ghazal : आइना
ग़ज़ल : आइना
इन्सान के गरूर को तोड़ता है आइना
दुखती हुए रग को छेड़ता है आइना
कितनी ही परतें चढ़ी हों बनावट की
सबको सहज ही भेदता है आइना
टूट के बिखर जय कितने ही हिस्सों में
चेहरा तो फिर भी दिखता है आइना
आइना तेरा हो या फिर मेरा हो
हकीकत ही दिखाता है आइना
PRADEEP GUPTA
इन्सान के गरूर को तोड़ता है आइना
दुखती हुए रग को छेड़ता है आइना
कितनी ही परतें चढ़ी हों बनावट की
सबको सहज ही भेदता है आइना
टूट के बिखर जय कितने ही हिस्सों में
चेहरा तो फिर भी दिखता है आइना
आइना तेरा हो या फिर मेरा हो
हकीकत ही दिखाता है आइना
PRADEEP GUPTA
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