Music Director Ravi : Music Craftman with Velvet Touch
संगीतकार रवि नहीं रहे, समाचार पढ़ा और उसके साथ ही पुरानी यादें और मुलाकातें ताजा हो गईं.
रवि शंकर शर्मा जिन्हें हम सब रवि के नाम से जानते हैं , हिंदी फिल्मों के उन चंद संगीतकारों मैं से एक हैं जिन्होंने फ़िल्मी गीत संगीत को ऐसी ऊंचाई दी कि आज भी वहां तक पहुचना मुश्किल है. वो चाहे 'नील कमल' का 'बाबुल की दुआएं लेती जा जा तुझ को सुखी संसार मिले ' जैसा सदाबहार विदाई गीत हो या फिर वक्त का ' ऐ मेरी ज़ोहरा जबीं, तुझे मालूम नहीं तू अभी तक है हसीं और मैं जवां, तुझ पे कुर्बान मेरी जान मेरी जान ' जैसा जवां मर्द और जवां अंदाज गाना हो या फिर 'चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों '(गुमराह), 'चौदहवीं का चाँद हो या आफ़ताब हो ' (चौहदवीं का चाँद), 'नीले गगन के तले, धरती का प्यार पले' (हमराज), 'तुम्ही मेरी मंदिर, तुम्ही मेरी पूजा, तुम्ही देवता हो ' (खानदान), 'आगे भी जाने ना तू पीछे भी जाने ना तू'(वक्त) इन गीतों ने रवि को हर दिल अजीज संगीतकार बना दिया आज भी ये गाने खूब बजते हैं और सराहे जाते हैं.
जान कर हैरानी होगी कि रवि ने शास्त्रीय संगीत की तो शिक्षा ही नहीं ली थी, पिता भजन गाते थे सो उनकी सोहबत में गाना सीखा, तबला और हारमोनियम पर भी हाथ आजमाया. रवि की परवरिश दिल्ली मैं एक बहुत ही साधारण परिवार मैं हुई थी, कम उम्र में शादी भी हो गयी थी. पेट पालने के लिए इलेक्ट्रिशियन का काम सीखा. पर मन मैं कहीं इच्छा थी कि फिल्मों मैं गायक बनें संगीत में भी हाथ आजमायें. पिता ने युवा रवि की महत्वाकांक्षा को समझा और बम्बई जा कर जिद्दोजहद करने के लिए सहमति दे दी.
बम्बई आ तो गए पर काम आसानी से नहीं मिला, शुरू में सर पे छत का बंदोबस्त भी नहीं था, मलाड लोकल स्टेशन पर कई रात गुजरीं, कोरस गायक के रूप में अपना नसीब आजमाया, दिन में कोरस कलाकार के रूप में संघर्ष और साथ ही साथ पेट पालने के लिए इलेक्ट्रिशियन का काम किया. हसन लाल भगत राम ने तो कोरस गायक के रूप में भी काम देने से इनकार कर दिया. हेमंत कुमार ने कोरस गवाया, बाद में रवि उनके लिए तबला बजाया, सहायक के रूप में भी काम किया. सन पचपन के आते आते रवि की किस्मत बदली देवेन्द्र गोयल ने उन्हें 'वचन' फिल्म में ब्रेक दिया. सन पचपन के आस पास संगीत बहुत ही सुरीला था और एक से बढ़ कर एक संगीतकार थे. सी रामचंद्र , नौशाद , एस डी बर्मन, ओ पी नैय्यर , शंकर जयकिशन, हेमंत कुमार के बीच अपनी अलग पहचान बनाना अपने आप में चुनौती से कम नहीं था.
रवि ने सबसे बेहतरीन संगीत अगर दिया तो बी आर चोपड़ा के लिए. बी आर फिल्म्स के बैनर तले रवि ने एक के बाद एक हिट संगीत 'गुमराह', 'वक्त', 'हमराज', 'आदमी और इंसान', 'धुंध', 'निकाह' में दिया. रचनात्मक रूप से रवि और साहिर की जोड़ी खूब चली. सम्मान भी खूब मिले, फिल्म फेयर अवार्ड 'घराना' और 'खानदान' के लिए मिले.
बहुत कम लोगों को पता होगा कि रवि ने मलयालम की अनेक फिल्मों में हिट संगीत बॉम्बे रवि के नाम से दिया था.
१९८७ में पदम् श्री भी मिला.
रवि का मेरे अपने शहर मुरादाबाद से नजदीक का रिश्ता था, मोहल्ला किसरोल में उनकी ननसाल थी, मुझे आज भी याद है अंदाजन सन साठ के आस पास जब रेडियो सीलोन से सुबह आठ से नौ के बीच उनके गीत बजते थे तो मोहल्ले में लोगों की छाती चौड़ी हो जाया करती थी. शान और शौकत उन्हें छू भी नहीं गयी थी, जब कभी आते तो मोहल्ले में इस सहजता से मिलते कि लोगों को यकीन ही नहीं होता था कि वे किसी सेलिब्रिटी से मिल रहे हों. बम्बई में भी कई बार मिलना हुआ कभी पत्रिका के साक्षात्कार के लिए तो कभी ऐसे ही किसी रेकार्डिंग या समारोह में, बड़े ही खलूस और मोहब्बत से मिलते थे.
रवि का आखिरी समय अच्छा नहीं बीता. पत्नी का निधन १९८६ के करीब हुआ था, उस से उबरने की उन्होंने कोशिश की संगीत में दिल लगाया. पर हाल ही में उनके अपने ही बेटे और बहु ने सम्पति को ले कर बेहद अशोभनीय विवाद किया जिस से वे विल्कुल टूट से गए थे. लाखों करोड़ों संगीत प्रेमियों के दिल खुशी से भरने वाले रवि का ऐसा अंत होगा किसी ने सोचा भी ना था.
रवि शंकर शर्मा जिन्हें हम सब रवि के नाम से जानते हैं , हिंदी फिल्मों के उन चंद संगीतकारों मैं से एक हैं जिन्होंने फ़िल्मी गीत संगीत को ऐसी ऊंचाई दी कि आज भी वहां तक पहुचना मुश्किल है. वो चाहे 'नील कमल' का 'बाबुल की दुआएं लेती जा जा तुझ को सुखी संसार मिले ' जैसा सदाबहार विदाई गीत हो या फिर वक्त का ' ऐ मेरी ज़ोहरा जबीं, तुझे मालूम नहीं तू अभी तक है हसीं और मैं जवां, तुझ पे कुर्बान मेरी जान मेरी जान ' जैसा जवां मर्द और जवां अंदाज गाना हो या फिर 'चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों '(गुमराह), 'चौदहवीं का चाँद हो या आफ़ताब हो ' (चौहदवीं का चाँद), 'नीले गगन के तले, धरती का प्यार पले' (हमराज), 'तुम्ही मेरी मंदिर, तुम्ही मेरी पूजा, तुम्ही देवता हो ' (खानदान), 'आगे भी जाने ना तू पीछे भी जाने ना तू'(वक्त) इन गीतों ने रवि को हर दिल अजीज संगीतकार बना दिया आज भी ये गाने खूब बजते हैं और सराहे जाते हैं.
जान कर हैरानी होगी कि रवि ने शास्त्रीय संगीत की तो शिक्षा ही नहीं ली थी, पिता भजन गाते थे सो उनकी सोहबत में गाना सीखा, तबला और हारमोनियम पर भी हाथ आजमाया. रवि की परवरिश दिल्ली मैं एक बहुत ही साधारण परिवार मैं हुई थी, कम उम्र में शादी भी हो गयी थी. पेट पालने के लिए इलेक्ट्रिशियन का काम सीखा. पर मन मैं कहीं इच्छा थी कि फिल्मों मैं गायक बनें संगीत में भी हाथ आजमायें. पिता ने युवा रवि की महत्वाकांक्षा को समझा और बम्बई जा कर जिद्दोजहद करने के लिए सहमति दे दी.
बम्बई आ तो गए पर काम आसानी से नहीं मिला, शुरू में सर पे छत का बंदोबस्त भी नहीं था, मलाड लोकल स्टेशन पर कई रात गुजरीं, कोरस गायक के रूप में अपना नसीब आजमाया, दिन में कोरस कलाकार के रूप में संघर्ष और साथ ही साथ पेट पालने के लिए इलेक्ट्रिशियन का काम किया. हसन लाल भगत राम ने तो कोरस गायक के रूप में भी काम देने से इनकार कर दिया. हेमंत कुमार ने कोरस गवाया, बाद में रवि उनके लिए तबला बजाया, सहायक के रूप में भी काम किया. सन पचपन के आते आते रवि की किस्मत बदली देवेन्द्र गोयल ने उन्हें 'वचन' फिल्म में ब्रेक दिया. सन पचपन के आस पास संगीत बहुत ही सुरीला था और एक से बढ़ कर एक संगीतकार थे. सी रामचंद्र , नौशाद , एस डी बर्मन, ओ पी नैय्यर , शंकर जयकिशन, हेमंत कुमार के बीच अपनी अलग पहचान बनाना अपने आप में चुनौती से कम नहीं था.
रवि ने सबसे बेहतरीन संगीत अगर दिया तो बी आर चोपड़ा के लिए. बी आर फिल्म्स के बैनर तले रवि ने एक के बाद एक हिट संगीत 'गुमराह', 'वक्त', 'हमराज', 'आदमी और इंसान', 'धुंध', 'निकाह' में दिया. रचनात्मक रूप से रवि और साहिर की जोड़ी खूब चली. सम्मान भी खूब मिले, फिल्म फेयर अवार्ड 'घराना' और 'खानदान' के लिए मिले.
बहुत कम लोगों को पता होगा कि रवि ने मलयालम की अनेक फिल्मों में हिट संगीत बॉम्बे रवि के नाम से दिया था.
१९८७ में पदम् श्री भी मिला.
रवि का मेरे अपने शहर मुरादाबाद से नजदीक का रिश्ता था, मोहल्ला किसरोल में उनकी ननसाल थी, मुझे आज भी याद है अंदाजन सन साठ के आस पास जब रेडियो सीलोन से सुबह आठ से नौ के बीच उनके गीत बजते थे तो मोहल्ले में लोगों की छाती चौड़ी हो जाया करती थी. शान और शौकत उन्हें छू भी नहीं गयी थी, जब कभी आते तो मोहल्ले में इस सहजता से मिलते कि लोगों को यकीन ही नहीं होता था कि वे किसी सेलिब्रिटी से मिल रहे हों. बम्बई में भी कई बार मिलना हुआ कभी पत्रिका के साक्षात्कार के लिए तो कभी ऐसे ही किसी रेकार्डिंग या समारोह में, बड़े ही खलूस और मोहब्बत से मिलते थे.
रवि का आखिरी समय अच्छा नहीं बीता. पत्नी का निधन १९८६ के करीब हुआ था, उस से उबरने की उन्होंने कोशिश की संगीत में दिल लगाया. पर हाल ही में उनके अपने ही बेटे और बहु ने सम्पति को ले कर बेहद अशोभनीय विवाद किया जिस से वे विल्कुल टूट से गए थे. लाखों करोड़ों संगीत प्रेमियों के दिल खुशी से भरने वाले रवि का ऐसा अंत होगा किसी ने सोचा भी ना था.
| आपका संगीत हमेशा आपको जीवित रखेगा |
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