उत्तर प्रदेश में कांवरियों का नेशनल हाइवे पर कब्ज़ा

मेरा विचार है कि  धर्म व्यक्ति को एक बेहतर इन्सान बनाने का माध्यम है. हमारे पुरखों ने समाज की व्यवस्था को सुचारू रखने के लिए जितने भी कायदे और  कानून संभव हो सकते थे उन्हें धर्म का आवरण पहना कर एक ऐसा रूप प्रदान कर दिया जिससे साल दर साल एक नियमवद्ध शासन व्यस्था चलती रही है. लेकिन हाल ही में हरिद्वार यात्रा के दौरान मुझे लगा कि कि अब पुरखों द्वारा तय की गयी व्यवस्था को तोड़ मरोड़ कर आम नागरिक को थोक के भाव से सताया जा रहा हैऔर उसमें हिम्मत नहीं की इसके खिलाफ आवाज़ उठा सके.


शिव का नाम बदनाम : सड़क पर अव्यवस्था 
एक बरसों  लम्बे अंतराल के बाद शिव रात्रि  से कोई पांच दिन पूर्व , मेरा कार द्वारा बरेली से हरिद्वार जाने का निर्णय जरा इमोशनल था. इस यात्रा के बीच पड़ने वाले कई गाँव , कस्बों और शहरों के साथ मेरा बचपन जुड़ा हुआ है, रामपुर, मुरादाबाद, कांठ, सहसपुर, धामपुर, नगीना और यहाँ तक कि नजीबाबाद तक यादों का एक खूबसूरत हजूम है. रास्ते भर रोड को देख  कर लगता है कि चाँद जमीं पर उतर आया है, यानि   सड़क बड़े बड़े क्रेटरों   में बदल चुकी है.   मायावती जब उत्तर प्रदेश के विकास के दावे करती हैं तो ये टूटी फूटी सड़कें उनका उपहास उडाती दिखती हैं. सड़क पर रफ़्तार  1० -२० कि मी से ज्यादा संभव ही नहीं था . एक एक  पड़ाव को पार करने के बाद हड्डियाँ सचमुच कीर्तन करने लगीं, वो तो अपने बचपन की यादों को कनेक्ट करते करते इस कीर्तन का एहसास ही नहीं हुआ.


नगीना के आगे की  सड़क पर हरिद्वार कांवर ले कर गंगा जल लाने वालों की संख्या देख कर हैरानी हुई. उन मित्रो के लिए जरा सी जानकारी कि  कांवर क्या होती है और कांवरिये किन्हें कहते हैं. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए जो लोग श्रावण मास  या फिर शिव रात्रि पर मंदिर में गंगा जल चढाते हैं और यह गंगा जल  अपने गाँव या शहर से पैदल हरिद्वार जा कर लाते हैं उन्हें कांवरिये कहते हैं. ये लोग एक मोटे बांस को सजा कर उसके ऊपर खूबसूरत कपडे, खिलोनों  की सजावट करते हैं, बांस के दोनों छोर पर गंगा जल लटकाने की व्यवस्था  रहती है वस् यही कांवर कहलाती है.


 रास्ते मैं सड़क पर अव्यवस्था का यह  आलम कि दोनों तरफ का ट्रेफिक   तो सड़क की पटरी से भी नीचे रेंग रहा था, पूरी सड़क पर कांवरियों का कब्ज़ा था, पुलिस वाले या तो थे ही नहीं या फिर दिखे भी तो महज दर्शक के रूप में, भला धार्मिक यात्रा पर निकले कांवरियों से वो पंगा कैसे ले सकते हैं, पालिटिकल इशु  बन जायेगा, सब की सिम्पेथी कांवरियों के साथ होगी .   वैसे भी ये जो कांवरिये हैं अपने गाँव   और मुहल्लों से झुण्ड के झुण्ड में  रवाना होते हैं .


हमें तो उस दिन , नजीबाबाद से आगे हरिद्वार का महज ५५ किमी का रास्ता तय करने में लगभग पांच  घंटे लग गए. सुना यह है कि कांवरियों की सहूलियत के लिए श्रावण मास के आख़िरी सोमवार से पूर्व तीन दिनों के लिए राष्ट्रिय राजमार्ग ही बंद कर दिया जाता है! जरा सोच कर देखिये यदि किसी गंभीर किस्म के बीमार व्यक्ति को कहीं क्रिटिकल  इलाज के लिए ले जाना हो तो क्या होगा, किसी का इंटरव्यू  हो तो नहीं पहुँच सकेगा ,  लेकिन ये कांवरिये किसी भी राजनैतिक  दल के लिए पोटेंशियल वोट बैंक हैं इस लिए किसी की हिम्मत नहीं कि उन्हें एक सिंगल लाइन में ही सफ़र करने की सलाह दे दें. यही नहीं अगर किसी कांवरिये को किसी वाहन की चपेट में खुरेंच भी लग जाती है तो पूरे रास्ते पर जाम लगा दिया जाता है और वाहनों की तोड़ फोड़ अलग .


भय्या  वाहनों के  के लिए सड़क दिख रही है कहीं ?

तो जरा सोच के बताएं कि धर्म के नाम पर कांवरियों को यह जो कांवर लाने के नाम पर सड़क को घेरने का, नेशनल हाइवे तक को बंद कर डालने का और आम आदमी को सताने का जो ओपन लाइसेंस दे दिया गया है  वो ठीक है क्या ? क्या उनके अपने धार्मिक विश्वास या अन्धविश्वास  के कारण जो पूरे समाज को जो परेशानी होती है उसका  उनको कोई एहसास है ?

    

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