MANGLOREAN SOJOURN मेंगलूर की पाती

मैं यायावर हूँ, जहाँ भी जाता हूँ वहीं खो कर या वहीं का हो कर रह जाता हूँ, बापस आता हूँ तो अपनी बीबी से कहता हूँ की फलां जगह तो बहुत ही अच्छी है चलो वहीं सेटिल हो जाते हैं, उसकी रहस्यमयी मुस्कराहट हर बार समान ही दिखती है !

इस बार भारत के धुर पश्चिमी  तट पर बसे मंगलोर शहर का अपना सफ़रनामा.

सुना है कि जब वास्को दि  गामा  भारत की खोज मैं आया था तो यहीं आस पास कहीं किसी टापू पर उतर गया था फिर बाद में केरल के तट पर जा पहुंचा था.

इस इलाके में  दूर  से  आड़ा तिरछा  सफ़र तय  कर के यहाँ पहुँचती नदियाँ, उनके सागर से मिलने का तिलस्मी अंदाज, नदी के दोनों और घने नारियल और सुपारी के पेड़. अंगरेजी में इस किस्म के इलाके को बैकवाटर कहते हैं, नदी से सागर का मेल मिलाप बस देखते ही बनता है, बैकवाटर में  शाम के झुटपुटे में  मछली पकड़ कर अपनी कश्ती में लौटते मछुआरे , लालिमा लिया आकाश, बस देखते ही रहो.

 मंगलौर दरअसल हरी भरी  सपाट जैसी पहाड़ी (रिज) और उस से सहज उतरते ढलानों पर बसा है, ये ढलान सीधे अरब  सागर तक जाते हैं. शहर में पुराने घर आस पास मिलने वाले हलके पत्थर के ब्लाक से बने हैं, छत एक खास किस्म के लाल टायल से बनती हैं , क्योंकि इस शहर में बारिश का सीजन लम्बा चलता है घर की छत पर ढलाऊ लगे टायल बारिश का पानी घर की छत पर जमा नहीं होने देते, फिर गर्मी में घर को सहज कूलिंग प्रदान करते हैं. खास विशेषता वाले इन टायल को मेंगलुरियन टायल के नाम से ही जाना जाता है. पर अब तेजी से बदल रहा है, लाल टायल वाले घरों के इर्द गिर्द कितने ही ऊँचे  माल और गगनचुम्बी भवन उग आये हैं जो बेशक विकास की पहचान तो हैं लेकिन एक पुरानी इको-मित्र संस्कृति  को अलविदा कहती इबारत भी है. पास में मेंगलोर  रिफायनरी चालू हो गयी है, उस से रोजगार के अवसर खूब बढे हैं लेकिन पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी भी है. रिफायनरी के साथ ही इस इलाके में शिक्षा का कारोबार भी खूब फला- फूला है. इस सब से भी आर्थिक सम्पन्नता आयी है.

पर मेरे लिए मेंगलोर का मतलब वहां का सांस्कृतिक अतीत है, जो बहुत ही समृद्ध रहा है, इस सांस्कृतिक विरासत समझने के लिए सैकड़ों  साल पुराने भगवान शिव को समर्पित मंजूनाथ और गोकर्ण नाथ मंदिर की प्रदक्षिणा करनी पड़ेगी  .

 गोकर्ण नाथ मंदिर के सारे डोम सुनहरे हैं जो रात के प्रकाश में अद्भुत सी आभा प्रदान करते हैं. इस मंदिर का  यहाँ के राजनीतिज्ञ जनार्दन पुजारी ने कभी जीर्णोधार करा के राजीव गांधी के हाथ उद्घाटन कराया था . ये वही जनार्दन पुजारी हैं जो कभी इंदिरा  गाँधी के मंत्रिमंडल में उप वित्त मंत्री होते थे और बैंकों के प्रमुखों को सता कर लोन मेले का तमाशा किया करते थे अब पुजारी बूढ़े हो गए हैं और सक्रिय राजनीति से संन्यास ले चुके हैं. 

मंगलोर के लोग पुराने  ज़माने से ही धंधे और नौकरी के लिए दूर दूर तक पहुँच गए थे, वे अपने साथ अपनी सभ्यता , संस्कृति और खाने पीने की आदतें भी ले गए हैं, मुंबई में ही  देख लीजिये, हर कोने में एक मंगलोर स्टोर जरूर मिलेगा जहाँ किस्म किस्म के केले, मेंगलोरियन फरसान, मिठाई , पूजा पाठ का सामान मिल जायेगा. और फिर उडीपी रेस्टोरेंट तो मंगलोर के क्षेत्र  के ध्वज वाहक हैं ही.

एक और खास बात मैंने अपने प्रवास में नोट की, यह जो भाषा का विवाद क्षेत्रीय  राजनैतिक दलों ने शुरू किया था बेमानी हो चुका है, लोग धंधा करना चाहते हैं जिस भाषा को पढने, बोलने और लिखने से उन्हें दो पैसे मिलेंगे उसे जरुर सीखेंगे. मेंगलोर क्षेत्र  शिक्षा और व्यवसाय के कारण देश की मुख्या धरा से जुड़ चुका है इस लिए वहां हर जन हिन्दी और काम चलाऊ अंग्रेजी की जानकारी रखता है. संत माधवाचार्य जैसे गुणी जनों ने धार्मिक और सांस्कृतिक   एकता की अलख जगाई थी अगर उसे समझ कर आजादी के बाद राजनीतिज्ञों ने देश भर के लोगों को जोड़ने का काम किया होता तो पचास साल में जुड़ाव का यह सिलसिला और प्रगाढ़ होता. मुझे लगता है  अब
 यह काम अब नयी पीढी को करना  होगा.


भगवान गौकर्ण नाथ मंदिर 


                                                        भगवान मंजूनाथ मंदिर


                                                      यह हरियाली और कहाँ


लाल मेंगलुरियन टायल से सजे घरों को लीलती बहुमंजली इमारतें 



गोकर्ण नाथ मंदिर : एक और द्रश्य

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