Spirit of Republic Day


गणतंत्र दिवस पर खरी खरी
कुछ आदमियत की भी कभी बात करें हम
अपने से भी चंद सवालात करें हम
हमने सुना था धरम सिखाता है सहनशीलता
यह भी सुना था संस्कृति का काम विनयशीलता
किस धरम किस संस्कृति की हम बात कर रहे
जब इनका नाम लेके घर बार जल रहे
यही गर सिखाता है गर धरम आपको
इस से तो बेहतर मुझ सा बुतशिकन आज तो
हम थे कहाँ और कहाँ आ गए हैं हम
बिगडे हालात के खुद जिम्मेवार हैं हम
मुझको नहीं पसंद कोई पूछे जात मेरी
मुझे काम चाहिए देख काबलियत मेरी
ऐसा निजाम चाहिए जो दो रोटी दे सके
ऐसा समाज चाहिए जहाँ बेखोफ रह सकें
अब वक्त आ गया है जरा जाग जाएँ हम
ऐसा नहीं हुआ तो मिट जायेंगे हम
कुछ लोग आग मुहँ से उगलते हैं आजकल
नफरत की फसलें रोज काटते हैं आजकल
इस हालात के लिए कसूरवार हैं हम
चुपचाप जुल्म सहने को जिम्मेवार हैं
नफरत मिटा सके ऐसा नेतृत्व चाहिए
जो सबको साथ ले के चले वो देश चाहिए
आदमी को आदमी से लड़ने नहीं दें हम
अन्याय जुल्म और सहने नहीं दें हम

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