देव आनंद : सदाबहार युवा रोमानी हीरो
देव आनंद नहीं रहे.
फ़िल्मी दुनिया के शानदार सदाबहार सितारे देव आनंद अपनी लम्बी पारी खेल कर कर आसमान के सितारों में शामिल हो गए हैं और अपने बेहतरीन अभिनय के कारण हमेशा भारतीय फिल्म दर्शकों के दिल में दमकते रहेंगे. देव साहेब ने जबरदस्त लम्बी पारी खेली, जिस उम्र में दूसरे कलाकार निष्क्रिय हो कर गुमनामी के अँधेरे में खो जाते हैं देव साहेब फिल्म निर्माण के सारे पक्षों से सक्रिय रूप से जुड़े रहे . देव साहेब के फिल्मों के साथ रचनात्मक योगदान का यह सिलसिला लगभग ६४ साल तक निर्बाध रूप से चलता रहा.
एक ऐसे कलाकार के बारे में, जो कि इतने समय तक शो बिजनेस में रहा हो उसके बारे में कुछ भी एक्सक्लुसिव कहना खासा मुश्किल है. उनकी फ़िल्में , उनके रोमांस, ग्रेगरी पैक की स्टाइल में झुक कर चलना, डाइलोग बोलने का अलग अंदाज इन सारी चीजों को सभी लोग वखुबी परिचित हैं. मैंने भी देव साहेब की फ़िल्में तो एक एक करके सभी देख डालीं, जानी मेरा नाम , गाइड , हरे राम हरे किशन कितनी बार देखीं अब याद भी नहीं है . देव साहेब से रु-ब-रू होने का मौका पहली बार केतनेव में ८६ के आस पास मिला जब मैं किसी फिल्म का प्रीव्यू देखने गया था. चुस्त दुरुस्त देव साहेब उन दिनों ६३ साल के रहे होंगे, जिस शिद्दत के साथ वे एक नौजवान संगीतकार के साथ अपनी अगली फिल्म के संगीत के बारे में चर्चा कर रहे थे उस से मैं बेहद प्रभावित हुआ.
उसके बाद उनसे मुलकात के बहुत मौके मिले. हर बार उनके एक न एक स्फूर्तिवान या फिर प्रेरणादायक पक्ष का पता चलता था. एक और खास बात देव साहेब अतीत में नहीं वर्तमान में जीते थे.
८८ वर्ष की उम्र तक जवान बने रहने के लिए उनके सहज अनुकरणीय फंडा थे. जीवन बहुत ही नियम संयम के साथ जीते थे. सुबह जल्दी उठ कर टहलना फिर कई सारे अख़बार पढना उनकी आदत में शुमार था. उनकी अपनी फिल्मों के आईडिया समाचार सुर्खिओं से आते थे. उनका उठना - बैठना फिल्म वालों में जरा कम था, ज्यादातर निकट के लोग अन्य विविध क्षेत्रों के थे. शायद इसी वजह से उनका सोच अन्य फिल्म वालों से अलग था. यदि उनकी हिट और फ्लॉप फिल्मों की सूची बनाई जाय तो उन में फ्लॉप ज्यादा निकल आएँगी . फिर भी वे पैशन के साथ जुटे रहते थे. खाने पीने पर जबरदस्त नियंत्रण रखते थे.
आखिरी बार मेरी उनसे मुलाकात टीना अम्बानी की पत्रिका हारमनी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में हुई थी, देव साहेब चुस्त जींस, कलरफुल शर्ट, एक दम माड जाकेट में थे और फिर जाकेट पर उनका सिग्नचर स्कार्फ khoob फब रहा था, चाल ऐसी कि अच्छे-अच्छे नौजवान भी मुकाबला ना कर सकें. डायलोग डिलिवेरी का अंदाज इस उम्र में भी कड़क, देस परदेस फिल्म के दिनों की यादें ताजा हो गयीं.
आज जब देव साहेब नहीं रहे, सारे टी वी चैनल उनकी फ़िल्में, गाने और यादों के जरिये अपनी टीआरपी उठाने में लगे हैं ,
क्योंकि देवानंद का जिक्र मात्र यादों के दरीचे में ले जाता है, जब मेलोडी किंग होती थी और फिल्म में कहानी भी रहती थी !
फ़िल्मी दुनिया के शानदार सदाबहार सितारे देव आनंद अपनी लम्बी पारी खेल कर कर आसमान के सितारों में शामिल हो गए हैं और अपने बेहतरीन अभिनय के कारण हमेशा भारतीय फिल्म दर्शकों के दिल में दमकते रहेंगे. देव साहेब ने जबरदस्त लम्बी पारी खेली, जिस उम्र में दूसरे कलाकार निष्क्रिय हो कर गुमनामी के अँधेरे में खो जाते हैं देव साहेब फिल्म निर्माण के सारे पक्षों से सक्रिय रूप से जुड़े रहे . देव साहेब के फिल्मों के साथ रचनात्मक योगदान का यह सिलसिला लगभग ६४ साल तक निर्बाध रूप से चलता रहा.
एक ऐसे कलाकार के बारे में, जो कि इतने समय तक शो बिजनेस में रहा हो उसके बारे में कुछ भी एक्सक्लुसिव कहना खासा मुश्किल है. उनकी फ़िल्में , उनके रोमांस, ग्रेगरी पैक की स्टाइल में झुक कर चलना, डाइलोग बोलने का अलग अंदाज इन सारी चीजों को सभी लोग वखुबी परिचित हैं. मैंने भी देव साहेब की फ़िल्में तो एक एक करके सभी देख डालीं, जानी मेरा नाम , गाइड , हरे राम हरे किशन कितनी बार देखीं अब याद भी नहीं है . देव साहेब से रु-ब-रू होने का मौका पहली बार केतनेव में ८६ के आस पास मिला जब मैं किसी फिल्म का प्रीव्यू देखने गया था. चुस्त दुरुस्त देव साहेब उन दिनों ६३ साल के रहे होंगे, जिस शिद्दत के साथ वे एक नौजवान संगीतकार के साथ अपनी अगली फिल्म के संगीत के बारे में चर्चा कर रहे थे उस से मैं बेहद प्रभावित हुआ.
उसके बाद उनसे मुलकात के बहुत मौके मिले. हर बार उनके एक न एक स्फूर्तिवान या फिर प्रेरणादायक पक्ष का पता चलता था. एक और खास बात देव साहेब अतीत में नहीं वर्तमान में जीते थे.
८८ वर्ष की उम्र तक जवान बने रहने के लिए उनके सहज अनुकरणीय फंडा थे. जीवन बहुत ही नियम संयम के साथ जीते थे. सुबह जल्दी उठ कर टहलना फिर कई सारे अख़बार पढना उनकी आदत में शुमार था. उनकी अपनी फिल्मों के आईडिया समाचार सुर्खिओं से आते थे. उनका उठना - बैठना फिल्म वालों में जरा कम था, ज्यादातर निकट के लोग अन्य विविध क्षेत्रों के थे. शायद इसी वजह से उनका सोच अन्य फिल्म वालों से अलग था. यदि उनकी हिट और फ्लॉप फिल्मों की सूची बनाई जाय तो उन में फ्लॉप ज्यादा निकल आएँगी . फिर भी वे पैशन के साथ जुटे रहते थे. खाने पीने पर जबरदस्त नियंत्रण रखते थे.
आखिरी बार मेरी उनसे मुलाकात टीना अम्बानी की पत्रिका हारमनी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में हुई थी, देव साहेब चुस्त जींस, कलरफुल शर्ट, एक दम माड जाकेट में थे और फिर जाकेट पर उनका सिग्नचर स्कार्फ khoob फब रहा था, चाल ऐसी कि अच्छे-अच्छे नौजवान भी मुकाबला ना कर सकें. डायलोग डिलिवेरी का अंदाज इस उम्र में भी कड़क, देस परदेस फिल्म के दिनों की यादें ताजा हो गयीं.
आज जब देव साहेब नहीं रहे, सारे टी वी चैनल उनकी फ़िल्में, गाने और यादों के जरिये अपनी टीआरपी उठाने में लगे हैं ,
क्योंकि देवानंद का जिक्र मात्र यादों के दरीचे में ले जाता है, जब मेलोडी किंग होती थी और फिल्म में कहानी भी रहती थी !

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