर को अपनी पकड़ मजबूत करनी होती है.

दरअसल ये सारे  शो पहले से ही लिपिवद्ध होते हैं , किस प्रतियोगी के समर्थकों को कितना चीखना चिल्लाना है, कैसे इमोशन को बाहर लाना है इस के लिए भी  सहायक निदेशक प्राम्प्ट करते हैं . असली दर्शकों के बीच पूर्व निर्धारित
एक्ट के लिए इवेंट मनेजर के लोग झंडे, तख्ती लहराने के लिए घुले मिले रहते हैं. टी  वी परदे पर जब कार्यक्रम दिखता है तो यह प्रायोजित पक्ष स्क्रिप्ट का हिस्सा बन कर बैठ जाता है. टी वी दर्शक इस सारे तिलिस्म के मायाजाल  में गुम हो जाता है.  

    

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