Australia : This movie reminds Gone with the wind

नस्लवाद और रंगभेद को लेकर दुनिया भर में चाहे कितनी भी बहस मुबाहिसों का जमघट लगे लेकिन प्रेम और जीवन जीने की नई संभावनाओं के बीच इनकी कोई जगह नहीं । यही नहीं , युदधों की विभिषिकाएँ भी इनका बाल बाँका नहीं कर सकती। मॉलिन रूज और रोमियो जूलियट जैसी उत्कृष्ट और अद्भुत फिल्में बनाने वाले निर्देशक बज लुहरमैन की निकोल किडमैन और हयूज जैकमैन की नई फिल्म कुछ ऐसी ही संभावनाओं को दिखाने वाली है। यह अलग बात है कि दूसरे विश्वयुद्ध के बीच के बुनी गई यह प्रेम कहानी और समयकाल मध्यांतर के बाद गॉन विद द विंड जैसी क्लासिक फिल्म की याद दिलाने लगती है।
कहानी सराह (निकोल किडमैन) नाम की ऐसी युवती की है जिसका पति ऑस्ट्रेलिया के एक आदिवासी अश्वेत इलाके में गाय भैसों के एक बेडे पालने का काम करता है । दूसरे विश्व युदध में पर्ल हार्बर पर हमले के बाद जापान के अब ऑस्ट्रेलिया पर भी हमले का अंदेशा है और उसके पति की कोई खबर नहीं। वह उसे वापस लाने का फैसला करती है लेकिन जब वह ऑस्ट्रेलिया के फराह डाउन नामक जगह पर अपने पति की तलाश में पहुँचती हैं तो उसके वहाँ पहुँचने से पहले की उसके पति की हत्या हो जाती है। पशुओं के बेड़े का मैनेजर नील फ्लैचर (डेविड वैनहैम) सराह को बताता है कि उसके पति की हत्या में एक दूसरे बेड़े के मालिक किंग जॉर्ज (डेविड गुलापिली) का हाथ है। लेकिन सराह जब छानबीन करती है तो उसे पता चलता है कि दरअसल उसके पति की हत्या में नील का ही हाथ है और अब वह उसके बेडे पर कब्जा करना चाहता है। अंततः सराह उसे चकमा देकर भाग निकलती है और अपने बेडे को संभालने के लिए एक गोरे बेडे संभालने वाले पशुपालक विशेषज्ञ (ह्यूज जैकमैन) को किराए पर ले लेती है। लेकिन नील नहीं चाहता कि सराह अब अपने बेड़े और अपने पशुपालक नए रखवाले के साथ वहाँ से वापस जाए। सो सराह और उसके पशुओं को कब्जा करने के लिए वह जो जाल रचता है और सराह अपने बेडे और पशु पालक के साथ ऑस्ट्रेलिया से इंग्लैंड तक का जो खतरनाक सफर तय करती है उसी की रोमांचक और दहलाने वाली कहानी है ऑस्ट्रेलिया। हालांकि फिल्म अंत में वापस ऑस्ट्रेलिया लौटती है लेकिन उसकी यह वापसी सुखद होने के साथ सिहराने वाली है।
हालांकि बज लुहार की फिल्म देखते हुए कोई भी किसी रोमांटिक धीमी प्रेम कहानी की उम्मीद करता है। उनकी यह फिल्म भी बज की इस शैली से जुदा नही है। लेकिन इसमें और उनकी दो पहली फिल्मों रोमियो जूलियट और मॉलिन रूज में दो बुनियादी अंतर हैं। पहला यह उनकी रंगमंचीय शैली की कास्टूयूम ड्रामा नहीं है। बल्कि लंबे अरसे बाद वे अपनी नई फिल्म में अपने पात्रों और चरित्रों को बाहर लेकर निकले हैं और वह भी सघन माहौल में नहीं बलिक ऑस्ट्रेलिया के वृहद तीस और चालीस के दशक के परिदृश्य में। यह कोई आसान काम नहीं कि एक ऐतिहासिक विषय वाली परिकल्पित कहानी को आप युद्ध और प्रेम के साथ मिलाकर परदे पर उतारें। इसमें या तो आप युद्ध दिखाएँ या यु्दध के बैकड्रॉप में प्रेम। लेकिन अपनी इस फिल्म में बज युद्ध के साथ उस काल में घटने वाली दूसरी ऐसी घटनाओं से अलग परिदृश्य पर भी नजर डालते हैं जो एक मायने में युद्ध से भी अलग डरावनी सूरत वाली थी। ये ऐसी घटनाएँ थी जो युद्ध भूमि से अलग ऐसे क्षेत्रों में घट रही थी जिनका युद्ध से कोई लेना-देना नहीं था लेकिन वे आम आदमी के लिए युदध से आधिक त्रासदी भरी थी। उनकी यह फिल्म ऐसी ही कुछ त्रासदियों और लोगो के जीवन को दिखाने वाली है।
फिल्म में निकोल ने सराह नाम की एक विधवा की भूमिका निभाई है, लेकिन वे अपने पात्र के चरित्र की गंभीरता और त्रासदी के संताप को अपने पहले ही दृश्य से बयाँ कर देती हैं। जब वे ऑस्ट्रेलिया पहुँचती है तो उनका यह चरित्र और भी ताकतवर महिला के रूप में उभर कर सामने आ जाता है। ह्यूज जैकमैन के चरित्र का नाम पूरी फिल्म में कहीं भी चिन्हित नहीं किया है। उन्हें केवल डरोवर नाम से बुलाया जाता रहा है। लेकिन अपनी इस भूमिका में वे देर से आने के बावजूद अंत तक आते आते जिस आधार तत्व को रेखांकित करते हैं वही पूरी फिल्म का असली आधार है।
फिल्म में एक चरित्र है नुल्लाह, हालांकि उसे निभाने वाले किशोर कलाकार के नाम का उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन अंत मे वह सराह के साथ जब वापस लौटता है तो एक वही चरित्र है जो फिल्म मे उठने वाले रंगभेद और नस्लवादी मुद्दो के लिए एक नई बहस की शुरूआत भी करता है। किंग जॉर्ज की भूमिका मे डेविड गुलपिली अपनी भूमिका में न्याय करते हैं और खलनायक बने नील डेविड वैनहैम सिहराते हैं। फिल्म में हजारों गायों के बीच ऑस्ट्रेलिया के डार्विन के विशाल मैदानो में युद्ध और और उन्हें घेरने के दृश्य कमाल के हैं। फिल्म में कैमरा तकनीक का बेहतर इस्तेमाल किया गया और काल परिदृश्य का भी। अंत में धीमी गति और हॉलीवुड की महान क्लासिक कही जाने वाली गॉन विद द विंड का आभास देती ऑस्ट्रेलिया इसके बावजूद देखने लायक है।
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