फागुनी दोहे
कैसी मस्ती छा गई फागुनी पवन के संग
कहीं ढोल पर थाप है कहीं बजे मृदंग
गोरी निकली खेलने साथ पिया के रंग
रस में डूबी आत्मा भीगे सारे अंग
होली तेरे रंग में कहाँ बची वो बात
न तो टेसू फूल हैं न ही बचे पलाश
सोच गाँव में खेलने आया कल्लू फाग
उजड़े उजड़े बाग़ हैं सूखे दिखें तालाब
रोजी रोटी के लिए शहर बन गया गाँव
बनी बाग़ पे बिल्डिंगें पब बन गया तालाब
फेसबुक वाले फ्रेंड्स से कैसे खेलें फाग
दोस्त नहीं जुड़ पा रहे कैसे चले समाज
दोस्त नहीं जुड़ पा रहे कैसे चले समाज
जींस टाप के दौर में केवल हेलो हाय
रंगों की बरसात में गोरी न शरमाय.



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