टैक्सी ड्राइवर अब्दुल के बहाने वरिष्ठ नागरिकों की सुधबुध


सिएटल 24 अगस्त 
आज मुझे हाइलैंड  पार्क एंड राइड तक जाना था. उबर से टैक्सी मंगाई।  एप में ड्राइवर का नाम अब्दुल लिखा आ रहा था. टैक्सी आयी तो देखा ड्राइवर एक दम  गोरा चिट्टा। पहली निगाह में वह योरोपीय मूल का लगा पर नाम तो उसके एशियाई होने की और संकेत कर रहा था. मेरा रास्ता कोई पंद्रह मिनट का था , समय काटने के लिए मैंने उससे पूछा कि वह मूलत: कहाँ से है. उत्तर मिला पाकिस्तान से।  पाकिस्तान में भी लाहौर से जो आज की  भारत पाकिस्तान  सीमा से चंद   किमी की दूरी पर है. अब्दुल  ने अब से 31 वर्ष पहले लाहौर से ओमान की ओर  रुख किया , वहां से लन्दन। आगे हूस्टन विश्वविद्यालय आ कर डिग्री ली। अब्दुल को पाकिस्तान गए 30  वर्ष गुजर चुके हैं, वहां के हालत सुन कर उसे बहुत बुरा लगता है जो ख़बरें उस तक पहुँचती हैं उन्हें सुन कर उसे लगता है कि  पाकिस्तान अब पहले जैसा नहीं रहा है. 

अब्दुल बताते हैं कि उनको बिलकुल फ़िल्मी अंदाज में स्थानीय लड़की से इश्क  हो गया, उसी से  शादी बनाई। शादी के बाद 15 साल -साथ गुजारे,  बाद में मतभेद और फिर तलाक़। अलग जरूर हुए लेकिन पूर्व पत्नी के साथ सम्बन्ध मधुर हैं , एक दूसरे का ख्याल रखते हैं। अब्दुल ने दोबारा शादी नहीं की है. आर्थिक सुरक्षा के लिए २० एकड़ जमीन है ही. 

अब्दुल भाई की उम्र 66  वर्ष है, डिग्री लेने के बाद नौकरी नहीं की थी, वितरण का व्यवसाय किया , अब पिछले कुछ वर्षों से उसे समेट दिया। अब्दुल बताते हैं सिहाली में घर बनाया, इसके साथ ही जमीन भी 20 एकड़ है.उम्र भले ही 66  वर्ष हो अब्दुल अभी तक स्वस्थ हैं , जब घर में वैठे ऊब होने लगती है, उबर एप  आन  कर लेते हैं तीन चार घंटे टैक्सी चलाते हैं और उससे 50  डालर तक कमा लेते हैं. 

अब्दुल अपने किस्म के अकेले व्यक्ति नहीं हैं. अच्छी खुराक, बेहतर जीवन  शैली और मेडिकल केयर  के कारण यहां अमरीका में लोग रिटायरमेंट के बाद भी सक्रिय  रहते हैं, स्कूल बस, टैक्सी चलने वाले ज्यादातर इसी आयु वर्ग के मिलेंगे। यहाँ ट्रक भारत की तुलना में काफी बड़ी क्षमता के होते हैं , इन्हे ज्यादातर वे दंपत्ति मिल कर चलते हैं जिनके बच्चों की जिम्मेवारी पूरी हो चुकी हैं. ट्रक चलना यहाँ पर ग्लेमर और रोमांच दोनों है , इंटरस्टेट हाइवे पर ट्रक चालकों के लिए बड़े  ही आरामदेह रैनबसेरे  जगह जगह पर बने हुए हैं जहाँ खाने, सोने और लॉन्ड्री जैसी सारी सुविधाएँ मौजूद रहती हैं.  रिटायरमेंट के बाद काम करना सम्माननीय, फन और रोमांच का मिला-जुला  रूप माना  जाता है।  




इसके उलट भारत में 60  वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को फालतू का मानने  लगते हैं. जो लोग 60 के बाद कुछ करके पैसा कमाने मैं सक्रिय  हैं  उनकी संख्या वैसे कम ही है. यह देख कर मुझे दुःख होता है कि 60 के बाद के स्वस्थ होने के बाद भी अधिकांश लोग अपना समय ढलुआगीरी  में बिता रहे हैं. अब समय आ गया है  कि भारत में भी काम करने की कोई समय सीमा न रहे, व्यक्ति जब तक स्वस्थ है और काम करने की इच्छा हो उसे काम मिलना चाहिए. इंसान ने लगातार 35 - 40  वर्ष तक किसी एक क्षेत्र विशेष में काम करके उसका विशेषज्ञ बन जाता है तो उसके विशद अनुभव का समाज को भी लाभ मिलना चाहिए।          

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