Memento Sorry Amir Bhai's Ghajni


प्रेम की कोई तय परिभाषा नहीं होती लेकिन क्या कोई किसी को इतना प्रेम कर सकता है कि अपनी याददाश्त जाने पर भी वह उसे ना भुला पाए। हॉलीवुड निर्देशक क्रिस्टोफर नोलन की मशहूर फिल्म मेमेटों और क्वांतीन तारनतीनो की फिल्म किल बिल से प्रेरित निर्देशक एआर मोरगूदॉस की अपनी ही तमिल फिल्म गजनी की रीमेक और आमिर खान अभिनीत हिन्दी में बनी गजनी बस इसी हिंसात्मक प्रेम -कथा के नए व्याकरण को दिखाने वाली है। यही नहीं, यह भी पहली बार है जब हिंदी सिनेमा में हॉलीवुड की किल बिल नाम की फिल्म की शैली में किसी खलनायक को प्रतीक मानकर उसके नाम से फिल्म बनाई गई है।

कहानी एक बिजनेसमैन संजय सिंहानिया (आमीर खान) के ईद-गिर्द घूमती है। वह एक मॉडल और सामाजिक कार्यकर्ता कल्पना (असीन थोट्टूकाल) से प्रेम करता है। लेकिन एक दिन जब कल्पना एक बच्चों के समूह को एक माफिया से बचाते हुए गैंग सरगना गजनी धर्मात्मा(प्रदीप रावत) के हाथों क्रूरता से मारी जाती है तो उसका जीवन बदल जाता है। यही नहीं उसके साथ संजय भी सिर में लगी एक चोट के कारण विस्मृति की एक ऐसी बीमारी का शिकार हो जाता है जिसमें उसे केवल पंद्रह मिनट के लिए ही वे सारी बातें याद आती हैं जो कल्पना की हत्या और उसकी वर्तमान हालत के लिए जिम्मेदार है। अब इसे याद रखने का कोई तरीका उसके पास नहीं, सो उसे जो जो बातें याद आती हैं उन्हें वह अपने शरीर पर गुदवा लेता है और बाकी बातों को याद रखने के लिए वह डायरी, नोटस और कैमरे का इस्तेमाल करता है। संयोग से अपनी पढ़ाई पूरी करते हुए मनोविज्ञान की एक छात्रा सुनीता (जिया खान) अस्पताल में उसके केस के संपर्क में आती है और संजय को चोट लगने से होने वाली बीमारी एंटोग्रेड एमनेसिया की छानबीन करते हुए उसके व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी त्रासदी के बारे में भी जानने लगती है, लेकिन शार्टटाइम मेमोरी लॉस कही जाने वाली इस बीमारी के कारण वह भी संजय की बदले की हद में आ जाती है। उसे लगता है कि संजय उसे मारना चाहता है और अपने कॉलेज में होने वाले एक समारोह में सयोंग से विशेष अतिथि बनने वाले गजनी को संजय के बारे में बता देती है। लेकिन एक दिन जब सुनिता के हाथो संजय की डायरी लगती है और डायरी पढ़ने के बाद उसे न केवल संजय की इस हालत का पता लगता है और उसे अपनी गलती का अहसास भी होता है तो इसके बाद शुरू होती है सुनीता की मदद से संजय की गजनी तक पहुँचने की एक खतरनाक यात्रा की शुरूआत और इसी हिसंक और दिल दहलाने वाली प्रेम-कथा की सिहराने वाली यात्रा की कथा है गजनी।

फिल्म में प्रसून जोशी के लिखे छह गीत हैं और एआर रहमान के संगीत वाली इस फिल्म का सोनू निगम और जावेद अली का गाया एक गीत तू दिल के मेरे पास पास पहले ही लोकप्रिय हो चुका है। हालांकि बाकी गीतों को प्रमोशन के बतौर इस्तेमाल नहीं किया गया है। लेकिन इसके बावजूद उन्हें बेहतर संगीत कपोंजिशंस के साथ स्वरबध्द किया गया है। इसमें मैं बहका बहका मैं महका महका और किस्मत से तुम मिल गई का जिक्र ना किया जाए तो प्रसून के साथ ज्यादती होगी। हाँ, एक बात और सभी गीत डीरीम सीक्वेंस हैं और उन्हें दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन और नामीबिया के रेतीले टीलों की बेहतरीन लोकेशंस पर फिल्माया गया है। इसके लिए मै कैमरामैन रवि के चंद्रन का भी उल्लेख करूंगा कि उनके कैमरा वर्क ने गजनी के गीतों में ही नहीं बलिक एक्शन दृश्यों में भी गजब की कल्पनाशीलता और तकनीकी प्रभावशीलता का परिचय दिया है। अब यह अलग बात है कि पिछले पखवाड़े प्रदर्शित होने वाली रब ने बना दी जोडी के जयदीप के लिखे और सलीम सुलेमान के संगीत वाले हौले हौले के सामने गजनी का संगीत बहुत उम्मीद जगाने वाला नहीं है।

मैं आमतौर पर आमिर की फिल्मों का प्रशंसक नहीं हूँ और उनकी संवाद अदायगी को लेकर मैं हमेशा से ही बहुत उत्साहित नहीं रहता। यही बात मैं शाहरुख खान को लेकर भी कहता हूँ, लेकिन जिस तरह चक दे में किंग खान ने अपने बारे में मेरी राय बदल दी उसी तरह गजनी में आमिर ने अपने कैरियर की शायद पहली ऐसी फिल्म देकर मुझे यह कहने पर विवश किया है कि हो सकता है कि अब तक शायद उन्हें किसी अभिनेता की बतौर उनकी तरह की वैसी फिल्म नहीं मिली जिसमें उनके असली अभिनय व्याकरण और रेखाचित्र का पता चले। मुझे याद है कि आमिर ने अपने कैरियर के शुरू के दिनों में राख नाम की फिल्म की थी। वह शायद आमिर की पहली फिल्म थी जिसमें उन्होनें बिना संवाद बोले केवल अपने चेहरे और मौन अभिव्यक्तियों से अपने चरित्र को जो रीच दी थी, गजनी में वे बरसों बाद उसी का विस्तार एक नए परिदृश्य और वातावरण में करते दिखाई देते है। जहाँ वे अपने बलिष्ठ शरीर का नहीं बल्कि शारीरिक और चेहरे की जिस सांकेतिक भाषा का बिना कोई संवाद बोले इस्तेमाल करते हैं, वह अभी तक मुझे किसी दूसरे अभिनेता में नहीं दिखाई दी।



उनके हिस्से में फिल्म की ओपनिंग से लेकर अंत तक जो भी संवाद आए हैं उनमें भी वे अपनी पारंपरिक जल्दी जल्दी और हमेशा की तरह किसी अल्हड़ शैली वाले अभिनेता की तरह बोलते हुए नजर नहीं आते। उनमें वे बहुत सहज और शांत रहते हुए अपनी बात कहने की कोशिश करते हैं। एक तरह से देखा जाए तो फिल्म में दो आमिर खान हैं एक वे जो बिजनेस मैन संजय हैं और दूसरे वे जो मानसिक रूप से सब कुछ भूले हुए सजंय हैं, लेकिन दोनों में ही वे अलग और गहरे डूबे हूए हैं। मध्यांतर के बाद तो उनका दूसरा रूप और खतरनाक तरीके से उभरकर जिस त्रासदी और अपने पात्र के चरित्र की विडबनाओं का प्रदर्शन और रेखाकन खीचतें नजर आता है, वह अद्भुत और विस्मित करने वाला है खासतौर से अपने एक्शन और बदला लेने वाले दृश्यों में। वे अपने पात्रों और चरित्रों में जिस मेहतन और समर्पण के लिए जाने जाते हैं वह दरअसल गजनी में ही सही मायनों में उभरकर परदे पर सामने आया है। पहली बार वे सचमुच खलनायकों और बुरे चरित्रों को ध्वस्त करते वास्तविक नायक की तरह दिखाई देते हैं। यानी मै कह सकता हूँ कि आमिर तुमने गजनी में करके दिखा दिया कि तुम ही हमारे वर्तमान हिन्दी सिनेमा के संपूर्ण अभिनेता हो। गजनी के तमिल संस्करण में नायक की भूमिका सूर्या ने की थी, लेकिन तीन साल पहले यदि इसे डब करके हिन्दी में प्रदर्शित किया जाता तो शायद गजनी को इतनी लोकप्रियता और शानदार सफलता नहीं मिलती जितनी इसे आमिर ने दी है।

अब मैं बात करूंगा असीन की, तो वे ताजगी भरे चेहरे वाली अंभिनेत्री के रूप में सामने आई हैं और अपने चरित्र में वे काफी खिलंदड़ी स्वभाव के साथ दिखाई देती हैं। यदि उनके रोमांस और हंसीमजाक वाले दृश्यों को छोड़ दिया जाए तो घटनाओं और परिस्थितियों के बदलाव के कारण उभरे दृश्यों में कमाल का आत्मविश्वास दिखाती हैं। यह भी गौरतलब बात है कि आसीन और गजनी बने प्रदीप रावत दोनों ही हिन्दी और तमिल में अपने पुराने चरित्रों के साथ हैं, लेकिन दोनों ही संस्करणो में वे अलग तेवर और नएपन के साथ सामने आते हैं। प्रदीप रावत ने बीआर चोपड़ा के महाभारत में अश्वत्थामा की भूमिका निभाई थी और आमिर की सरफ़रोश और लगान के अलावा तमिल और तेलूगु की फिल्मों में उन्होंने एक दहलाने वाले खलनायक की भूमिकाओं में खासा नाम कमाया है।

तमिल की गजनी में तो वे दोहरे जुडवा गजनी बने थे जबकि हिन्दी में वे एक ही पात्र और चरित्र के साथ हैं लेकिन अपने चरित्र और पात्र की कुटिलता और खतरनाक मंशाओं की शारीरिक भाषाके इस्तेमाल में वे जिस नई प्रयोगिक विधा का परिचय देते हैं वह दहलाने वाला है। नायिका के कत्ल और नायक को प्रताडित करने के दृश्यों में जब वे कलाइमेक्स में दुबारा जिया को नायिका की तरह कत्ल करने का दोहराव करते हैं तो मैं यकीन से कह सकता हूँ कि आपकी सांसे रूक जाएंगी। रही जिया की बात तो निशब्द के बाद उन्हें जरूर अपनी भूमिका को विस्तार से निभाने का मौका मिला है, लेकिन वे मंध्यातर के बाद केवल आमिर की भूमिका को नया आधार देने भर का काम करती हैं। टीनू आनंद साधारण हैं लेकिन पुलिस अफसर की भूमिका में नायक की तलाश करते दक्षिण के अभिनेता रियाज खान संभावनाओं वाले हैं, बशर्ते उनपर अब हिन्दी फिल्मों के निर्माताओं की नजर पड जाए।

एआर मोरगूदॉस कितना भी कहें कि यह उनकी मौलिक फिल्म हैं लेकिन जिन लोगों ने निर्देशक क्वांतीन तारनटीन की उमा थर्मन की मशहूर फिल्म किल बिल देखी है और जो लोग हॉलीवुड के क्रिस्टोफर नोलन की फिल्में देखते रहे हैं तो यह उनकी मोमेंटो फिल्म से प्रेरित है। अंतर केवल इतना है कि किल बिल में नायिका खलनायक बिल की तलाश करती है और गजनी में नायक अपनी प्रेमिका की हत्या करने वाले खलनायक गजनी की। यह भी पहली बार है कि कोई निर्देशक पहली बार खलनायक के नाम से बनी फिल्म लेकर मैदान में आया है। यह अलग बात है कि फिल्म प्रदर्शित होने के बाद भी खलनायक बने प्रदीप रावत और जिया खान को फिलम के प्रमोशन से दूर रखा गया। हॉलीवुड में भी यह खतरा किल बिल बनाकर क्वांतीन ने उठाया था और वे अपने दोनों संस्करणों में सफल रहे लेकिन भारतीय सिनेमा में मोरगूदॉस ने यह खतरा पहली बार उठाया है और वह भी शायद इसलिए कि आमिर उनके साथ थे। हाँ, क्रिस्टोफर नोलन की मोमेटों इससे अलग जरूर है फिर भी मैं कहूगा कि गजनी इन दोनों से अलग नहीं, बल्कि बहुत अलग और अदुभुत फिल्म है। इसकी वजह है कि दोनों फिल्मों का कथ्य, शिल्प और व्याकरण अलग हैं। लेकिन मैं एक बात जरूर कहूंगा कि तमिल की गजनी में जिन परिस्थितियों और घटनाओं के बुनाव की कहानी लेकर अपनी पटकथा का विस्तार करते दिखाई देते हैं वह आमतौर पर हिन्दी फिल्मों में कम दिखाई देता है। वे अपने नायक के बलिष्ठ और खतरनाक होने के बावजूद उसके प्रति किसी ऐसे आकर्षण का विस्तार नहीं दिखाते जहाँ वह केवल परिकल्पित नायक भर लगे।

नायिका की हत्या और उसके बाद नायक की खलनायक को ढूंढने वाले दृश्यों के बाद एक्शन में प्रयोग की गई हिंसा फिल्म के एक विध्वंसात्मक फिल्म की ओर ही इशारा करती है, लेकिन वह ऐसी नहीं है जिससे आप घृणा करें या कहें कि इसकी जरूरत नहीं थी। मैं यह नहीं समझ पाया कि अंत में वे इस बात का खुलासा क्यों नहीं करते कि खलनायक के अंत के बाद नायक की मानसिक दशा का क्या हुआ और वह कैसे अपनी पुरानी दशा और अवस्था में लौटा। लेकिन कुछ विरोधाभासों और लंबाई के बावजूद मैं कहूंगा कि मोरगू, यू डिड ए वैरी गुड जॉब इन हिन्दी सिनेमा विद आमिर।


pradeep gupta
mob.9892092643

Comments

Popular posts from this blog

Is Kedli Mother of Idli : Tried To Find Out Answer In Indonesia

A Peep Into Life Of A Stand-up Comedian - Punit Pania

Searching Roots of Sir Elton John In Pinner ,London