गज़ल : नए रंग



गज़ल : नए रंग

कुछ इस तरह से वो मेरी जिन्दगी से गए
दर्द दे गए उम्र भर के लिए

कभी सोची है शम्मा की क़ुरबानी
रात भर जलती है बस सहर के लिए

दूर तक खेत अब नजर नहीं आते
बिक गए गाँव तो शहर के लिए

बिगड़ी किस्मत बदल भी सकती है
निकल चुका है मेरा कारवां डगर के लिए

कैसा आँचल कैसा पैरहन कैसी हया
पूरा जलवा हाजिर है नजर के लिए

प्रदीप गुप्ता

Comments

Popular posts from this blog

Is Kedli Mother of Idli : Tried To Find Out Answer In Indonesia

A Peep Into Life Of A Stand-up Comedian - Punit Pania

Searching Roots of Sir Elton John In Pinner ,London